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संघर्ष गाथाः टिहरी गढ़वाल के गांव की बेटी रेखा अपने दम पर बना रही गायकी में पहचान

जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण के साथ मंचों को साझा करती हैं भीमवती 'रेखा'

न्यूज लाइव ब्लॉग। राजेश पांडेय

टिहरी गढ़वाल के सिराई गांव की भीमवती ‘रेखा’, जब छोटी थीं तो मां को गाने गुनगुनाते हुए सुनतीं। उन्होंने बचपन में जो भी कुछ गाना सीखा, मां से ही जाना समझा। जब मात्र 12 वर्ष की थीं। मां का देहांत हो गया था। पिता केंद्रीय पुलिस बल में सेवारत थे, इसलिए ड्यूटी पर बाहर ही रहते थे। दादी ने पांच भाई बहनों को पाला। पढ़ाई लिखाई के साथ खेतीबाड़ी-पशुपालन की जिम्मेदारी उन सहित सभी भाई बहनों ने मिलकर संभाली।

वर्तमान में देहरादून जिला के माजरीग्रांट ग्राम पंचायत में रह रहीं रेखा कहती हैं, “उन्होंने गीत गाने की कहीं से कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। स्कूल के मंचों पर गाती थीं, लोगों से खूब सराहना मिलती थी। कभी नहीं सोचा था कि उनको लोकगायिका के रूप में पहचान मिलेगी। उत्तराखंड के संस्कृति विभाग से ऑडिशन के बाद संबद्धता मिली, पर बहुत कम प्रोग्राम मिल पाते हैं।”

“पर, धीरे-धीरे ही सही उनकी गायकी का सफर जारी है। प्रख्यात गीतकार, गायक जागर पद्मश्री सम्राट प्रीतम भरतवाण ने उनको बहुत प्रोत्साहित किया। पहले उनके साथ कोरस में (समूह में) गाती थी, पर एक दिन वो भी आया, जब उनको प्रीतम जी के साथ लीड में गाने का अवसर मिला। यह उनका सौभाग्य है कि प्रीतम जी, जैसे प्रसिद्ध गायक के साथ उनको कई बार मंच साझा करने का मौका हासिल हुआ।”

एक किस्सा साझा करते हुए बताती हैं, “साल 2011 की बात है। मैं राजपुर रोड स्थित एक शॉप पर सेवाएं दे रही थी। प्रीतम जी का फोन आया, रेखा कहां हो। मैंने उनसे कहा, मैं शॉप पर हूं। प्रीतम जी बता रहे थे कि उनके पास मेरा फोन नंबर भी नहीं था। मैंने उनको नववर्ष की शुभकामनाएं दी थीं, इसलिए वो मेरा नंबर ढूंढ सके।”

उन्होंने कहा, “क्या तुम तुरंत स्टूडियो आ सकती हो। मैंने उनसे कहा, ठीक है, मैं आ जाती हैं। उन्होंने मुझसे शॉप का पता पूछा और मुझे लेने के लिए गाड़ी भेज दी। मैंने तुरंत शॉप बंद की और पास में ही एक दीदी को बताया कि मैं इंश्योरेंस जमा करने जा रही हूं। गाड़ी से सीधा स्टूडियो पहुंचे और प्रीतम जी ने बताया, रेखा तुम्हें गढ़वाली फिल्म कमली के लिए गाने रिकार्ड करना है।”

“मैं उनकी बात सुनकर भावुक भी हो गई। किसी फिल्म के लिए गाना, मेरे लिए बड़ा अवसर था। आपको यकीन नहीं होगा, मैंने मात्र आधा घंटे में उस गीत को रिकार्ड किया। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह गीत फिल्म के लायक गाया भी है या नहीं। मैं रिकार्डिंग कराकर वापस शॉप पर आ गई। क्योंकि कई बार ऐसा होता है, आप स्टूडियो में गाना रिकार्ड कराकर भी आ जाओ, पर वो गाना फिल्म का हिस्सा नहीं बन पाता। ”

“कुछ दिन बाद, प्रीतम जी का फोन आया और उन्होंने कहा, रेखा तुम्हारा गाना फिल्म में शामिल हो गया है। यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई। कमली फिल्म और उसके गानों को बहुत पसंद किया गया। मेरे लिए यह बड़ी उपलब्धि है। कमली -2 फिल्म का गाना भी मुझसे ही गाने को कहा गया। अभी हाल ही में, मैंने गाना रिकार्ड कराया है।”

रेखा बताती हैं, “अभी तक उन्होंने लगभग डेढ़ सौ गाने विभिन्न एलबम, कैसेट्स के लिए रिकार्ड कराए हैं। उनका यूट्यूब चैनल Yaad Aandi Janmabhumi  है।”

रेखा के अनुसार, “वो किसी कंपनी में सेवाएं प्रदान कर रही हैं, इसलिए रिकार्डिंग के लिए रविवार का समय ही मिल पाता है। कभी स्टेज शो के लिए जाना पड़ता है तो उनका ध्यान इस बात पर रहता है कि ड्यूटी के समय से पहले घर जरूर पहुंच जाएं। क्योंकि स्टेज शो, लोक संस्कृति विभाग के प्रोग्राम तो कभी कभार ही मिलते हैं, नौकरी से होने वाली आय से तो घर चलता है।”

“आवाज साहित्यिक संस्था मुनिकी रेती के संयोजक तथा डिजिटल कार्यक्रम के संस्थापक डॉ. सुनील दत्त थपलियाल ने उनको गीत संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया। डॉ. थपलियाल उनको संस्था के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आमंत्रित करते हैं, जिससे उनकी मेधा को पहचान मिली है।”

रेखा बताती हैं, “पति हरीश कुमार हमेशा प्रेरित करते हैं और उनके सहयोग की वजह से ही मुझे गायकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने का हौसला मिलता है। वो हर कदम पर मेरे साथ हैं। इसलिए उनके कदम गायकी के क्षेत्र में आगे बढ़ते जाएंगे। संघर्ष का क्या है, यह तो जीवन का हिस्सा है, इसका सामना तो खुशी-खुशी करते रहे हैं, करते रहेंगे।”

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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