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Video- बातें स्वरोजगार की: मुर्गी पालन में कमाल कर दिया बीटेक पास उत्तराखंड के इस युवा ने
उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्र में कृषि जोत छोटी व बिखरी होने के कारण खेतीबाड़ी बहुत चुनौतीपूर्ण है। आजीविका का प्रमुख विकल्प कृषि है, इसलिए कम जमीन पर खेती और उससे अधिक लाभ के विकल्पों पर विचार ही नहीं बल्कि पूरी मशक्कत के काम करने का समय है। यह चिंता का विषय है, क्योंकि हम अपने आसपास कृषि भूमि को आवासीय प्लाटिंग में बदलते देख रहे हैं।
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राज्य के ग्रामीण इलाकों की 70 फीसदी आबादी कृषि के साथ ही अन्य विकल्पों जैसे- उद्यानीकरण, दुग्ध उत्पादन, जड़ी बूटी उत्पादन, मत्स्य पालन, पशुपालन, जैविक कृषि, सगंध पादप, मौन पालन, सब्जी उत्पादन तथा इससे संबंधित अन्य लघु उद्यमों पर निर्भर करती है, ऐसा आर्थिक सर्वेक्षण की 2020-21 की रिपोर्ट में कहा गया है।
इसमें एक रैपिड सर्वे का जिक्र करते हुए बताया गया है कि कोविड-19 के दौरान 25 फीसदी व्यक्तियों ने कृषि एवं सहवर्गीय क्षेत्रों में अपनी सहमति जताई है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रवासी कामगार, जो सामान्यतः शहरी क्षेत्रों में होटल, रेस्टोरेंट एवं आतिथ्य (Hospitality) क्षेत्र में कार्य करते थे, इस क्षेत्र में कार्य करने को तैयार हैं।
हम उन किस्सों को जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं, जो चुनौतियों के दौर में उम्मीद दिखाते हैं। समन्वित कृषि का एक शानदार उदाहरण, देहरादून – ऋषिकेश रोड पर लिस्टराबाद गांव में है। यहां कृषक राजेंद्र सिंह सजवाण ने परंपरागत कृषि के साथ पोल्ट्री फार्म (देशी एवं बॉयलर दोनों), मछली पालन, बत्तख पालन, गाय पालन, वर्मी कम्पोस्ट, सब्जी एवं फल उत्पादन, बायो गैस प्लांट को जोड़ा है।

रविवार (14 नवंबर,2021) की दोपहर रानीपोखरी-ऋषिकेश मुख्य मार्ग से करीब दो से तीन किमी. चलने के बाद 72 वर्षीय किसान राजेंद्र सिंह सजवाण की समन्वित कृषि को जानने का मौका मिला। पोल्ट्री फार्म में बॉयलर और देशी के लिए अलग-अलग हॉल बने हैं।
बॉयलर का पूरा लॉट बिक्री होने के कारण उनके हॉल की सफाई चल रही थी। मुझे बॉयलर देखने को नहीं मिले, पर बताया गया कि अगले माह दिसंबर के पहले हफ्ते में 2000 चूजे लाए जाएंगे। इससे पहले इस हॉल को साफ किया जा रहा है। हॉल को कीटाणुओं एवं रोगाणुओं से मुक्त करने के लिए दवा का छिड़काव किया जाएगा।

मैकेनिकल में बीटेक अमित भंडारी अपने नाना कृषक राजेंद्र सिंह सजवाण को समन्वित खेती में सहयोग करते हैं। युवा अमित बताते हैं कि बॉयलर 45 दिन में बिक्री के लिए तैयार हो जाता है। पहले लॉट से हॉल के फर्श पर बीट की मोटी परत जमा हो गई है, जिसे इकट्ठा करके खेतों में डाला जाएगा। खेती के लिए यह शानदार जैविक खाद है। इससे कृषि उत्पादन पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है। वैसे हम फ्रेश बीट को मछलियों के तालाब में डालते हैं।
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बताते हैं, देशी मुर्गी पालन करीब दो माह पहले शुरू किया था। ऋषिकेश पशुलोक से 220 चूजे खरीदे थे, जिनमें से 30 कड़कनाथ हैं। ये लगभग पांच माह में बिक्री के लिए तैयार हो जाएंगे। करीब चार माह में अंडे भी मिलने शुरू हो जाएंगे। तीन अंडों की एक ट्रे लगभग छह रुपये में बिक जाती है। हमने 30 रुपये के हिसाब से चूजे खरीदे थे। कड़कनाथ का रेट 35 रुपये प्रति चूजा है।
अमित के अनुसार, इनकी देखरेख बड़ी चुनौती है। समय पर दाना-पानी और वैक्सीनेशन, दवाइयां अत्यंत आवश्यक हैं। इनको रोग से बचाना पहली प्राथमिकता होती है। इनके हॉल को गर्म रखने का प्रबंध किया गया है। पानी के लिए लिए पाइप लाइन को बर्तनों से जोड़ा गया है। इनके मूवमेंट को बनाए रखने की प्रॉपर व्यवस्था की गई है। आपको किसी भी दिक्कत में विशेषज्ञों के संपर्क में रहना चाहिए।
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देशी मुर्गियों की ग्रोथ में समय लगता है, जबकि बॉयलर तेजी से बढ़ता है। इसका मीट एवं अंडा हाई प्रोटीन एवं स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। कड़कनाथ की काफी मांग होती है।

अमित का कहना है कि पूरी सावधानियों एवं आवश्यकताओं को पूरा करते हुए पोल्ट्री फॉर्म का संचालन करते हैं तो यह लाभकारी है। आपको इन्फ्रा तो एक बार ही स्थापित करना है। हालांकि इनका आहार महंगा है, पर उस हिसाब से बिक्री भी लाभ का सौदा है।
मार्केटिंग के संबंध में उनका कहना है, हमने जिनसे चूजे खरीदे थे, उन्होंने ही हमें मुर्गियां खरीदने वालों के कान्टेक्ट उपलब्ध कराए। आसपास से भी खरीदार आते हैं। मार्केटिंग कोई मुश्किल नहीं है। देशी की डिमांड अच्छी होती है। अभी हमने शुरुआत की है, पर इससे लाभ मिलने की उम्मीद है।

सरकार की कुक्कुट पालन योजना- राज्य में इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के इच्छुक लाभार्थियों का चयन करके एक दिन के 50-50 चूजों की यूनिट निशुल्क स्थापित की जाती है। प्रत्येक लाभार्थी को 50 चूजे, एक माह का राशन तथा जाली निशुल्क दिए जाते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण की 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-21 में राज्य में 1619 इकाइयां स्थापित की गईं।
कुक्कुट विकास कार्यक्रम के तहत राज्य में 2020-21 में छह राजकीय कुक्कुट प्रक्षेत्रों पर क्रायलर (Kuroiler) चूजों का उत्पादन कर 7.84 लाख चूजे कुक्कुट पालकों को वितरित किए जा चुके हैं।
मदर पोल्ट्री योजना के अंतर्गत वर्ष 2017-18 से अभी तक प्रत्येक जिले तीन के हिसाब से 39 मदर पोल्ट्री यूनिट की स्थापना की जा चुकी है। अभी तक एक माह के 1.54 लाख चूजे कृषकों को आवंटित किए जा चुके हैं।
इनोवेटिव कुक्कुट विकास योजना केंद्र सरकार के सहयोग से राज्य के अल्मोड़ा, उत्तरकाशी, बागेश्वर एवं टिहरी में संचालित की जा रही है।
कड़कनाथ को ‘कलीमासी ‘ या काले मांस के नाम से जाना जाता है। कड़कनाथ की मांग अधिक है, इसमें पोषण विशेषज्ञों के अनुसार कम कोलेस्ट्रॉल, उच्च लौह सामग्री और कैंसर विरोधी गुण शामिल हैं। स्रोत- https://jhabua.nic.in
