FeaturedInspirational storyTK DHINAA DHIN

तक धिनाधिनः विविधता तो सौंदर्य है यहां का

मानवभारती की प्रस्तुति तक धिनाधिनतक धिनाधिन  आज ( दो दिसंबर, 2018) को डोईवाला ब्लाक के राजकीय प्राइमरी पाठशाला मिस्सरवाला में था। स्कूल और लच्छीवाला वन रेंज के बीच एक सड़क का फासला है। यहां शहर जैसा शोर नहीं है और इस सड़क पर केवल उन्हीं लोगों की गाड़ियां आती जाती हैं, जो यहां रहते हैं या जो उनसे मिलने आते हैं। हां, पहले जब लच्छीवाला में फ्लाईओवर नहीं था, तब जाम लगने पर इस सड़क का इस्तेमाल किया जाता था। खैर, यह पुरानी बात हो गई। कुल मिलाकर यहां सुकून है और वनस्पतियों की विविधता तो यहां का सौंदर्य है। इस इलाके को रामबाग भी कहा जाता है।

रविवार सुबह साढ़े नौ बजे  तक धिनाधिन  के लिए स्कूल पहुंचा। प्रधानाध्यापक अजेश धीमान जी और बच्चे इंतजार कर रहे थे। उनको साढ़े नौ बजे का समय दिया था। समय के पाबंद अजेश जी ने कुछ पहले पहुंचकर बच्चों को एक क्लास रूम में बैठा दिया था। बच्चे अभी भी आ रहे थे। स्कूल के अलावा आसपास रहने वाले अन्य बच्चे भी यहां आए थे। कोई मम्मी के साथ आ रहा था औऱ किसी को पापा या बड़े भैया लेकर आ रहे थे। स्कूल में प्रवेश करते ही मुझे मालूम हो गया कि यहां बच्चों की नैतिक शिक्षा और संस्कारों पर काफी काम किया जा रहा है। सहयोग के लिए हमेशा तैयार, सरल स्वभाव वाले अजेश जी ने बच्चों को स्कूल में अाने वाले अतिथियों और अपने से बड़ों का सम्मान करना सिखाया है।  कुछ ही देर में मेरे मित्र औऱ सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम नेगी भी पहुंच गए।

तक धिनाधिन  की शुरुआत करते हुए हमने बच्चों से पूछा, क्या आपको पता है, हम यहां क्यों आए हैं। बच्चे एक स्वर में बोले, कहानियां सुनाने के लिए। क्या आपको कहानियां पसंद हैं, सबने कहा, जी। क्या आपको कहानियां सुनानी आती हैं। कुछ बच्चों ने हाथ उठाकर कहा, मुझे आती है, मुझे आती है सर। क्या आप हमें कहानियां सुनाओगे। इनमें से एक बच्चा, सिद्धार्थ हमारे पास आया और कहानी शुरू की। सिद्धार्थ ने बहुत अच्छे तरीके से खरगोश और कछुए की कहानी सुनाई, जो एक दूसरे के गहरे मित्र हैं। एक दिन दोनों दौड़ लगाते हैं। खरगोश तेजी से दौड़कर कछुए को बहुत पीछे छोड़ देता है। लेकिन जीत कछुए की होती है।

यह कहानी आपने सुनी होगी, लेकिन हमारे लिए बच्चों की राय जाननी जरूरी है। उनसे संवाद में निष्कर्ष निकला, खरगोश ने अपनी दौड़ को लगातार जारी नहीं रखा। वह कुछ देर आराम करने के लिए रुक गया था। कछुआ धीमे ही सही पर लगातार दौड़ रहा था, इसलिए वह उससे आगे निकल गया। हमने उनको बताया कि किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए निरंतरता होनी जरूरी है। यदि आप अपने विषयों को लगातार नहीं पढ़ेंगे, तो परीक्षा में अच्छे अंक नहीं मिल पाएंगे। रटने से नहीं बल्कि विषयों को समझने से ज्ञान हासिल होता है। विषयों को समझने के लिए रोजाना पढ़ना होगा, चाहे गणित हो या विज्ञान या फिर हिन्दी या अंग्रेजी हो। शिवम ने दो भाइयों की कहानी सुनाई, जिसका शीर्षक है- लालच बुरी बला है। यह कहानी हमें एक दिसंबर को नियो विजन के अनूप ने भी सुनाई थी। शिवम और अनूप का कहानी सुनाने का अंदाज बहुत अच्छा है। कक्षा एक के छात्र अंश ने पोयम सुनाई, वो भी बिना रुके हुए। सभी बच्चों ने तालियां बजाकर उत्साह बढ़ाया।

