डोईवाला सीटः क्या पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र बचा पाएंगे अपना गढ़
इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे त्रिवेंद्र ने अपने सियासी साथी गैरोला को उतारा है मैदान में
देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा की डोईवाला सीट पर इस बार भाजपा से ज्यादा पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रतिष्ठा दांव पर है। पार्टी प्रत्याशी के लिए बागी जितेंद्र नेगी समस्या बने हैं तो दूसरी और इस चुनाव का नतीजा यह भी तय करेगा कि त्रिवेंद्र ने सीएम रहते इस क्षेत्र के लिए क्या इतना काम किया है कि वे अपनी दम पर अपने सियासी साथी को जीत दिलवाने की क्षमता रखते हैं।
2017 में डोईवाला सीट से चुनाव जीतकर त्रिवेंद्र मुख्यमंत्री बने थे। वो चार साल तक सीएम रहे। अब चुनाव का मौका आया तो उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद से ही इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी को लेकर अटकलें तेज हो गई थीं। लंबे समय से तैयारी कर रहे सौरभ थपलियाल और जितेंद्र नेगी को लगा कि इस बार टिकट उन्हें ही मिलेगा। लेकिन अप्रत्याशित तौर पर दीप्ति रावत भारद्वाज का नाम आ गया।
बताया जा रहा है कि इसके बाद त्रिवेंद्र एक बार फिर से सक्रिय हुए और अपने साथी शिष्य बृजभूषण गैरोला के लिए टिकट ले आए। टिकट मिलने के बाद से त्रिवेंद्र और उनके समर्थक गैरोला के पक्ष में खासे सक्रिय हो गए। सौरभ और जितेंद्र को नामांकन वापसी के लिए समझाया, लेकिन कोई माना नहीं। आखिरकार, सांसद अनिल बलूनी सौरभ को समझाने में सफल रहे। लेकिन जितेंद्र ने किसी की भी नहीं सुनी।
अब जितेंद्र स्थानीय प्रत्याशी के नाम पर तमाम भाजपाइयों का समर्थन मांग रहे हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत का विरोधी खेमा नेगी के साथ जुड़ गया है। वहीं, त्रिवेंद्र के समर्थक गैरोला के साथ हैं। अब यह तय हो गया है कि इस सीट पर गैरोला की जीत त्रिवेंद्र की प्रतिष्ठा से ही जुड़ी है। अधिकतर स्थानीय भाजपाइयों की फेसबुक पोस्ट साफ बता रही है कि वो जितेंद्र के साथ हैं। ऐसे में इस चुनाव का नतीजा यह भी तय करेगा कि त्रिवेंद्र ने चार साल सीएम रहते इस क्षेत्र का कितना विकास किया और कितने भाजपाइयों को अपने साथ जोड़ा। वहीं, डोईवाला सीट पर कांग्रेस ने गौरव चौधरी को मैदान में उतारा है।
राज्य बनने के बाद से डोईवाला सीट पर चुनाव
राज्य बनने से पहले डोईवाला क्षेत्र मसूरी सीट का हिस्सा था। उत्तराखंड विधानसभा के पहले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कांग्रेस के वीरेंद्र मोहन उनियाल को मात्र 1536 वोट से हराया था। त्रिवेंद्र को 18926 तथा वीरेंद्र मोहन उनियाल को 17390 वोट मिले थे। 2007 में भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कांग्रेस के वीरेंद्र मोहन उनियाल को हराया।
2012 में त्रिवेंद्र डोईवाला की बजाय रायपुर सीट से चुनाव लड़े और हार गए। उनको कांग्रेस के उमेश शर्मा काऊ ने मात्र 474 वोट से हराया था। काऊ को 29900 तथा त्रिवेंद्र सिंह को 29426 वोट हासिल हुए थे। वहीं, डोईवाला में भाजपा प्रत्याशी रमेश पोखरियाल निशंक ने कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को हराया। निशंक को 23448 और बिष्ट को 22176 वोट मिले। 2014 में निशंक हरिद्वार लोकसभा सीट पर निर्वाचित हो गए। उपचुनाव में त्रिवेंद्र सिंह रावत का मुकाबला कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट से हुआ। त्रिवेंद्र यह चुनाव हार गए थे। 2017 के चुनाव में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हीरा सिंह बिष्ट को पराजित किया था। इसके बाद त्रिवेंद्र मुख्यमंत्री बने।
कुल मिलाकर राज्य गठन के बाद से डोईवाला सीट भाजपा का गढ़ रही है। यहां केवल उपचुनाव में ही कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई थी। 2017 के चुनाव में डोईवाला ने त्रिवेंद्र सिंह को 58502 यानी कुल मतदान के 61.08 फीसदी वोट दिए थे, जबकि कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को 33633 (35.12फीसदी) वोट ही मिले थे। इस तरह त्रिवेंद्र यहां 24,869 वोटों के अंतर से जीते थे।