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वीडियोः बड़ी नौकरी छोड़कर उत्तराखंड आई इस बेटी ने दुनिया से जोड़ दिए लोकल उत्पाद

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग
बहुराष्ट्रीय कंपनी में लर्निंग डेवलपमेंट मैनेजर (Learning Development Manager) की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर कंप्यूटर इंजीनियर (Computer Engineer) स्तुति उत्तराखंड आ गईं। मूल रूप से गढ़वाल की रहने वाली स्तुति की पढ़ाई लिखाई उत्तराखंड से बाहर ही हुई। उनके पिता सेना में थे। उन्होंने परिवार के साथ पूरा हिन्दुस्तान घूमा।
उनको पहाड़ अच्छे लगते हैं और मन गंगा तट पर बसने का था। इसलिए उत्तराखंड आ गईं और कुछ ऐसा शुरू किया, जिसमें उनका मन भी लगता है और गढ़वाल की समृद्ध संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों (International Travelers) से रू-ब-रू भी कराता है।

 “मुझे गंगा जी ने बुला लिया। छह साल हो गए ऋषिकेश में रहते हुए। मुझे घूमने का शौक था, पर मन हिन्दुस्तान से बाहर जाने का कभी नहीं रहा। चाहती थी, थोड़ी शांत सी जगह हो, जहां मैं रह सकूं। यहां मन को खुशी मिलती है। अब यहीं की हो गई हूं। रही बात मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने की, वहां पैसा तो है, पर मेरे मन को जो खुशी चाहिए थी, वो नहीं मिली। खुशियां तलाशते हुए यहां पहुंच गई”, स्तुति कहती हैं।
लक्ष्मणझूला स्थित महर्षि बुटिक – कैफे, जिसका संचालक स्तुति करती हैं। फोटो- डुगडुगी
रविवार को योग शिक्षक प्रशांत शर्मा के साथ किसी कार्य से लक्ष्मणझूला जाना हुआ। जाने माने फोटोग्राफर त्रिभुवन सिंह चौहान जी से भी मुलाकात हुई। उन्होंने हमारी मुलाकात स्तुति और देवर्षि से कराई। देवर्षि इन दिनों मुंबई में रहते हैं और पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। उनकी एजुकेशन नीदरलैंड में हुई है और महर्षि बुटिक-कैफे के संचालन में स्तुति को सहयोग करते हैं।
इसी दीवाली शुरू हुआ महर्षि बुटिक-कैफे (Maharishi Boutique- Café) कुछ खास है। यह एक व्यावसायिक पहल तो है, पर इसका विजन सोसाइटी और कलचर के लिए कुछ अलग करने का है।
हरिद्वार से लेकर ऋषिकेश, मुनिकी रेती, तपोवन, स्वर्गाश्रम, लक्ष्मणझूला क्षेत्र में बहुत सारे होटल्स, रेस्त्रां, कैफे और बुटिक हैं। सब एक से बढ़कर एक हैं। इसमें कुछ अलग क्या है, यह जानने के लिए हमने स्तुति और देवर्षि से बात की।
स्तुति योग शिक्षिका (Yoga Teacher) भी हैं। वो बताती हैं, योग से मेरी लाइफ स्टाइल (life style) चेंज हुई। जब आप प्रकृति से जुड़ते हो तो सेल्फ सस्टेनिंग (self-sustaining) यानी स्वयं को संभालने का गुण विकसित होता है। उनका मानना है, प्रकृति ने आपको सबकुछ दिया है, पर क्या हम उसको संरक्षित कर पा रहे हैं। आपको जो भी कुछ मिलता है, उसको वापस लौटाना होता है।
कंप्यूटर इंजीनियर से योग शिक्षिका बनीं स्तुति उत्तराखंड लौटीं और यहां शुरू किया क्रिएटिव आउटलेट। फोटो- डुगडुगी
उन्होंने बुटिक-कैफे को यूरोपियन टच (European touch) दिया है,लेकिन यहां मिलने वाले प्रोडक्ट्स स्थानीय स्तर पर तैयार किए गए हैं। बुटिक में रखे परिधान दिखाते हुए स्तुति बताती हैं, इनको हमने डिजाइन किया है, पर इन उत्पादों को स्थानीय महिलाओं ने बनाया है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों (Economic weaker families) की महिलाओं से एक एनजीओ ने ये परिधान बनवाए हैं।