हमने बच्चों के साथ कहानी मुझसे दोस्ती करोगे और साहसी नन्हा पौधा को साझा किया। मुझे खुशी हुई कि मुझसे दोस्ती करोगे, कहानी बच्चों को याद थी। उनको अजेश जी ने यह कहानी सुनाई थी। कहानी की शुरुआत में मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने छोटा हाथी देखा है, तो सभी बच्चे एक साथ बोले, जी सर… हमने देखा है, हमने देखा है। मैंने पूछा, कहां देखा है छोटा हाथी। वो फिर एक साथ बोले… जंगल में देखा है। मैं तो भूल ही गया था कि ये बच्चे जंगल के सीमा पर बसे गांव में रहते हैं। यहां तो हाथियों का आना जाना लगता रहता है। कहानी के माध्यम से यहां छोटे बच्चे भी जानते हैं कि बंदर पेड़ों की शाखाएं पकड़कर उछल कूद करते हैं। मेढ़क पानी में छलांग लगाता है। सियार डॉगी की तरह होता है। कहानी के संदेश पर बात हुई तो बच्चों ने बताया कि दोस्ती केवल एक दूसरे के साथ खेलने कूदने या मौज मस्ती के लिए नहीं होती। दोस्ती एक दूसरे को सहयोग करने, एक दूसरे को सही रास्ता दिखाने के लिए होती है। जहां मतलब होता है, वहां दोस्ती नहीं होती।

सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम नेगी ने दो बेटियों की कहानी सुनाई। उनकी कहानी कहती है कि मन की ताकत होना बहुत जरूरी है। स्वयं पर विश्वास करना जरूरी है। हमें बताया गया कि विक्रम जी की माता उर्मिला नेगी जी और गांव की निवासी पूनम जी, ने वर्ष 2013 और 2014 में करीब डेढ़ साल तक बिना किसी मानदेय के बच्चों को पढ़ाया था। उनका मानना है कि स्कूल में पढ़ाई बाधित नहीं होनी चाहिए। यहां, यह बात कोई मायने नहीं रखती कि स्कूल में दो बच्चे पढ़ रहे हैं या फिर दो सौ। पढ़ाई तो एक भी बच्चे की नहीं रुकनी चाहिए।

श्रीमती उर्मिला नेगी पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य हैं। जनवरी 2015 में अजेश जी ने चार्ज संभाला। अजेश जी स्कूल के साथ ही यहां रहने वाले सभी बच्चों से संवाद बनाकर रखते हैं। वो चाहते हैं कि हर बच्चा संस्कार वाला हो और अपने से बड़ों का सम्मान करे। विक्रम नेगी ने बच्चों से कहा, पढ़ाई जारी रखना। उनसे कोई सहयोग चाहिए तो वह मदद के लिए हमेशा तैयार हैं। आज हमारे साथ कहानियां सुनने और सुनाने वाले बच्चों में नैमिष, शिवम, राधा, शालू, आयुष, शुभम, शुभ, मनप्रीत, सिमरन, तन्वी, सोनू, रोहित, पीहू, अंश, सोनाक्षी, नक्ष, सिद्धांत वर्मा, लक्ष्मी थापा, हिमाल थापा, अनमोल कुमार, सुदरू कुमार आदि शामिल रहे।

बच्चों से कहा गया कि तक धिनाधिन कार्यक्रम पर कुछ कहना चाहते हैं तो लिखकर अपने प्रधानाध्यापक जी को दे सकते हैं। पर्वों, मेलों, शहर, अपने गांव, यात्रा पर लिखना शुरू करें। अपनी दिनभर की गतिविधियों को लिखें, इससे उनकी लिखने की शैली में अच्छा बदलाव आएगा। शुक्रिया… फिर मिलते हैं…तब तक के लिए खुशियों और शुभकामनाओं का तक धिनाधिन ।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button