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सिलस्वाल जी से कीजिए, मछली पालन से समृद्धि पर बात

ऋषिकेश शहर से हरिद्वार जाते समय करीब नौ किमी. की दूरी पर श्यामपुर ग्राम सभा है। श्यामपुर ग्राम सभा उन्नतशील किसान सूरजमणि सिलस्वाल रहते हैं। करीब दो बीघा भूमि पर बनाए गए तालाब में मछलियों की खेती करते हैं।

उनके तालाब में चार प्रजातियों की दस हजार से भी ज्यादा मछलियां हैं। कुछ समय का इंतजार है, वो स्वरोजगार से समृद्धि और दूसरों के लिए रोजगार की ओर कदम बढ़ा लेंगे।

उन्होंने तालाब को पक्का कराने, इसमें पैडल बोटिंग, चारों तरफ सौंदर्यीकरण, घूमने के लिए रास्ता बनाने जैसी योजनाओं का खाका बनाया है। अगर, उनकी योजना पर अमल हो जाता है तो यह स्वरोजगार का अपनी तरह का अनोखा मॉडल होगा।

हमें पता चला था कि श्यामपुर ग्राम सभा में इतना बड़ा मत्स्य पालन तालाब नहीं है। मैंने कभी मौके पर जाकर मछली पालन और जाल लगाकर मछलियां पकड़ने की प्रक्रिया को नहीं देखा।

हमने सिलस्वाल जी से संपर्क किया तो गुरुवार यानी 30 जून, 2021 की सुबह नौ बजे का समय तय हुआ। मुझे नहीं मालूम था कि मेरे और सार्थक के लिए यह सब कुछ ज्यादा ही रोमांचकारी होने वाला है। सार्थक ने फोटो और वीडियो कवरेज का जिम्मा उठाया। 

आपको बता दूं कि सिलस्वाल जी और मैंने एक अखबार में वर्षों पत्रकारिता की है। पहले हमारी बातचीत खबरों और एक दूसरे का हाल चाल जानने के लिए होती थी। वर्ष 2016 में मैंने अखबार की नौकरी छोड़ दी और सिलस्वाल जी से बातचीत भी लगभग बंद हो गई।

 कुछ समय पहले ही, सिलस्वाल जी ने भी अखबार से नाता तोड़ लिया। कहते हैं, पत्रकारिता करेंगे, पर किसी सीमित दायरे में रहकर नहीं। फिलहाल उनकी प्राथमिकता स्वरोजगार से समृद्धि और फिर कुछ लोगों के लिए रोजगार की राह बनाना है।

हम तय समय पर उनके घर पहुंच गए। घर के सामने ही तालाब है। जब आप हाईवे पर ऋषिकेश से हरिद्वार जाएंगे तो सीधे हाथ पर गढ़ी के लिए पक्का रास्ता है। सड़क के एक ओर हरेभरे आम के बाग मिलेंगे और फिर एक पुलिया से लगते ही सीधे हाथ पर मुड़ जाएं।

श्यामपुर ग्रामसभा में श्री शिव मंदिर।

सामने श्री शिव मंदिर के दर्शन होंगे और कुछ ही कदम पर है सिलस्वाल जी का मत्स्य पालन तालाब। सुबह-सुबह बहुत अच्छा लगा किसी समृद्ध गांव की सैर करना।

करीब 50 वर्षीय सिलस्वाल जी अपने खेतों में गेहूं, धान, मक्का, सब्जियां पहले से ही लगा रहे हैं। कहते हैं कि इससे आय नहीं बढ़ रही थी।

मेरा सपना था कि मैं कुछ ऐसा करूं, जो रोजगारपरक हो। पूर्वजों ने इस भूमि पर काफी मेहनत की है और इसे बचाकर रखा है।

खेती के अन्य विकल्पों पर विचार करते समय पूर्व बीडीसी मेंबर कोमल सिंह नेगी ने मत्स्य पालन करने की सलाह मिली।

उन्हीं दिनों मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी सर्वे करते हुए गांव में पहुंचे। विभाग की योजना में घर के पास ही दो बीघा खेत में तालाब बनवा दिया।

करीब एक वर्ष हो गया है, पिछले साल सितंबर में बीज डाले थे। अगले साल फरवरी में मछलियों की पहली खेप हासिल करेंगे।

उनको ऋषिकेश में काले की ढाल के पास रहने वाले रामबदन जी काफी सहयोग कर रहे हैं। रामबदन जी, को मछली पालन का व्यावहारिक ज्ञान है।

बताते हैं, तब तक मछलियां एक से डेढ़ किलो की होंगी। मछलियों की ग्रोथ में साल- सवा साल का समय लग जाता है। फरवरी में ये बाजार में बेचने लायक होंगी।

बाजार लोकल ही है। मछली एवं मीट विक्रेता खरीद लेते हैं। यहां से फिलहाल मछलियों को एक्सपोर्ट नहीं किया जाता। स्थानीय स्तर पर ही मांग काफी है।

