उत्तराखंड में सास बहू की यह जोड़ी बेमिसाल है
रुद्रप्रयाग जिला के खड़पतिया गांव में सास चंद्रो देवी और बहू सुलोचना से मुलाकात
राजेश पांडेय। रुद्रप्रयाग
“पति की मृत्यु के बाद से सास ने हमें कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि हम अकेले हैं। वो हमारी चिंता करती हैं और हम उनकी। वो मुझे स्नेह भी करती हैं और डांटती भी हैं। मेरे बदरी-केदार तो मेरी सास हैं। जब हम खेतों से घर लौटते हैं, हमें घर का दरवाजा खुला मिलता है, यह हमारा सौभाग्य है कि न हम कभी अकेले रहते हैं और न ही हमारा घर।” 58 साल की सुलोचना देवी, हमें अपनी 95 वर्षीय सास चंद्रो देवी के बारे में बताते हुए गर्व महसूस करती हैं।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिला के खड़पतिया गांव के सीढ़ीदार खेतों में इन दिनों मंडुआ, सोयाबीन की बुवाई चल रही है। वहीं पास में एक घर के आंगन में चंद्रो देवी और सुलोचना गेहूं की मुट्ठियां बना रहे हैं। दो दिन पहले ही वो अपने खेत से गेहूं काटकर लाए हैं। इस इलाके में गेहूं अभी भी नहीं पका। बारिश, ओलावृष्टि और जंगली जानवरों से बचाने के लिए गेहूं काटकर घरों में सुखाया जा रहा है।
बुजुर्ग चंद्रोदेवी हमें देखकर बहुत खुश हो गईं। हमने उनके चरण छूकर आशीर्वाद लिया। उन्होंने स्नेह से हमें गले लगाया और माथा चूमा। उनकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। सुलोचना देवी बताती हैं, जब भी कोई घर पर आता है, सास को बहुत खुशी होती है। वो चाहती हैं कि लोग उनके पास आकर बैठें, उनसे बातें करें। उनके साथ समय बिताएं। वो सभी को कुछ न कुछ खिलाकर भेजती हैं। उनका मानना है, खुश मन से किसी को कुछ खिलाने पिलाने, सम्मान देने से घर में बरकत बनी रहती है। गढ़वाली बोली में चंद्रोदेवी कहती हैं, आप यहां आते रहना।
चंद्रोदेवी के नाती, पौते जब भी घर पर आते हैं, उनके बिस्तर पर सो जाते हैं। वो कहते हैं, हमें दादी के पास बहुत अच्छा लगता है। उनके साथ दादी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता।
गेहूं के तनों की मुट्ठियां बना रहीं दादी से हमने पूछा आप यह क्या कर रहे हो। उन्होंने तीन शब्द में जवाब दिया, मुट्ठियां बना रही। इससे क्या होगा, दादी बोलीं- खाने का गुजारा।
क्या आप अपनी बहू को डांटती हैं, के सवाल पर चंद्रोदेवी हंसते हुए ‘हां’ में जवाब देती हैं। सुलोचना कहती हैं, इनको मेरी चिंता रहती है। घर से बाहर कहीं जाने पर देरी होने पर हमें इस बात का डर रहता है कि सास नाराज हो जाएंगी। वो हमसे बहुत प्यार करती हैं, इसलिए घर पहुंचते ही सबसे पहला सवाल होता है, कहां थे इतनी देर। यही हमारा सबकुछ हैं और हम इनके सबकुछ, इसलिए प्यार के साथ नाराज होना तो बनता है।
उनके पौत्र सतीश कुमार बताते हैं कि दादी हमें बहुत प्यार करती हैं, उनका गुस्सा और डांट फटकार हमारे लिए आशीर्वाद ही है। वो हमें समय का पाबंद बनाती हैं। वो चाहती हैं, घर के सभी काम समय पर हों। घर में साफ-सफाई बनी रहे। खाना समय पर खाएं और इधऱ-उधऱ फालतू समय बर्बाद न करें। हमारे देर तक सोने या जागने, घर में पानी नहीं भरने, खेतों में समय पर नहीं जाने, घर के किसी भी कामकाज में देरी होने या फिर घर में देरी से पहुंचने पर दादी को गुस्सा आ जाता है। समय पर चाय नहीं बनी या फिर घर में झाड़ू नहीं लगा तो दादी खुद ही चाय बनाने रसोई में चली जाती हैं। दादी को पता है कि अगर वो चाय बनाने रसोई में जाएंगी या फिर पानी भरने के लिए बर्तन उठाएंगी तो हम सब उनको रोक देंगे और अपने-अपने काम करने लगेंगे। हमारी दादी जानती हैं कि हमारे से घर के काम कैसे लिए जाते हैं।
बुजुर्ग चंद्रोदेवी को खाने में हलवा, मैगी, चाऊमीन बहुत पसंद हैं। वो भात नहीं खातीं। कहती हैं रोटी दांतों से नहीं चबती। वो हमसे कहती हैं, मैं तुम्हें चाय बनाकर पिलाऊंगी। यहां आते रहना, अच्छा लगता है।
जब हम वापस लौटे तो दादी ने स्नेह से हमारा माथा चूमा और गले से लगा लिया। दादी बोलीं, तुम यहां आते रहना। मेरे पास बैठकर समय बिताना।
- रेडियो केदार से साभार