” प्रौद्योगिकी में तेजी से बदलाव के दौर में एआई के साथ कदमताल समय की आवश्यकता”
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान के देहरादून स्थित मुख्यालय में 71 वें स्थापना दिवस समारोह में बोले वैज्ञानिक
देहरादून। न्यूज लाइव
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान ने देहरादून स्थित मुख्यालय में 71वां स्थापना दिवस समारोह धूमधाम से मनाया। उद्घाटन सत्र में वैज्ञानिकों ने संस्थान की अभी तक की प्रगति पर संतोष व्यक्त करते हुए प्राकृतिक स्रोतों एवं संसाधनों के महत्व को रेखांकित किया और नई प्रोद्यौगिकी के विकास पर जोर देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, डाटा विश्लेषण के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का महत्व बढ़ा है और इसके साथ कदमताल करना समय की आवश्यकता है।
देहरादून स्थित संस्थान के मुख्यालय में आयोजित स्थापना दिवस समारोह में नेशनल रेनफेड एरिया अथॉरिटी (National Rainfed Area Authority) के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. जागीर सिंह सामरा ने कहा कि पहले एनालिसिस न्यूमेरिकल पर आधारित था, लेकिन अब यह काम एआई से हो रहा है, न्यूमेरिकल की पुरानी पद्धति की आवश्यकता नहीं है। आने वाले समय में वैज्ञानिकों के इंस्ट्रूमेंट बदल जाएंगे। मोबाइल फोन को फसल पर रखते ही एआई आधारित विश्लेषण से फसल में लगने वाली बीमारी का पता चल जाएगा। सब चीजें बदल रही हैं, हमें इस बदलाव के साथ खुद को अपडेट करना होगा। आने वाले पांच साल में बहुत कुछ बदलने वाला है, डिजीटल इंस्ट्रूमेंट्स और एआई पर निर्भरता बढ़ने वाली है। हालांकि एआई में एथिकल इश्यु भी आएंगे।
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उन्होंने चेताया, यदि एआई तकनीक हमारे हाथ से निकल गई तो बड़ा नुकसान होगा। हमें वक्त के हिसाब से चलना होगा। डॉ. सामरा ने कहा, कृषि विज्ञान केंद्रों में किसान बहुत कम जा रहे हैं, वो स्मार्ट फोन पर जानकारियां ले रहे हैं। स्मार्ट मोबाइल फोन में एआई का कम्पोनेंट मौजूद है। एआई पहले भी थी, पर अब यह सस्ती हो गई है, इसलिए हम सभी इसको हासिल कर पा रहे हैं।
डॉ. सामरा बताते हैं, एक समय में वो डैम के ऊपर से सैंपल लाने के लिए हाथी पर बैठकर जाते थे। पर, अब यह काम पहले से आसान हो गया, हम ड्रोन तकनीकी का इस्तेमाल करते हैं। सीखना होगा कि ड्रोन की मदद से डाटा कैसे एकत्र किया जाए। डिवाइस की मदद से लिया गया डाटा अनबायस्ड होगा, यह सक्सेसफुल होगा। डॉ. सामरा ने देहरादून में बतौर निदेशक अपने कार्यकाल के दिनों को याद किया।
संस्थान के निदेशक डॉ. एम मधु ने संस्थान की प्रगति, हितधारकों के बीच गतिविधियों तथा मृदा एवं जल संरक्षण के लिए अपनाई जा रही प्रौद्योगिकी के विकास के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा, मृदा संरक्षण में संस्थान का योगदान देश की आर्थिक तरक्की का रास्ता प्रशस्त करता है। उन्होंने विभिन्न आंकड़ों की मदद से भू क्षरण की स्थिति को प्रस्तुत किया। उनका कहना है कि बिना जल संरक्षण के हम क्लाइमेट चेंज के प्रभाव को कम नहीं कर सकते।
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स्थापना दिवस समारोह में अतिथि डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकलचर यूनिवर्सिटी समस्तीपुर, बिहार के पूर्व कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव ने कहा, पहले नदी और कुएं का पानी पीते थे, पर अब बोतल का पानी इस्तेमाल किया जा रहा है, जब हम आज की पीढ़ी को बताते हैं कि हम नदी और कुएं का पानी पीते थे, तो वो सवाल करते हैं, आप बीमार नहीं पड़ते थे। समय बदल रहा है, तकनीकी विकास तेजी से हो रहा है, हमारे पास अब बोतल बंद पानी उपलब्ध है।
डॉ. श्रीवास्तव प्रौद्योगिकी के विकास में स्किल डेवलपमेंट पर फोकस करने का आह्वान करते हैं। उन्होंने युवा वैज्ञानिकों से लघु एवं सीमांत किसानों के लिए प्रौद्योगिकी विकास की अपील की। डॉ. श्रीवास्तव ने बांस के बहुपयोगी महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, हमें सीखना होगा कि बांस को किस तरह प्रयोग में लाया जाए, ताकि यह आर्थिकी का बेहतर स्रोत बन सके।
