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उत्तराखंडः धामी की कैबिनेट में महिलाओं की संख्या बढ़ने के आसार

2022 के विधान चुनाव में आठ महिला विधायकों में से छह भाजपा के टिकट पर निर्वाचित

पुष्कर सिंह धामी कल (23 मार्च 2022) उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। धामी अपना कार्यकाल बरकरार रखते हुए राज्य के 12वें मुख्यमंत्री होंगे। उत्तराखंड में यह पहला मौका है, जब जनता ने 20 साल से चले आ रहे ट्रेंड को तोड़ा है। माना जा रहा है कि इस ट्रेंड को तोड़ने में महिला मतदाताओं ने बड़ी भूमिका निभाई है। इस बार विधानसभा में आठ महिला विधायक हैं, जिनमें से पांच भाजपा के टिकट पर निर्वाचित हुईं।

इस बार 2022 में आठ महिलाएं विधानसभा पहुंची हैं, जिनमें भाजपा से शैलारानी रावत (केदारनाथ), रेखा आर्य (सोमेश्वर), सविता कपूर (देहरादून कैंट), रेणु बिष्ट (यमकेश्वर), ऋतु भूषण खंडूड़ी (कोटद्वार) व सरिता आर्य (नैनीताल) तथा कांग्रेस से अनुपमा रावत (हरिद्वार ग्रामीण) व ममता राकेश (भगवानपुर) शामिल हैं। सत्तारूढ़ भाजपा की छह महिला विधायक हैं।

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पिछली बार धामी मंत्रिमंडल में एक महिला मंत्री रेखा आर्य को ही शामिल किया गया था, लेकिन इस बार संभावना है कि कल शपथ लेने वाली कैबिनेट में महिलाओं की संख्या बढ़ेगी। इस बात की सबसे ज्यादा संभावना व्यक्त की जा रही है, ऋतु भूषण खंडूड़ी को धामी कैबिनेट में अहम जिम्मा मिल सकता है। यह संभावना इस बात से प्रबल हो रही है, ऋतु भूषण खंडूड़ी का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए लिया जा रहा था। रेखा आर्य के धामी कैबिनेट में बने रहने की भी संभावना जताई जा रही है।

सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि महिलाओं ने इस बार मतदान में बढ़चढ़कर भागीदारी की और उनका मतदान प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा 67.20 फीसदी रहा। हालांकि, अगर 2002 के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो उत्तराखंड के हर चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा ही रहा है।

2022 के चुनाव की बात करें तो माना जा रहा है, महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में जमकर मतदान किया। इसकी वजह महिलाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनसे जुड़ी विकास की उम्मीदों का माना जा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार एसएमए काजमी का कहना है कि कैबिनेट में महिलाओं की संख्या बढ़ती है तो समझा जा सकता है कि सरकार राज्य में महिलाओं के मुद्दों और उनकी उम्मीदों को पूरा करने दिशा में गंभीरता से सोच रही है। यह तस्वीर कल साफ हो जाएगी।

यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि उत्तराखंड की नई सरकार की प्राथमिकता में महिलाओं के मुद्दे होने चाहिए, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, परिवहन के साथ ही उनके कार्यबोझ को कम करने से जुड़े हैं।

राज्य में महिलाओं की स्थिति

उत्तराखंड में महिलाओं की स्थिति की। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में महिलाओं की आबादी 49.48 लाख है, जबकि पुरुषों की संख्या 52.38 लाख है।

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राज्य की 71 फीसदी महिला आबादी गांवों में निवास करती है। राज्य की 65 फीसदी आबादी की आजीविका कृषि है। राज्य में 64 फीसदी महिलाएं अपने खेतों में कृषि करती हैं, वहीं 8.84 फीसदी महिलाएं दूसरों के खेतों में परिश्रम करती हैं।

यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने खेतों में परिश्रम करने वाली महिलाओं को श्रम का मूल्य नहीं मिल पाता। न तो उनका खेतों पर स्वामित्व है और न ही अपने ही खेतों में मेहनत करने का कोई श्रम लेती हैं। जबकि अधिकतर महिलाएं, उन कृषि क्षेत्रों में कार्य करती हैं, जो वर्षा जल पर आधारित हैं।

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जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर महिलाओं पर ही पड़ता है। जलस्रोत सूखने, कृषि उत्पादन प्रभावित होने, चारा नहीं मिलने, फल-सब्जियों की खेती प्रभावित होने से महिलाएं सबसे ज्यादा दिक्कत में आती हैं। समय पर बारिश नहीं होने से खेती पर प्रतिकूल असर भी महिलाओं के लिए किसी आपदा से कम नहीं होता। वहीं, भूस्खलन, बाढ़, सूखे से भी कृषि भूमि प्रभावित होती है।

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पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के साधन नहीं होने की वजह से पुरुष अपने घर-गांवों से पलायन करते हैं, तो घरों में रह रहीं महिलाओं पर परिवार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है। वो भी उस स्थिति में जब उनके पास न तो पर्याप्त अधिकार होते हैं और न ही वित्तीय स्वतंत्रता।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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