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तक धिनाधिनः इस स्कूल की दीवारें भी पढ़ाती हैं

मानवभारती की प्रस्तुति तक धिनाधिन का चौथा संस्करण 9 दिसंबर, 2018 को माजरी ग्रांट के राजकीय प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालय में था। कार्यक्रम सुबह दस बजे तय था। तक धिनाधिन की टीम तय समय पर स्कूल पहुंच गई। शिक्षक नरेंद्र कुमार सागर, उनके साथ समाजसेवी नरेंद्र खरोला और बड़ी संख्या में बच्चे हमारा इंतजार कर रहे थे। बच्चे स्कूल मैदान में खेल रहे थे। कार्यक्रम के सभी इंतजाम पहले से किए गए थे। साउंड सिस्टम पर गीत जीवन तुम्हीं ने दिया है…चल रहा था। इसकी आवाज उतनी ही की गई थी,जो स्कूल परिसर में उपस्थित लोग ही सुन सकें। बिल्कुल भी ऐसा नहीं लग रहा था कि साउंड सिस्टम से शोर हो रहा है।

माजरीग्रांट डोईवाला ब्लाक की प्रमुख ग्राम पंचायत है, जो हरिद्वार हाईवे पर है। हाईवे से हटकर गांव के भीतर से गुजर रही सड़क से होते हुए हम स्कूल पहुंचे। यह स्कूल अपने नाम से कम, बंगला वाला स्कूल के नाम से ज्यादा जाना जाता है। हमने बच्चों से पूछा, क्या आपको मालूम है कि स्कूल को बंगला वाला क्यों कहते हैं। उनको यह पता था, इसलिए सभी ने एक साथ हाथ उठाकर जवाब देना चाहा। बताया गया कि स्कूल के पास अंग्रेजों के जमाने से पहले का बंगला है। यह बंगला बहुत प्रसिद्ध है। समाजसेवी नरेंद्र खरोला ने बच्चों को बंगले के बारे में बताया। उनका कहना था कि यह बंगला अंग्रेजों के समय का है। यह यहां के सबसे संपन्न परिवार का है।

गेट से परिसर में प्रवेश किया। यहां दो स्कूलों राजकीय प्राथमिक विद्यालय (कक्षा एक से पांच तक) तथा राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय (कक्षा छह से आठ तक) के भवन हैं। इनमें तीन- तीन शिक्षक हैं और दोनों ंमें छात्र-छात्राओं की संख्या 200 है। इन स्कूलों में छात्र-छात्राओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। दोनों के अपने अपने मिड डे मील किचन हैं। मैदान एक ही है। मैदान में झूले लगे हैं। साफ सुथरी आकर्षक पेंटिंग वाली दीवारों के किनारे-किनारे पेड़ पौधे लगे हैं। यहां आयुर्वेद महत्व के पेड़- पौधे अर्जुन, हरड़, आंवला, नीम, अश्वगंधा, ब्राह्मी, लेमन ग्रास, हरसिंगार, बहेड़ा,आदि लगे हैं। बच्चों की जिम्मेदारी है कि किसी भी पौधे को नुकसान न पहुंचे। कुछ शिक्षकों ने अपने जन्मदिन पर यहां पौधे लगाए हैं। एक शिक्षिका ने तो स्कूल की लैब को वाशिंग मशीन और अलमारी दी है।

दोनों भवनों की दीवारों और कक्षाओं को देखकर तो ऐसा लग रहा था, मानो यह पढ़ा रही हैं। इन पर आकर्षक चित्रों के माध्यम से बच्चों को कुछ न कुछ पढ़ाने और समझाने का प्रयास किया गया है। छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान करातीं ,आकृतियों और आकार में भिन्नता बतातीं, बॉडी पाट् र्स, अच्छी आदतों के बारे में सिखातीं दीवारें देखकर लगा कि इस स्कूल में शिक्षकों के साथ-साथ यहां का वातावरण भी पूरे जोरशोर से सिर्फ और सिर्फ इस कवायद में लगा है कि बच्चे यहां आए हैं तो कुछ पढ़कर जाएं, कुछ समझकर जाएं और कुछ बनकर जाएं। इसका श्रेय अगर दिया जाना चाहिए तो यहां के शिक्षकों को, जो अपने स्कूल और बच्चों के लिए अवकाश भी भूल जाते हैं। शिक्षक नरेंद्र कुमार सागर छुट्टियों में स्कूल पहुंचकर निशुल्क कक्षाएं लगाते हैं। कंप्यूटर लैब, साइंस लैब, लाइब्रेरी सबकुछ शानदार हैं। पेयजल, शौचालय, किचन, कक्षाएं और मैदान स्वच्छता का पाठ पढ़ाते हैं। यहां आकर वो लोग चुप्पी साध लेंगे, जो अक्सर यह कहते हुए सुने जाते हैं कि सरकार और उसके शिक्षक अपने स्कूलों के लिए कुछ नहीं करते।

