
मयदानव ने बनाया था इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के लिए अद्भुत सभा भवन
मय दानव को मयासुर भी कहा जाता है, जो बहुत होशियार शिल्पकार था। अर्जुन के कहने पर, मय दानव ने युधिष्ठिर के लिए राजधानी इन्द्रप्रस्थ में बड़ा सुन्दर सभाभवन बनाया था, जिसमें जल के स्थान पर थल और द्वार के स्थान पर दीवार दिखाई पड़ते थे। इसी सभाभवन को देखते हुुए दुर्योधन जल में गिर गया था। उसे जल में स्थल का भ्रम हो गया था। यह प्रसंग उस समय का है, जब युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय दुर्योधन इस महल को देखने पहुंचा था।
मय दानव का प्रसंग महाभारत में खांडव वन दहन में है। मत्स्यपुराण में अठारह वास्तुशिल्पियों के नाम दिए गए हैं, जिनमें विश्वकर्मा और मय दानव का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस पुराण में उल्लेख मिलता है कि जिस तरह देवताओं के वास्तु शिल्पी विश्वकर्मा थे, ठीक उसी तरह दानवों के वास्तु शिल्पकार मय दानव था।
विश्वकर्मा के पांच पुत्र- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और इन्होंने वैदिक काल में कई वस्तुओं का आविष्कार किया। मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चाँदी से जोड़ा जाता है।
खांडव वन के दहन के समय अर्जुन ने मय दानव को अभय दान दिया था। इससे कृतज्ञ होकर मय दानव ने अर्जुन से कहा, आपने मेरे प्राणों की रक्षा की है, इसलिए आप आज्ञा दें, मैं आपकी क्या सेवा करूँ?
अर्जुन ने उत्तर दिया- मैं किसी बदले की भावना से उपकार नहीं करता, यदि तुम्हारे अन्दर सेवा भावना है तो तुम श्रीकृष्ण की सेवा करो।
मयासुर ने किसी प्रकार की सेवा की आज्ञा माँगी तो भगवान श्रीकृष्ण ने उससे कहा- तुम युधिष्ठिर की सभा के लिए ऐसे भवन का निर्माण करो, जैसा कि इस पृथ्वी पर अभी तक न बना हो। इस पर मयासुर ने अद्वितीय भवन का निर्माण कर दिया। इसके साथ ही उसने पांडवों को देवदत्त शंख, वज्र अस्त्र से भी कठोर रत्न से जड़ित गदा तथा मणिमय पात्र भेंट किया। कुछ समय बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का सफलतापूर्वक आयोजन किया।
यज्ञ के बाद भी कौरव राजा दुर्योधन अपने भाइयों के साथ युधिष्ठिर का अतिथि बना रहा। एक दिन दुर्योधन ने मय दानव द्वारा निर्मित राजसभा को देखने की इच्छा जताई, जिसे युधिष्ठिर ने सहर्ष स्वीकार किया। दुर्योधन उस सभा भवन की शिल्पकला को देख कर आश्चर्यचकित रह गया।
मय दानव ने उस सभा भवन का निर्माण इस प्रकार से किया था कि वहां पर अनेक प्रकार के भ्रम उत्पन्न हो जाते थे, जैसे कि स्थल के स्थान पर जल, जल के स्थान पर स्थल, द्वार के स्थान पर दीवार तथा दीवार के स्थान पर द्वार दिखाई पड़ता था। दुर्योधन को भी उस भवन के अनेक स्थानों में भ्रम हुआ तथा उपहास का पात्र बनना पड़ा।
विश्वकर्मा देवताओं के और मय दानव असुरों के वास्तुकार थे। कहते हैं कि उस काल की आधी दुनिया को मय ने ही बनाया था। वह निर्माण के लिए पत्थर तक को पिघला सकता था।