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समारोह में अतिथि डॉ. वाईएस परमार हॉर्टिकलचर एवं फारेस्ट्री यूनिवर्सिटी, सोलन में डायरेक्टर (रिसर्च) डॉ. संजीव चौहान ने कहा, पेड़ों के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ के बारे में जानना होगा, इसकी महत्ता के साथ इकोनॉमी को भी समझना होगा। उन्होंने कहा, कोरोना काल में हमने ऑक्सीजन के महत्व को समझा। इसी तरह कॉर्बन को तब समझा गया, जब कार्बन ट्रेडिंग होने लगी। डॉ. चौहान ने कहा, मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है। इस प्रगति को सस्टेन रखने और इसे आगे बढ़ाने की दिशा में भी संस्थान कार्य कर रहा है।
इससे पहले मानव संसाधन विकास विभाग एवं सामाजिक विज्ञान विभाग के हेड प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. चरण सिंह ने उपस्थित अतिथियों का स्वागत किया तथा संस्थान के कार्यों के बारे में जानकारी दी।
समारोह में काली माटी के किसान सुरेंद्र सिंह मनवाल ने अनुभव को साझा करते हुए कहा, संस्थान ने उनके गांव में जल स्रोत के संरक्षण के साथ ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने की तकनीकी विकसित की है, जो 1996 से आज भी जारी है। उन्होंने उस समय निदेशक रहे डॉ. सामरा का आभार व्यक्त करते हुए कहा, उस समय उनका गांव सिंचाई की सुविधा से वंचित था। डॉ. सामरा और उनकी टीम ने मौके पर जाकर उनकी समस्या को सुना और समाधान के लिए तकनीकी विकसित की। उन्होंने बताया, संस्थान के वैज्ञानिक, तकनीकी स्टाफ आज भी उनके गांव का विजिट करता है और किसी भी समस्या के समाधान के लिए तैयार रहता है।
समारोह में संस्थान के हाइड्रोलॉजी एवं इंजीनियरिंग डिवीजन के हेड डॉ. पीआर ओजस्वी ने संस्थान की वाटरशेड टेक्नोलॉजी पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने मृदा एवं जल संरक्षण के क्षेत्र में विकसित प्रौद्योगिकी के बारे में बताया। उन्होंने भू क्षरण को रोकने तथा समग्र कृषि विकास के लिए नई दिशा में भी सोचने की बात कही। साथ ही, उम्मीद व्यक्त की, हम ऐसा करने में सक्षम होंगे।
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संस्थान के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी एचएन शर्मा ने संस्थान की प्रशासनिक गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।
संस्थान के ओआईसी (पीएमई एंड केएम यूनिट) डॉ. एम. मुरुगानंदम ने उपस्थित अतिथियों, सभी वैज्ञानिकों एवं कार्मिकों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर संस्थान के वैज्ञानिकों तथा कार्मिकों तथा किसानों को अतिथियों ने सम्मानित किया गया। समारोह के दौरान बच्चों के बीच खेल गतिविधियों का आयोजन किया गया।
संस्थान के बारे में
भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान अपने देहरादून मुख्यालय और क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्रों के नेटवर्क के माध्यम से मिट्टी के संबंध में, कृषि-पारिस्थितिकी क्षेत्रों में अनुसंधान, प्रशिक्षण और विस्तार गतिविधियां चलाता है। मृदा और जल संरक्षण तथा वाटरशेड प्रबंधन में केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों व ग्रेजुएट असिस्टेंट को लंबी अवधि के विशेष प्रशिक्षण के लिए संस्थान की देश एवं विदेशों में पहचान है। केंद्रीय संस्थान का उद्देश्य भू क्षरण को नियंत्रित करने तथा स्थाई आधार पर हितधारकों के भोजन की सुनिश्चितता तथा पर्यावरणीय, आर्थिक व आजीविका की सुरक्षा के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करना है। संस्थान कृषि एवं गैर कृषि योग्य भूमि पर प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से मिट्टी और पानी के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए कार्य करता है।
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