उनको उम्मीद है कि फरवरी में इस तालाब से लगभग आठ से दस कुंतल की खेप मिल जाएगी। सिलस्वाल जी, मछली पालन को लाभ का सौदा मानते हैं।

वो ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को कृषि एवं मत्स्यपालन में उन्नति करने के लिए प्रेरित करते हुए कहते हैं, सरकार के पास पद सीमित हैं, इसलिए नौकरियां भी कम हैं।

श्यामपुर ग्राम सभा में दो बीघा में फैले इस तालाब के पास।

उन्होंने बताया कि तालाब अभी कच्चा है, पर मछली पालन में कोई दिक्कत नहीं है। शुरुआत में जितने संसाधन उपलब्ध हो पाए, कदम बढ़ा दिए।

तालाब का सुधारीकरण उनकी प्राथमिकता है। तालाब को पक्का कराने का विचार है, इसके आसपास सौंदर्यीकरण की योजना है।

पर, उनको मालूम है कि यह सब धीरे-धीरे होगा, इस दिशा में लगातार प्रयास कर रहे हैं। सरकार से उम्मीद है कि कुछ अच्छा होगा, क्योंकि मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी काफी सहयोग करते हैं। समय-समय पर आते हैं और मत्स्यपालन की पूरी स्थिति पर नजर रखते हैं।

दावे के साथ कहते हैं कि अगर तालाब के सुधारीकरण में सहयोग मिलता है तो आउटपुट कई गुना हो जाएगा और हम दो या तीन युवाओं को रोजगार देने की स्थिति में होंगे।

हम इंटीग्रेटेड फार्मिंग करेंगे, मत्स्य पालन के साथ बतखपालन, मुर्गीपालन, बकरीपालन को पूरक बनाते हुए काम किया जाएगा।

श्यामपुर ग्राम सभा में किसान सूरजमणि सिलस्वाल का तालाब।

मैंने अध्ययन किया है, इस तरह के स्वरोजगार में आर्थिक लाभ है। पर, ये सब कार्य शुरू करने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम होना जरूरी है।

सरकार के स्तर पर सहयोग मिलने पर ही ये काम शुरू कर पाएंगे। फिलहाल हम अपने आउटपुट का 30 फीसदी काम भी नहीं कर पा रहे हैं।

वर्तमान में उनके पास मछलियों की चार प्रजातियां अमेरिकन कार्प, ग्रास कार्प, कतरा, मृगल हैं, जिनकी संख्या लगभग दस हजार से अधिक होगी।

इनसे सबसे अच्छी क्वालिटी की मछली ग्रास कार्प है, जो तालाब के किनारों की जलीय घास भी खाती है। मछलियों का भोजन उनके साइज एवं अवस्था पर निर्भर करता है।

शुरुआत में मछलियों के आठ से दस हजार बच्चों के लिए प्रतिदिन एक किलो दाना तालाब में डाला जाता था। प्रत्येक तीन माह में यह खपत दोगुनी हो गई। यानी, तीन माह के बाद प्रतिदिन दो किलो दाना डालना पड़ा।

छह माह में खुराक उसी हिसाब से बढ़ा दी गई। वर्तमान में तालाब में पांच किलो दाना प्रतिदिन डाला जाता है।

सिलस्वाल जी बताते हैं कि मत्स्य पालन विभाग आहार पर होने वाले व्यय का 50 फीसदी स्वयं वहन करता है। वित्तीय वर्ष के अंत में आहार पर खर्च कुल राशि का 50 फीसदी मत्स्यपालक के खाते में आ जाता है। इसमें यह लाभ है।

मैं इस योजना का लाभ उठाने के लिए युवाओं को प्रेरित करूंगा और उनसे कहूंगा कि स्वरोजगार करो और रोजगार दो।

मछली पालन में सावधानियों के सवाल पर उन्होंने बताया कि इसमें अन्य खेती की तरह माथापच्ची नहीं है। इसमें धूप में कड़ी मेहनत करने की जरूरत नहीं है।

आपको तालाब में पानी का लेवल मेन्टेन रखना होता है। समय-समय पर पानी बदलना चाहिए। हम ऐसा करते हैं।

विशेषरूप से तालाब के लिए ट्यूबवैल है, जिससे साफ पानी तालाब में प्रवाहित किया जाता है। साथ ही, यह देखना होता है कि मछलियां ग्रोथ कर रही हैं या नहीं। उनके मूवमेंट पर ध्यान रखने की जरूरत है।

अगर, मछलियां उछल कूद कर रही हैं, तेजी से तैर रही हैं तो कोई समस्या नहीं है। पर, यदि मछलियां बहुत धीमे से तैर रही हैं। सुस्त हैं तो तुरंत मत्स्य पालन विभाग या विशेषज्ञों से संपर्क करें। विभाग के अधिकारी पूरा सहयोग करते हैं।

