गाने में पक्षियों की जुगलबंदी
हरिद्वार। पौलैंड के वैज्ञानिक औसेजुक ने बोउबोउ नामक वनीय पक्षी की मधुर जुगलबंदी (डुएट सॉन्ग) गायन कला की वीडियो रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की, जिसमें नर पक्षी के गाए कुछ शब्दों के विन्यास को पूरा वाक्य बनाने में मादा पक्षी तुरंत ही अपने शब्दों (फ्रेजेस) को जोड़ देती है। यह जुगलबंदी (युगल गीत) इतनी जल्दी, सटीक व सलीके से होती है कि सुनने वाले को आभास होता है जैसे एक ही पक्षी गा रहा हो ।
हिंदी फिल्म अभिमान के इस गीत से पक्षी की गायन कला को इस तरह समझ सकते हैं, नर ने गाया “तेरे मेरे मिलन की” और मादा ने एक सेकेण्ड में ही बोल पूरे कर दिए “ये रैना” इस तरह गीत की एक पंक्ति “तेरे मेरे मिलन की ये रैना” नर मादा ने गाकर पूरी कर ली। इससे ज्ञात होता है की पक्षियों की सांस्कृतिक धरोहर कितनी समृद्ध है। इस तरह के सोलो (एकल), डुएट (युगल) व कोरस यानी समूह गीत का प्रचलन मनुष्य से लाखों वर्ष पूर्व पक्षियों में हो चुका था।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलसचिव व अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रो. दिनेश भट्ट ने अपने शोध की प्रस्तुति में अल्ट्रामैरिन फ्लाई कैचर नामक पक्षी की चर्चा की। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की ओर से जारी विज्ञप्ति में बताया गया है कि प्रो. भट्ट ब्रिटेन के बाइटन शहर में इंटरनेशनल बायोअकॉस्टिक्स काउंसिल के सिंपोजियम की अध्यक्षता तथा लंदन की नेशनल लाइब्रेरी में विजिट करके 13 सितम्बर को स्वदेश लौटे हैं।
प्रो दिनेश भट्ट के अनुसार ससेक्स यूनिवर्सिटी में पक्षी व वन्य जीवन के संवाद विज्ञान पर विश्व सम्मेलन में कई नई जानकारियां मिली हैं। उन्होंने बताया कि पूर्वी हिमालय क्षेत्र व दक्षिण हिमालयी क्षेत्र के इन पक्षियों की गायन कला में अंतर है। जीन ही नहीं संस्कृति एवं भू भौगोलिक परिस्थिति का भी पक्षी गीतों की संरचना एवं गायन कला पर सीधा एवं गहरा प्रभाव पड़ता है। इस तरह विश्व के अनेक भू भागों के रिकार्डेड सॉन्ग से ज्ञात होता है कि पक्षियों में गीतों का चलन व प्रणय निवेदन की संस्कृति अपने आप में अनूठी है। सूच्य है कि पक्षियों में गायन का केंद्र मस्तिष्क में होता है जो बसंत काल के प्रभाव से सक्रिय हो जाते हैं।
इस यात्रा का महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि “ब्रिटिश लाइब्रेरी (साउंड आर्काइव)” की क्यूरेटर डॉ. चेरिल टिप ने भारतीय पक्षियों के गीतों व संवाद विज्ञान की रिकॉर्डिंग को संकलित करने के लिए एक अलग सेक्शन बनाने की बात कही है। इस तरह दुनिया की सबसे पुरानी व ध्वनि संग्रहों की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में भारतीय पक्षियों के गीतों की ध्वनियां आधुनिक तरीके से संग्रहित हो सकेंगी,जो विश्व में पक्षी व जीव जगत के वैज्ञानिकों व कंजर्वेशन बायोलॉजिस्ट के लिए उपयोगी होगी।
प्रो. दिनेश भट्ट और डॉ. चेरिल की वार्ता में यह बात भी तय हुई कि पक्षियों के अतिरिक्त भारतीय लोक गीतों की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग्स भी ब्रिटिश साउंड आर्काइव में संकलित करने का प्रयास होगा, जिसमे गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का सांस्कृतिक प्रकोष्ठ सहयोग करेगा।
ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन वर्ष 1753 में स्थापित दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी मानी जाती है। यहां लगभग 200 मिलियन किताबें उपलब्ध हैं। इस लाइब्रेरी में वाइल्डलाइफ व साउंड आर्काइव सेक्शन है। इस लाइब्रेरी में लगभग 10 लाख डिस्क व हजारो कैसेट्स हैं जिनमे वन्यजीवों के गीत एवं वीडियो रिकॉर्डिंग्स हैं। इंजीनियर्स की देखरेख में विभिन्न ध्वनियों, गीतों को सुरक्षित रखा गया है।
लाइब्रेरी की वेबसाइट पर लगभग 60 हजार वन्यजीव व पक्षियों की आवाजें निशुल्क उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त लाइब्रेरी में लगभग सौ साल पुराने सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाटकों की रिकॉर्डिंग्स भी संग्रहित कर रखी गई हैं। लाइब्रेरी में पुराने जमाने के ग्रामोफ़ोन्स, रेडियो, डिस्क प्लेयर्स, कैसेट्स भी सुरक्षित रखे गए हैं।