खैर, फिर से तक धिनाधिन की बात करते हैं। बच्चे शांतभाव और अनुशासित होकर बैठे हैं। हमने उनसे पूछा, क्या आपने कहानियां सुनी हैं। सभी ने एक स्वर में कहा, हां सुनते हैं। कौन सुनाता है आपको कहानियां। वो बोले स्कूल में सर सुनाते हैं। घर में कोई दादा दादी, कोई मम्मी पापा से सुनता है कहानी। क्या आप कहानी लिखना चाहेंगे, आधे से ज्यादा ने हाथ उठाए। जो बच्चे कहानियां लिखना चाहते हैं, उनके कहानी क्लब बनाने की सहमति स्कूल शिक्षक नरेंद्र कुमार सागर ने व्यक्त की। हमने उनसे वादा किया कि उनकी विचारों को आगे बढाने, उनके कहानी क्लब की रचनात्मकता को आगे बढ़ाने का काम तक धिनाधिन की टीम करेगी। चंद्र प्रकाश, संदीप,आयुषी, अभिषेक, कपिल आदि बच्चों ने कहानियां, बालगीत, कविताएं सुनाईं। इस स्कूल में व्यवस्थाएं बनाने में मदद कर रहे एक ग्रुप के युवा सहयोगी सौरभ शुक्ला ने बच्चों को बाल गीतों के माध्यम से एकता में शक्ति का संदेश दिया। सौरभ स्कूल की शैक्षणिक गतिविधियों में सहयोग करते रहे हैं। पूर्व सैनिक, उत्तराखंड पूर्व सैनिक परिषद के सदस्य विनोद कुमार ने भी बच्चों का उत्साह बढ़ाया।

हमने बच्चों के साथ इंगलिश की जंगल जर्नी कहानी साझा की। कहानी के साथ-साथ उनके साथ सवाल जवाब का क्रम जारी रहा। कहानी को बीच में ही रोक कर बच्चों से कहा गया कि अगर इस कहानी को आप लिखते तो आगे का हिस्सा क्या होता। कुछ बच्चों ने वो जवाब दिए, जो हमारी कहानी से मेल खा रहे थे। इसी तरह पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, शीर्षक पर बच्चों से जानना चाहा कि आखिर पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता। किसी ने कहा, उसके पैर नहीं है। किसी ने कहा कि वो जड़ों से जकड़ा है। किसी का जवाब था कि उसको जब मिट्टी, पानी, पोषक तत्व एक ही जगह मिल रहे हैं तो वो घूमने क्यों जाएगा। अगर पेड़ घूमने जाता तो क्या होता, इस सवाल पर एक बच्ची ने कहा, सड़क पर जाम लग जाता। हम लोग कहां चलते, सब जगह पेड़ ही पेड़ दिखते। एक अन्य छात्रा ने कहा, पेड़ घूमने चला जाता तो हमें आक्सीजन कौन देता। एक बार फिर बच्चे हमारी कहानी के पास पहुंच गए थे। हमें लगा कि हमारा प्रयास सार्थक हो रहा है और बच्चे कल्पना के जरिये हकीकत तक पहुंचने की अपनी क्षमता का इस्तेमाल कर रहे हैं। शिक्षकों ने कहा, हम इस सिलसिले को जारी रखेंगे। बच्चों ने भी हमसे वादा किया विषयों को रटकर नहीं बल्कि समझकर लिखेंगे।

तक धिनाधिन में सक्षम पांडेय, चंद्रिका, खुशी, सलोनी, चांदनी, तन्नू, आयुषी, रितिका, अवनीश, मन, हर्ष. कुनाल, ऋतिक, खुशी, मानसी, राधिका, भावना, तान्या, दिशा, माया, कंचन, सतविन्दर कौर,किरन, कुनाल, राधिका, विनोद कुमार, विशाल, सूरज, चंद्र प्रकाश, जसवीर सिंह, राजवंश, समीर, राहुल, विवेक, जय, अभिषेक, मोहित, संतोष, विशाल कुमार, आयुष कुमार, विशाल कुमार, करण कुमार, रितेश कुमार, संदीप कुमार, हर्ष कुमार, रोहित कुमार, प्रिंस, अशोक, सुभाष, कपिल, प्रीति बोरा, खुश्बू, आरती, अक्षत, कपिल, आर्यन, हनु, कशिश, मानसी, ऋतिका, आदर्श, अक्षिता पाल, अादित्य, हर्षिता, सुहानी आदि शामिल हुए। बच्चों से एक बार फिर मिलने का वादा करके तक धिनाधिन की टीम वापस लौटी। अगली बार फिर मिलेंगे किसी और पड़ाव पर, तब तक के लिए खुशियों और शुभकामनाओं का तक धिनाधिन ।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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