
दुर्गाधार। न्यूजलाइव
रुद्रप्रयाग जिला के बोरा ग्राम में मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर है, जो दुर्गाधार मंदिर (Durgadhar Temple) के नाम से प्रसिद्ध है। पोखरी रोड पर रुद्रप्रयाग से चोपता (Chopta) जाते हुए करीब दो किमी. पहले ही दुर्गाधार मंदिर है। यहां से फलासी (Falasi) गांव स्थित श्रीतुंगेश्वर महादेव मंदिर (Shri Tungeshwar Mahadev Temple) करीब पांच किमी. है। श्रीदुर्गाधार मंदिर के बारे में मान्यता है कि गांव में किसी भी विपत्ति के संबंध में मां दुर्गा पहले ही सचेत कर देती हैं।
इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग दो भागों में बंटा दिखता है। इसके बीच में एक दरार है। मान्यता है कि प्राचीनकाल में गांव के ही एक परिवार की गाय यहां आकर एक पेड़ के नीचे प्रतिदिन दूध डालती थी, लेकिन घर पर दूध नहीं देती। एक दिन गाय का पीछा करने के बाद उसके मालिक ने देखा कि गाय कहां पर दूध डालती है। गाय के मालिक ने उस स्थान पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया तो एक पत्थर में चोट लगी। जब गांव के लोगों ने खुदाई की तो वो थक गए, परन्तु पत्थर का अंत नहीं मिला। तब वहां पर एक आकाशवाणी हुई तथा उस स्थान पर मां का मंदिर निर्माण कराया गया।

मान्यता है कि यदि किसी भी प्रकार की विपत्ति की संभावना होती है तो मां दुर्गा पहले ही गांव वालों को सचेत कर देती थीं। आज भी देवी गांव के किसी भी एक व्यक्ति पर अवतरित होती हैं, जिन्हें देवी का पश्वा कहा जाता है। मां दुर्गा को पूजने का अधिकार मयकोटी के पंडित एवं ग्राम बैंजी के बैंजवालों का है। यहां पर हर वर्ष अगस्त/सितंबर माह में देवी का भव्य पूजन किया जाता है, जिससे जग्गी कहा जाता है। यह तल्ला नागपुर क्षेत्र की एकमात्र ऐतिहासिक जग्गी है। आज भी मां का आशीर्वाद सभी भक्तों और ग्रामवासियों पर बना हुआ है।

मंदिर के सेवादार सुरेंद्र सिंह नेगी बताते हैं, यहां माता की बड़ी कृपा है। यहां किसी भी वस्तु की आवश्यकता होती है तो उपलब्ध हो जाती है। बताते हैं, नवरात्र का पहला दिन था, मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था। मुझे मंदिर तक पानी की गगरी भरकर लानी थी। मैंने मां से प्रार्थना की, मां मैं सेवा कार्य करने में असमर्थ हूं। कुछ देर बाद एक बालिका, जिसका नाम कोमल है, यहां आई और मैंने उससे पानी की गगरी भरकर लाने को कहा। बालिका कोमल ने मंदिर तक पानी पहुंचाने में मदद की। यहां मां की बहुत कृपा है।