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अमीर पिता ने आलसी बेटे को ऐसे पढ़ाया जिम्मेदारी का पाठ

किसी शहर में एक अमीर व्यापारी था। व्यापारी का बेटा आलसी था। वह अपनी जिम्मेदारी समझने को तैयार ही नहीं था। वह न तो कड़ी मेहनत करना चाहता था और न ही पिता को व्यापार में मदद करने की इच्छा थी। पिता की चिंता थी कि वह बेटे को किस तरह श्रम के महत्व का एहसास कराएं। एक दिन उन्होंने बेटे को बुलाया और कहा, मैं चाहता हूं कि आप बाहर जाएं और कुछ कमाएं. अगर आप कुछ कमाकर नहीं लाए तो यहां रात का भोजन नहीं कर पाएंगे।

आलसी बेटे को पिता की यह बात बुरी लगी, लेकिन वह जानता था कि पिता अपनी बात पर दृढ़ रहेंगे, इसलिए डिनर के लिए कुछ तो करना होगा। वह सीधे अपनी मां के पास पहुंचा और रोने लगा। मां का दिल पिघल गया। मां बेचैन हो गईं और बेटे की मदद करने के लिए उसको सोने का सिक्का दे दिया। मां ने कहा, यह अपने पिता को दिखाना और बताना कि आपने एक दिन की मेहनत में यह कमाया है। बेटे को कोई व्यवहारिक ज्ञान तो था नहीं, इसलिए उसने भी मान लिया कि एक दिन की मेहनत में सोने का एक सिक्का कमाया जा सकता है।

शाम को वह पिता के पास पहुंचा। पिता ने पूछा, क्या कुछ कमाया है। बेटे ने बड़ी शान से पिता को सोने का सिक्का दिखाया। पिता को समझते देर नहीं लगी कि यह सिक्का कहां से लाया है। वह जानते थे कि जीवन में कोई भी काम नहीं करने वाला एक दिन की मेहनत में सोने का सिक्का कैसे लाया। उन्होंने उससे कहा, यह सिक्का कुएं में फेंक दो। पिता के इतना कहते ही बेटा, तेजी से बाहर गया और सिक्के को कुएं में फेंक आया। पिता ने उसको डिनर की अनुमति दे दी। पिता ने अनुमान लगा लिया कि उनका बेटा सोने का सिक्का अपनी मां से लेकर आया था।

अगले दिन उन्होंने पत्नी को दूसरे शहर में स्थित माता-पिता के घर भेज दिया। बेटे को बुलाकर कहा, आज डिनर करना है तो कुछ कमाकर लाओ। मेहनत करो, न कि दूसरों की कृपा के भरोसे रहो। इस बार बेटे को मां तो नहीं मिली। वह अपनी बहन के सामने जाकर रोने लगा। बहन को दया आ गई। बहन ने उसको अपनी बचत से कुछ सिक्के दे दिए। शाम को पिता ने फिर पूछा, आज क्या कमाकर लाए हो। बेटे ने उनको कुछ सिक्के दिखाए। पिता को समझते देर नहीं लगी कि इस बार बेटे की मदद बहन ने की है। उन्होंने उससे कहा,ये सिक्के कुएं में फेंक आओ। पिता के इतना कहते ही वह तेजी से बाहर गया और सिक्कों को कुएं में फेंक आया।

अगले दिन व्यापारी ने बेटी को भी अपने माता-पिता के घर दूसरे शहर भेज दिया। उन्होंने बेटे को फिर बुलाया और कहा, आज का डिनर भी तभी मिलेगा, जब कुछ कमाकर लाओगे। इस बार बेटे के सामने कोई ऐसा नहीं था, जो उसकी मदद कर सके। वह परेशान हो गया और बाजार में खड़ा हो गया। उसने एक दुकान में जाकर कहा, क्या कुछ काम मिलेगा। दुकानदार ने मना कर दिया। तभी उसकी नजर एक दुकान के बाहर टंगे पोस्टर पर पड़ी, जिस पर लिखा था-मेहनती युवकों की जरूरत। उसने तुरंत दुकान में संपर्क किया। उसको काम मिल गया।

दुकानदार ने उसको कुछ भारी पैकेट दिखाते हुए कहा, ये पैकेट सड़क पार गोदाम में रखने हैं। क्या यह काम कर सकते हो। वैसे तुम्हारी शक्ल देखकर नहीं लगता कि तुम यह काम कर लोगे। व्यापारी के बेटे ने कहा, मैं यह काम अच्छी तरह कर लूंगा। दुकानदार ने उसको अनुमति दे दी। शाम तक उसने आधे से अधिक पैकेट गोदाम में पहुंचा दिए। कभी कोई काम नहीं करने वाला लड़का काफी थक गया था। शाम को दुकानदार ने उसको कुछ सिक्के देते हुए कहा, कल सुबह समय पर आ जाना।

लड़का सिक्के लेकर खुशी खुशी अपने बंगले पर पहुंचा। पिता ने उससे पूछा, क्या कुछ कमाकर लाए हो। लड़के ने बड़े उत्साह से पिता के हाथ पर सिक्के रख दिए। पिता को समझते देर नहीं लगी कि उनका बेटा मेहनत करके ये सिक्के लाया है। उन्होंने उससे कहा, इन सिक्कों को कुएं में फेंक दो। इस बार लड़का वहीं खड़ा रहा। पिता ने पूछा, क्या हुआ तुमने सुना नहीं। ये सिक्के कुएं में फेंक आओ। इस बार लड़के ने कहा, पापा- ये सिक्के कुएं में नहीं फेंक सकता। बड़ी मेहनत से कमाए हैं।

बेटे का यह जवाब सुनकर पिता की आंखें खुशी से छलक गईं। उन्होंने कहा, बेटा अपनी मेहनत की कमाई को कोई भी ऐसे नहीं फेंक सकता। आज आपको श्रम का महत्व पता चल गया है। मैं केवल यही चाहता था। बेटे ने कहा, पापा- मुझे कल फिर उस दुकान में जाना है, जहां मेहनत करके ये सिक्के लाया हूं। पिता ने कहा, बेटा अब वहां जाने की कोई जरूरत नहीं है, तुम्हारे भीतर उन बातों की समझ विकसित होने लगी है, जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए जरूरी हैं। इसलिए कल से मेरे आफिस पहुंचो और व्यवसाय की बारिकियों की जानकारी हासिल करो।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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