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मां कुष्मांडा की कथाः माता ने दैत्यों के संहार के लिए सिल्ला गांव में लिया था अवतार

दैत्यों का वध करने के बाद मां कुष्मांडा कुमड़ी गांव आ गईं, मंदिर परिसर में प्राचीन मूर्तियों के दर्शन होते हैं

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी. दूर कुमड़ी गांव में मां कुष्मांडा (Maa Kushmanda) का मंदिर है। मां कुष्मांडा ने सिल्ला गांव (Silla Village) में दैत्यों के संहार के लिए अवतार लिया था। दैत्यों का वध करने के बाद मां कुष्मांडा कुमड़ी (Kumadi Village, Rudraprayag) आ गईं। यहां मंदिर परिसर में प्राचीन मूर्तियों के दर्शन करने श्रद्धालु आते हैं।

कुमड़ी गांव के निवासी, मां कुष्मांडा के अवतार की कथा सुनाते हुए बताते हैं, 12 वर्ष में एक बार सिल्ला स्थित भगवान शिव जी एवं श्री शांडेश्वर महादेव के मंदिर में महायज्ञ होता है, जिसमें शामिल होने के लिए माता कुष्मांडा की डोली वहां पहुंचती है।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिला के कुमड़ी गांव में मां कुष्मांडा के प्राचीन मंदिर परिसर में  स्थित प्राचीन पूजा स्थल। फोटो- राजेश पांडेय

कुमड़ी गांव में मां कुष्मांडा के मंदिर परिसर में जल निगम से सेवानिवृत्त कुंवर सिंह रावत ने मां कुष्मांडा की कथा सुनाई। बताते हैं, उन्होंने अपने बुजुर्गों से यह कथा सुनी है, जिसके अनुसार सिल्ला गांव स्थित भगवान शिव जी के मंदिर परिसर में दैत्य रहने लगा था। मंदिर में जो भी व्यक्ति पूजा करने जाता, दैत्य उसको मारकर खा जाता। बारी-बारी से उसने पूरा गांव खाली कर दिया। अंत में एक बूढ़ी मां और उनका नाती बचते हैं। बूढ़ी मां अपने नाती को मंदिर में पूजा के लिए भेजते समय बहुत दुखी हो जाती हैं। वो जानती थी कि यह उनके नाती का अंतिम दिन है,क्योंकि दैत्य उसको मार देगा।

ऋषि अगस्त्य जी ने बूढ़ी मां के पास जाकर कहा, आज शिवालय में पूजा करने मैं जाऊंगा। बूढ़ी मां के नाती के स्थान पर ऋषि अगस्त्य मंदिर में पूजा करने पहुंचे। स्नान करने के बाद ऋषि शिवालय में पूजा करने गए तो दैत्य उनके सामने आ गया। अगस्त्य ऋषि ने दैत्य के साथ सात दिन सात रात युद्ध किया और अंत में उन्होंने दैत्य को मार दिया। पर, वहां तो और भी दैत्य पैदा होने लगे। ऋषि इन दैत्यों से युद्ध करते रहे। पर, दैत्य कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिला के कुमड़ी गांव में मां कुष्मांडा के प्राचीन मंदिर परिसर में प्राचीन मूर्तियां। फोटो- राजेश पांडेय

रावत बताते हैं, लोक कथा के अनुसार, इसी दौरान अगस्त्य ऋषि को आकाशवाणी हुई कि आप अपनी दाईं कांख (बगल) को मलो, जिससे मां देवी का अवतार होगा, जो राक्षसों का संहार करेंगी। अगस्त्य ऋषि ने आकाशवाणी के अनुसार, दाईं कांख को मला, जिससे मां कुष्मांडा ने अवतार लिया। मां ने एक-एक करके राक्षसों का वध किया, पर जैसे ही धरती पर राक्षसों के रक्त की बूंद गिरती, वो उतनी संख्या में बढ़ते जाते।

मां कुष्मांडा ने सभी राक्षसों का वध करके उनके रक्त से खप्पर भर दिया, पर दो बूंद धरती पर गिर गईं, जिससे दो राक्षस पैदा हो गए। मां कुष्मांडा के खौफ से दोनों राक्षस वहां से भाग गए। बताया जाता है कि एक सिल्ला गांव में तालाब में और दूसरा श्री बदरीनाथ धाम में छिप गया। भगवान बदरीनाथ जी, सभी पर करुणा करते हैं। भगवान श्री नारायण ने उस राक्षस को शरण दे दी।

कुमड़ी गांव के श्यामल सिंह और प्रताप सिंह बताते हैं, सिल्ला गांव और श्री बदरीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता। माना जाता है कि शंख बजाने से ये दोनों दैत्य बाहर निकल आएंगे।  उनके अनुसार, सिल्ला गांव में शंख तभी बजता है, जब मां कुष्मांडा की डोली वहां जाती है।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिला के कुमड़ी गांव में मां कुष्मांडा के प्राचीन मंदिर परिसर में श्री क्षेत्रपाल देवता। फोटो- राजेश पांडेय

वो बताते हैं, सिल्ला गांव के निवासी मां कुष्मांडा को आमंत्रित करने के लिए गाजे बाजे के साथ कुमड़ी गांव आते हैं। मां की डोली यहां से सिल्ला गांव जाती है। माता की डोली के साथ यहां से क्षेत्रपाल जी, सभी निशान, मसाण भी जाते हैं। मां कुष्मांडा सिल्ला गांव में श्री शिवजी के मंदिर में चलने वाले 18 दिन के महायज्ञ में शामिल होती हैं। वहां से वापस आने पर कुमड़ी गांव में भी यज्ञ का आयोजन किया जाता है। कुमड़ी और सिल्ला गांव के बीच वर्षों पहले से यह करार है कि कुमड़ी गांव में यज्ञ का आयोजन सिल्ला गांव ही कराएगा।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिला के कुमड़ी गांव में मां कुष्मांडा के प्राचीन मंदिर के मुख्य द्वार पर उपस्थित ग्रामीण। फोटो- राजेश पांडेय
माता की मूर्ति का वजन नहीं करा सकते

बुजुर्ग कुंवर सिंह रावत बताते हैं, हमने पुराने लोगों से यह कथा भी सुनी है। एक बार मां कुष्मांडा की डोली स्नान के लिए हरिद्वार गई थी। वहां से लौटते समय देवप्रयाग में टिहरी की महारानी ने मां से एक मन्नत मांगी। मनोकामना पूर्ण होने पर महारानी ने यहां (कुमड़ी गांव के मंदिर में) माता की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई। रावत बताते हैं, मूर्ति का वजन नहीं करा सकते। वो बताते हैं, माना जाता है कि वजन कराने से मूर्ति और भारी होती जाएगी। आप दूसरी ओर जितना भी वजन रखोगे, मूर्ति उससे भी भारी हो जाएगी। ऐसा हमारे बुजुर्गों ने बताया है।

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राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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