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धन सिंह जी सुन रहे हो, राजधानी में यह हाल है तो और जगह क्या होगा
न्यूज लाइव रिपोर्ट
देहरादून। राजधानी के सरकारी अस्पतालों में मरीज बेहाल हैं और सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत कुछ फ्री होने का दावा करती रही है। यहां कई सरकारी डॉक्टर मरीजों के पर्चों पर उन दवाइयों को लिख रहे हैं, जो न तो उनके दवाखाने में मिलती हैं और न ही जनऔषधि केंद्र में मिल पा रही हैं। डॉक्टर दवाइयों के ब्रांड नेम पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। गरीब मरीज महंगी दवाइयां खऱीदने को विवश हैं, आखिर उनको अपना इलाज जो कराना है।
अगर, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे मरीजों की व्यथा सुन ली है तो कार्रवाई या जांच के आदेश भी दिए होंगे। उनके एक्शन से व्यवस्था में क्या सुधार हुआ है, की जानकारी भी शायद जल्द ही मिल जाएगी।
हिन्दुस्तान अखबार की पड़ताल में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल खुलकर सामने आया। इस पड़ताल के अनुसार, रिपोर्टर चांद मोहम्मद ने मंगलवार को दून अस्पताल आए 50 रोगियों से बात की, जिनमें से 40 यानी 80 फीसदी ने कुछ ही दवा अस्पताल की डिस्पेंसरी से मिलने और कई महंगी दवा बाजार से खरीदने की जानकारी दी। पर्चे पर 50 फीसदी दवा बाहर की लिखी गई हैं।
बताया गया है, स्किन, हड्डी रोग, सर्जरी, ईएनटी, डेंटल, आई, टीबी चेस्ट, मेडिसन, गायनी, पीडिया विभाग के कई मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ी। एक सप्ताह की दवा खरीदने के लिए मरीजों को 500 से 1500 रुपये बाहर मेडिकल स्टोरों पर देने पड़ रहे हैं।
सरकारी दावों की कलई खोलने वाली इस खबर में कुछ मरीजों से बात की गई है। यहां तक कि टीबी चेस्ट के रोगी को भी बाहर से दवा खरीदने पड़ रही है, जबकि टीबी उन्मूलन अभियान में सरकार बड़ा बजट उपलब्ध कराती रही हैं। टीबी चेस्ट के मरीज को 11 में से छह दवाइयां बाहर से खरीदनी पड़ गईं।
मनमानी की हद तो यहां तक है कि डॉक्टर जनऔषधि केंद्र से खरीदी गई दवा को लौटा रहे हैं। यहां केवल ब्रांड का खेल चल रहा है। अखबार की पड़ताल में सामने आया मरीज को 100 रुपये की दवा 250 रुपये में खरीदनी पड़ रही है।
