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उत्तराखंड में बिजली पर राजनीतिः बिजली नहीं होने से पलायन कर गया यह गांव

देहरादून। उत्तराखंड में फ्री की बिजली को लेकर खूब राजनीति हो रही है। कोई 100 यूनिट तक फ्री और किसी ने 300 यूनिट तक फ्री में वोटों की बोली लगा दी है, पर क्या आप जानते हैं राज्य में राजधानी के पास ही, एक ऐसा गांव भी है, जिसने बिजली नहीं पहुंचने पर पलायन कर दिया। पूरा गांव खाली हो गया, क्योंकि वहां बिजली नहीं पहुंच पाई थी और न ही सड़क।

टिहरी जिले में स्थित इस गांव का नाम है बखरोटी। यह गांव कहने को टिहरी गढ़वाल जिला में है, पर ऋषिकेश तहसील व देहरादून जिला मुख्यालय इसके बहुत करीब है। हम आपको इस गांव के बारे में बताते हैं-

कोडारना ग्राम पंचायत का गांव बखरोटी आदर्श गांव के रूप में प्रसिद्ध है। गांव में कोई तंबाकू तक का नशा नहीं कर सकता था। बखरोटी गांव ने सबसे अच्छा व्यवहार, अपनी संस्कृति एवं संस्कारों को बनाए रखा। दुखद बात यह है कि अब गांव में कोई नहीं रहता।

रानीपोखरी से आगे बड़कोट माफी के रास्ते पर और फिर वहां से खाला पार करके कुशरैला गांव से होते हुए बखरोटी जा सकते हैं। बखरोटी तक ऊबड़ खाबड़, पथरीले, जगह-जगह गदेरों वाले कच्चे रास्ते पर होकर जाना होता है।

रास्ते में जंगली खाला है। कहीं कहीं एक तरफ ढांग से लगा रास्ता है, केवल एक बार में एक ही व्यक्ति के लिए, क्योंकि दूसरी तरफ खाई, जरा सा भी असंतुलन, नुकसानदेह हो सकता है। निर्जन गांव के इस रास्ते का इस्तेमाल इक्का दुक्का लोग ही करते होंगे, इसलिए इस रास्ते की हालत खराब है।

रास्ते में गदेरे बरसात में खूब डराते हैं। कई वर्ष पहले पलायन कर चुके पूरे गांव में दोमंजिला भवन हैं। खिड़कियां और दरवाजे हैं। टीन की छतें हैं, घरों के सामने सुंदर आंगन हैं, पास ही बागीचे हैं, दूर तक खेत दिखाई देते हैं। खेतों के बीच में आम, अमरूद, आंवला, नींबू… के पेड़ खड़े हैं। कुछ खेतों में हल्दी बोई गई है।

बखरोटी का पुराना प्राइमरी स्कूल भवन खंडहर हो चुका है। इस स्कूल के एक कक्ष से नरेंद्रनगर शहर दिखता है।

बखरोटी गांव  बहुत सुंदर है, पर यहां बिजली नहीं है। बिजली के साथ ही, यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क सहित कई जरूरी सुविधाओं का अभाव है।

कोडरना ग्राम पंचायत के पूर्व प्रधान करीब 80 वर्षीय बुजुर्ग बुद्धि प्रकाश जोशी जी कहते हैं कि सरकार बखरोटी में बिजली पहुंचाए। वहां बिजली नहीं है। गांव में सुविधाएं पहुंचेंगी तो लोग वहां वापस लौट जाएंगे। उनका बचपन बखरोटी गांव में ही बीता।

कहते हैं कि सरकार वहां तक सड़क बना देती है तो गांव लौट जाऊंगा, मेरे गांव में बहुत संभावनाएं हैं। वहां की मिट्टी बहुत उपजाऊ है, हमने ऊसर भूमि पर एक साल में तीन-तीन फसलें ली हैं। वर्षा आधारित खेती है, पर कृषि व बागवानी के क्या कहने। हमने कई साल पहले बखरोटी गांव को छोड़ दिया, पर स्रोत से आ रहे पानी का बिल आज भी भरते हैं। हमें अपने गांव में रहना था, इसलिए वहां पेयजल योजना को लेकर गए।

बताते हैं कि वहां बिजली नहीं है। जंगल का रास्ता है, रास्ते में गदेरे हैं, जो बरसात में बड़ी बाधा हैं। पांचवीं तक स्कूल 1978 में खुला था। उनको तो बचपन में करीब चाढ़े चार किमी. चलकर स्कूल आना पड़ता था। पांचवीं के बाद से स्नातक तक की पढ़ाई तो देहरादून या फिर ऋषिकेश में होती है। छठीं से इंटर कालेज तक की पढ़ाई के लिए भोगपुर या रानीपोखरी के इंटर कालेज हैं।

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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