सभी परिधान के डिजाइन और उसमें इस्तेमाल कच्चा माल (Raw Material) ग्राहकों को पसंद आ रहे हैं। कपड़ा स्थानीय स्तर पर मिलने वाले फाइबर (fiber) से बनाया गया है। इनके लुक, कलर और डिजाइन में इंटरनेशनल ट्रैवलर्स की पसंद को ध्यान में रखा गया है। यहां देश-विदेश से यात्री आते हैं, स्थानीय व्यंजनों (local foods) का लुत्फ भी उठाते हैं और खरीदारी भी करते हैं।
यहां उन यूरोपियन डिजाइनर की बनाई ज्वैलरी भी मिल जाएगी, जो हमारे देश हिन्दुस्तान से मोहब्बत करते हैं और यहां बार-बार आते हैं।
स्तुति के अनुसार, कैफे में गढ़वाल की थाली मशहूर है, जिसके लिए ताजा साग-सब्जियां आसपास के गांवों से लाते हैं। एक युवा हाइड्रापोनिक्स Hydroponics से सब्जियां उगाते हैं। हम उनसे सब्जियां मंगाते हैं। लोग हमारे साथ दिल से जुड़े हैं और खुश होकर काम कर रहे हैं।
लक्ष्मणझूला स्थित स्तुति के क्रिएटिव आउटलेट में विदेशी यात्री पहुंचते हैं। फोटो- डुगडुगी
एक बिटिया ने हमें खुद से बनाई क्राकरी दी, उनका देहरादून में स्टूडियो (Studio in Dehradun) है। अब वो बेंगलुरू चली गई है। हमें स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम करना इसलिए भी अच्छा लग रहा है, हमारा स्टार्टअप (Startup) स्थानीय निवासियों के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष (Direct and Indirect) रूप से आजीविका का स्रोत (Source of livelihood) बन गया है।
आप अन्य से अलग कैसे हैं, के सवाल पर स्तुति का कहना है, उत्तराखंड से युवा पलायन (Migration from Uttarakhand) कर रहे हैं और हमने उत्तराखंड में बहुत सारी संभावनाओं को देखा। यहां के युवाओं के पास टैलेंट है। उत्तराखंड के शेफ दुनियाभर में जाने जाते हैं। यहां दुनिया के सबसे अच्छे शेफ हैं। हम युवाओं को अवसर देने के लिए प्लेटफॉर्म तैयार कर रहे हैं। हम फ्रेशर्स को भी मौका देने के लिए ट्रेनिंग दे रहे हैं। यहां दो शेफ सहित पांच लोगों को स्टाफ है। सभी गढ़वाल के युवा हैं। उम्मीद है, हमें और स्टाफ की जरूरत होगी।
बुटिक में स्थानीय उत्पादों से तैयार परिधान हैं, जिनको डिजाइन तो स्तुति ने किया है, पर इनको स्थानीय महिलाओं ने बनाया है। फोटो- डुगडुगी
स्तुति बताती हैं, बुटिक-कैफे में कस्टमर्स में अवेयरनेस बढ़ाने की पहल की जा रही है। हम चाहते हैं, देश विदेश का कोई भी यात्री यहां से गढ़वाल में बने उत्पादों को ही लेकर न जाए, बल्कि इन उत्पादों की पूरी जानकारी भी लें। इससे वो अपने देश में यहां के उत्पादों के बारे में बता सकते हैं।
” हमारी जड़ें उत्तराखंड में हैं, पर शाखाएं इंटरनेशनल हैं। हमने स्थानीय उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए क्रियेटिविटी को माध्यम बनाया है। फुल फ्रीडम के साथ क्रियेटिविटी में अंतर्राष्ट्रीय मानकों (International Standards) का भी पूरा ध्यान रखा है। यही वजह है कि हम देश विदेश घूमने वाले यात्रियों से जुड़ रहे हैं,” स्तुति बताती हैं।
वो कहती हैं, इंटरनेशनल टच के लिए इंटरनेशनल लोग चाहिए। उत्तराखंड आकर इंटरनेशनल ट्रैवलर पिज्जा या पास्ता (pizza or pasta) खाना पसंद नहीं करेगा, क्योंकि वो तो दुनिया घूमते हैं, उन्होंने यह सबकुछ खाया है। इनमें से अधिकतर यात्री चाहते हैं, उनको स्थानीय भोजन मिले। हमारे पास, स्थानीय खानपान, खाद्य पदार्थों को परोसने और इनके बारे में बताने का अवसर है। यही अवसर हमें और हमारे उत्पादों को देश-विदेश से जुड़ने की संभावनाओं को बढ़ाता है।