उन्नतशील किसान सूरजमणि सिलस्वाल।

बताते हैं, उनको माइक्रो बायोलॉजिस्ट रामायण सिंह जी का मार्गदर्शन मिलता है। समय-समय पर आगाह करते हैं और मछलियों की गहन निगरानी कराते हैं। हमारे यहां मछलियों की उछलकूद को देखा जा सकता है।

हम स्वयं मछलियों का मूवमेंट कराने के लिए तालाब में बोटिंग करते हैं। मछली जितना मूवमेंट करेगी, उनका स्वास्थ्य उतना अच्छा होगा और ग्रोथ अच्छी होगी।

कुल मिलाकर मत्स्यपालन अन्य फसलों के मुकाबले काफी लाभकारी है। इसमें समय तो लगता है। मांग ज्यादा  है, पर लागत ज्यादा नहीं है।

मछली के सेवन की सलाह डॉक्टर भी देते हैं। उनका कहना है कि यदि कोई युवा मछली पालन के बारे में जानना चाहता है तो वो प्रशिक्षण देने के लिए तैयार हैं।

सार्थक और आयुष डंगवाल, तालाब में बोटिंग का आनंद लेते हुए।

हमने इस दौरान आदित्य सिलस्वाल, आयुष डंगवाल से बात की। आदित्य मैकेनिकल में पॉलिटेक्निक के छात्र हैं और आयुष कक्षा 8 में पढ़ते हैं।

आयुष को तालाब में बोटिंग करना, ट्यूबवैल पर नहाना बहुत पसंद है। तालाब में बोटिंग से भ्रमण और कुछ सवाल जवाब के बाद, हमने ट्यूबवैल के ठंडे पानी में खूब सारी डुबकियां लगाईं।

मैं तो वर्षों बाद ट्यूबवैल पर नहा रहा था। बहुत मजा आया। मछली पालन के बारे में बहुत सारी जानकारियां इकट्ठा कीं और जाना कि यह किस तरह स्वरोजगार से समृद्धि और रोजगार के अवसर पैदा करता है।

इसमें संभावनाओं के साथ चुनौतियों को भी जाना। हमने खेतीबाड़ी और सब्जियों के उत्पादन पर भी बात की।

अगली बार फिर मिलते हैं किसी और पड़ाव पर… तब तक के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं…।

क्या आपको मालूम है
संपूर्ण विश्व में सभी मछुआरों, मछली किसानों और संबंधित हितधारकों के साथ एकजुटता को प्रदर्शित करने के लिए हर वर्ष 21 नवंबर को विश्व मत्स्य दिवस मनाया जाता है।

इसका शुभारंभ 1997 में हुआ था, जहां 18 देशों के प्रतिनिधियों के साथ “विश्व मत्स्य मंच” के गठन के लिए नई दिल्ली में “वर्ल्ड फोरम ऑफ फिश हार्वेस्टर्स एंड फिश वर्कर्स” की बैठक हुई और दीर्घकालीन मत्स्य प्रथाओं और नीतियों के वैश्विक जनादेश का समर्थन करने वाले एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए।

भारत सरकार देश में नील क्रांति के माध्यम से इस क्षेत्र को बदलने और आर्थिक क्रांति का शुभारंभ करने में अग्रणी है।

भारत दुनिया में जलीय कृषि के माध्यम से मछली उत्पादन करने वाला दूसरा प्रमुख उत्पादक देश है। भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र खाद्य और पोषण सुरक्षा और विदेशी मुद्रा अर्जन को पूरा करने के अलावा लगभग 28 मिलियन मछुआरों और मछली किसानों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है।

भारत वैश्विक मछली उत्पादन में लगभग 7.7 प्रतिशत योगदान देता है और देश मछली उत्पादों के वैश्विक निर्यात में चौथे स्थान पर है। इस क्षेत्र ने उत्पादन और उत्पादकता की गुणवत्ता को बढ़ाने और अपशिष्ट में कमी लाने के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने के लिए परिकल्पना की है।

दिसंबर 2015 में शुरू की गई केंद्र प्रायोजित योजना “नील क्रांति” को ध्यान में रखते हुए, इस क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। मत्स्य क्षेत्र का राष्ट्रीय जीवीए (ग्रॉस वैल्यू एडेड) में लगभग 1.24 प्रतिशत और 2018-19 में कृषि जीवीए में लगभग 7.28 प्रतिशत का योगदान है। (स्रोतः पीआईबी)

इन लिंक पर लीजिए मत्स्य पालन की जानकारियां-

https://fisheries.uk.gov.in/pages/display/112-schemes     
https://fisheries.uk.gov.in/pages/display/113-about-fishing
https://fisheries.uk.gov.in/pages/display/123-fisheries-at-a-glance-faqs

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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