Featuredimprovement yourself

कहानी बताएगी, बोलने से पहले समझना क्यों है जरूरी

ट्रेन में सफर करने के दौरान कुछ युवाओं की टोली एक दूसरे का मजाक बना रही थी। पास बैठे यात्रियों को लेकर भी वह कुछ न कुछ बातें करते हुए हंस रहे थे। इन युवाओं का हंसी मजाक लगातार जारी था। ट्रेन एक स्टेशन पर आकर रुकी। कुछ यात्री ट्रेन से उतरने लगे और कुछ नये यात्री ट्रेन में बैठने लगे। करीब तीन मिनट के स्टापेज के बाद ट्रेन फिर से अपने सफर पर रवाना हुई। युवाओं वाले कोच में एक व्यक्ति और उनका दस साल का बेटा आकर बैठ गए। पहले तो नये यात्रियों को लेकर इन युवाओं का रवैया कुछ अच्छा नहीं रहा।

सीट पहले से उस व्यक्ति और बेटे के लिए रिजर्व थी, इसलिए वो उनको बैठने से मना नहीं कर पाए। ट्रेन के कुछ आगे बढ़ने पर दस साल का बच्चा कहने लगा, पापा देखो, हमारी ट्रेन आगे बढ़ रही है और पेड़ पीछे की ओर जा रहे है। पापा, देखो बादल हमारे साथ आ रहे हैं। पापा, इतने सारे पेड़ हैं यहां। यह किस रंग के हैं। बच्चे की बातें सुनकर युवा हंसने लगे और उनमें से एक ने उस व्यक्ति से कहा, आपको अपने बेटे को किसी मानसिक रोग चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। क्या यह इतना भी नहीं समझता। इसकी बातें सुनकर कोई भी हंसेगा।

तभी कोच में फल बेचने वाला आया तो संतरों को देखकर बच्चे ने अपने पिता से कहा, पापा यह कौन सा फल है। उसको जवाब मिला, बेटा यह आरेंज है। अच्छा पापा, वो जो खट्टा और मीठा फल होता है। हां, मैंने पहले आरेंज का स्वाद लिया है। उसकी बातों को सुनकर युवाओं ने उसका मजाक बनाना शुरू कर दिया। इस पर बच्चे के पिता का सब्र टूट गया।

उन्होंने इन युवाओं से कहा, जब तक आप किसी की परिस्थिति को अच्छी तरह न समझ लें, तब तक अपनी राय नहीं बनानी चाहिेए।  क्या आप जानते हैं कि मेरा बेटा जन्म से दृष्टिहीन था। इसने तीन दिन पहले ही रंग बिरंगी दुनिया को देखना शुरू किया है। आज हम अस्पताल से अपने घर वापस जा रहे हैं। मेरे बेटे ने ट्रेन में पहले भी सफर किया है, लेकिन सफर के नजारे पहली बार देख रहा है।

उस व्यक्ति की बातें सुनकर इनमें से कुछ युवाओं को अपने व्यवहार पर अफसोस हुआ और उन्होंने माफी मांगते हुए बच्चे से कहा, दोस्त हम आपके बारे में नहीं जानते थे। आपकी परिस्थितियों को समझते तो ऐसी बातें नहीं करते। इसके बाद युवाओं ने उस बच्चे के तमाम सवालों के जवाब दिए, जो वह जानना चाहता था। उन्होंने भविष्य में किसी का भी मजाक नहीं बनाने का संकल्प लिया।

ई बुक के लिए इस विज्ञापन पर क्लिक करें

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker