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कहानीः तुम सभी को खुश नहीं कर सकते

एक छोटी सी कहानी है जो आपको सिखाती है कि आप हर किसी को खुश नहीं कर सकते। एक आदमी और उसका बेटा एक बार अपने घोड़े के साथ गांव से शहर जा रहे थे। वो दोनों पैदल चल रहे थे। एक व्यक्ति ने उनसे कहा कि तुम मूर्ख हो क्या, घोड़े पर सवारी करना नहीं जानते। पैदल क्यों चल रहे हो, यह घोड़ा किस काम आएगा।

यह बात सुनकर उस व्यक्ति ने अपने बेटे को घोड़े पर बैठा दिया और स्वयं पैदल चलने लगा। कुछ ही दूर चले होंगे कि रास्ते में उनको कुछ और लोग मिल गए। इनमें से एक व्यक्ति ने कहा, क्या जमाना आ गया है कि पिता को पैदल चला रहा है और स्वयं घोड़े पर बैठा है। इतना आलसी युवक तो हमने कभी नहीं देखा।

इस पर उस व्यक्ति ने बेटे से कहा कि तुम पैदल चलो और मैं घोड़े पर बैठ जाता हूं। पुत्र ने ऐसा ही किया और वह पैदल चलने लगा और उसका पिता घोड़े पर बैठ गया। कुछ दूर चलने पर उनको कुछ महिलाएं मिलीं। इनमें से एक महिला बोली, कुछ तो शर्म करो, अपने बेटे को पैदल चला रहे हो और स्वयं घोड़े पर सवारी कर रहे हो। कितने आलसी हो तुम।

इस पर वह व्यक्ति घोड़े से उतर गया और बेटे से पूछा, हमें क्या करना चाहिए। निर्णय किया कि वो दोनों घोड़े पर सवार हो जाते हैं। कुछ दूरी चलकर शहर में पहुंच गए। शहर में कुछ लोगों ने उनको रोक लिया और घोड़े से उतरने के लिए कहने लगे। उन्होंने पूछा, क्या हो गया भाई।

तभी एक शहरी ने उनसे कहा, तुम जानवरों पर इतना अत्याचार करते हो। यह बेचारा घोड़ा, कितना परेशान लग रहा है। पिता-पुत्र कहने लगे, परेशान तो हम हो रहे हैं। किसी भी तरह जीने दो भाई। लोगों ने कहा, हम कुछ नहीं जानते, तुम दोनों में कोई एक ही इस पर सवार होकर चल सकता है। इस पर पिता पुत्र ने निर्णय किया कि क्यों न घोड़े को अपने कंधे पर ढोया जाए, अब यही करना बाकी था।

उन्होंने लकड़ी के पोल पर घोड़े के पैर बांधे और उसको कंधे पर उठाने की कोशिश करने लगे। उनको ऐसा करते देख लोग हंसने लगे। कहने लगे,भाई लगता है कि तुम दोनों में दिमाग की कमी है। घोड़े पर सवारी करनी चाहिए और तुम इसको अपने कंधे पर ढोने की कोशिश कर रहे हो।

इसी दौरान घोड़े ने किसी तरह अपने पैर खोल लिए और पिता-पुत्र को लात मारकर गिरा दिया। घोड़ा दूर भाग गया। तभी एक बूढ़ा व्यक्ति वहां आया और बोला, लोग क्या कहेंगे, इसकी परवाह मत करो। तुम सभी लोगों को खुश नहीं कर सकते। कुछ तो हमेशा नाराज ही रहते हैं।

 

Rajesh Pandey

मैं राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून का निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना मेरा जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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