हम विदेशी पर्यटकों (Tourist from Foreign) को गढ़वाल की थाली (Garhwal ki Thaali) ऑफर करते हैं। हमारे मैन्यू में बिच्छू घास (कंडाली) का साग, मंडुआ की रोटी, मिलेट खीर (Millet’s Kheer), चटनी, गहथ की दाल, अरबी की सब्जी, सफेद चावल, लाल चावल, सलाद, पापड़ एवं पकोड़ा शामिल हैं। ये सभी उत्पाद स्थानीय हैं और इनको गढ़वाल से गांवों से ही खरीदा जाता है। बहुत खुशी होती है, जब पर्यटक स्थानीय व्यंजनों की तारीफ करते हैं।
स्तुति ने बुटिक में दिखाईं विदेशी डिजाइनर्स की बनाई ज्वैलरी। फोटो- डुगडुगी
बुटिक-कैफे में विदेशी ब्रांड एवं डिजाइनर्स की ज्वैलरी भी है। यूरोप की डिजाइनर जूलिया ने रिसाइकल सिलवर से ज्वैलरी तैयार की है। स्तुति बताती हैं, जूलिया हर वर्ष ऋषिकेश पहुंचती हैं। जूलिया पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करती हैं। कोविड की वजह से इन दिनों यहां नहीं आ पाईं। इटली की एक और डिजाइनर अपने हाथों से माला पिरोती हैं। उनका क्रिएशन दिल से है। जो हमें छू जाता है।
स्तुति भीमल के रेशों और हर्षिल की ऊन की बने फुटवियर (natural fiber’s footwear) दिखाते हुए बताती हैं, ये स्थानीय महिलाओं ने बनाई हैं। विदेशियों को ये चप्पलें बहुत पसंद हैं।
स्थानीय उत्पादों से तैयार सजावटी सामान एवं योगा मैट। फोटो- डुगडुगी
उनके पास गंगा जी के पत्थरों की तराश कर बनाई गईं कटोरियां (Bowls) हैं। ये कटोरियां कोटद्वार के एक युवा ने बनाई हैं।
उन्होंने बताया कि स्थानीय कारीगरों के बनाए शोपीस हैं, जो बेहद आकर्षक हैं। स्थानीय महिलाओं द्वारा तैयार योगा मैट्स (Yoga mats) हैं, जो हाथ से बनाए गए हैं। तांबे की गागर, जो हमारी परंपरा का हिस्सा हैं, भी यहां मिल जाएंगे।
” हमें खुशी है, जो भी बनाया है, लोग अच्छे से रिसीव कर रहे हैं। हम इसी कार्य को आगे बढ़ाना चाहते हैं। हम कम्युनिटी के साथ मिलकर लोगों को आजीविका से जोड़ना चाहते हैं। हम सोसाइटी और प्रकृति से मिली वस्तुओं को उन्हीं को लौटाना चाहते हैं।
हमारी कोशिश है कि विदेशी पर्यटकों को भारत की समृद्ध संस्कृति एवं खानपान के बारे में बताएं। उनके साथ वो जानकारी साझा करें, जो उनके लिए नई हों। उनको गढ़वाल के गांवों (Villages of Garhwal) से परिचित कराएं। यह हमारी छोटी सी पहल है,” स्तुति कहती हैं।
मुंबई से आईं प्रेरणा और साथ में गोपाल कृष्ण। फोटो- डुगडुगी
मुंबई (महाराष्ट्र) से उत्तराखंड भ्रमण पर आईं प्रेरणा बुटिक-कैफे को कुछ खास बताती हैं। कहती हैं, यहां शांति है, सुकन है और प्रकृति के करीब है। मुंबई से आते हुए उत्तराखंड के बारे में जो सोच रही थी, उत्तराखंड उससे भी कहीं अच्छा है। यहां का भोजन तो बहुत लाजवाब है। यहां पर्यटन की बहुत संभावनाएं हैं। प्रेरणा मुंबई में वेंचर कैपिटल फर्म में जॉब करती हैं। उनकी कंपनी स्टार्टअप में इनवेस्ट करती है।
महर्षि बुटिक-कैफे में देवर्षि। फोटो- डुगडुगी
देवर्षि बताते हैं, पंद्रह साल पहले पढ़ाई के लिए नीदरलैंड गया। मुझे वहां महसूस हुआ कि मैं अपने कलचर से दूर होता जा रहा था। मैं यहां आ गया। यहां स्थानीय उत्पादों से बनाया गया उत्तराखंड की संस्कृति के अनुरूप भोजन है। हमारे यहां भोजन का टेस्ट इंडियन है, प्रेजेंटेशन यूरोपियन है। हम इसे वेंचर नहीं बल्कि क्रियेटिव आउटलेट कहना ज्यादा पसंद करेंगे।
हमने शेफ नागेंद्र से बात की, जो गढ़वाल के निवासी हैं। बताते हैं, फेस्टिवल आयोजित करने की योजना है। गढ़वाल की थाली हमारी प्रमुख है। हमें उस समय बहुत अच्छा लगता है, जब कोई विदेशी पर्यटक भोजन की तारीफ करता है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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