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लोककथाः सूरज और चांद आकाश पर कैसे पहुंचे

वर्षों पहले सूरज और पानी बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों धरती पर रहते थे। सूर्य अक्सर पानी के घर आता था, लेकिन पानी सूरज के घर नहीं जा पाता था। एक दिन सूरज ने पानी से कहा- दोस्त तुम मेरे घर क्यों नहीं आते। पानी ने जवाब दिया-दोस्त, तुम्हारा घर इतना बड़ा नहीं है कि मैं उसमें आ सकूं, क्योंकि मेरे साथ मेरे जीव जंतु भी तुम्हारे घर आएंगे, वहां इतने सबके लिए व्यवस्था नहीं हो सकेगी।

सूरज ने कहा, तुम मेरे घर आओ तो सही, सभी के रुकने की व्यवस्था हो जाएगी। पानी ने कहा, यदि आप चाहते हैं तो मैं आपके घर आ जाऊंगा, लेकिन आपको बड़े भवन का निर्माण कराना होगा। आपका घर इतना बड़ा होना चाहिए कि मेरे सभी साथियों के लिए कक्षों का इंतजाम हो जाए।

सूरज ने बहुत बड़े भवन के निर्माण का वादा किया और वापस अपने घर लौटा। सूरज ने चांद से मुलाकात करके बताया कि पानी उनके घर आएगा, लेकिन हमें बड़ा भवन बनाना होगा। चांद ने कहा, ठीक है, बड़ा भवन बना दिया जाएगा। चांद और सूरज ने मिलकर आलीशान और बड़ा भवन बनाना शुरू किया। घर में बहुत सारे कमरे बनाए गए, ताकि पानी और उसके सभी जीव जंतु आसानी से उसमें रुक सकें। भवन निर्माण पूरा होने के बाद सूरज ने पानी को आमंत्रित किया।

जब पानी पहुंचा तो उसके साथियों में से एक ने सूरज से पूछा कि क्या पानी के प्रवेश करने के लिए घर सुरक्षित होगा। सूरज ने उत्तर दिया, हां, मेरे दोस्त आप सभी आ सकते हैं। थोड़ी ही देर में सूरज के घर में पानी का प्रवाह शुरू हो गया। उसके साथ मछलियों सहित पानी के सभी जीव भवन में प्रवेश करने लगे। बहुत जल्दी ही पूरे भवन में घुटनेभर गहरा पानी जमा हो गया। पानी के सहयोगी ने सूरज ने फिर पूछा, क्या अभी भी आपका भवन सुरक्षित है।

सूरज का जवाब था, हां क्यों नहीं। सब कुछ सुरक्षित है। अब पानी का प्रवेश किसी व्यक्ति के सिर के बराबर तक हो गया। सूरज से पानी ने ही पूछा, क्या अब भी मेरे कुछ और साथियों को आपने घर में आने की अनुमति है। सूरज ने कहा, आप सबका स्वागत है दोस्त। पानी भवन की पूरी ऊंचाई तक पहुंचने लगा। यह देखकर सूरज और चांद भवन की छत पर बैठ गए। थोड़ी ही देर में पानी भवन की छत पर पहुंच गया। पानी का वेग काफी तेज था। तेज प्रवाह में सूरज और चांद उछलकर आकाश में पहुंच गए। कहा जाता है कि जब से सूरज और चांद आकाश में ही हैं। ( अनुवादित-अफ्रीकी लोककथा)

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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