ऋषिकेश की शिक्षिका की यादेंः गढ़वाल का यह गांव आज भी जेहन में है
ऋषिकेश के श्रीभरत मंदिर इंटर कॉलेज में संस्कृत की प्रवक्ता नीलम जोशी ने सुनाए गीत- भजन
राजेश पांडेय। ऋषिकेश
“मां के साथ ऋषिकेश से अपने गांव मज्यूर, जो कि पौड़ी गढ़वाल के थलीसैंण इलाके में है, जा रही थी। बौठा गांव के पास हमारी बस खराब हो गई। शाम हो गई थी, कोई और वाहन मिलने की उम्मीद नहीं थी। अब हम कहां जाएं, यह सवाल था। हमने आसपास दुकानदारों से पूछा, कहीं रुकने की जगह मिल जाए। एक दुकानदार ने हमें बताया, नदी पार करके सैंजी गांव है, वहां चले जाइए, किसी भी घर में आपके रुकने की व्यवस्था हो जाएगी।”
ऋषिकेश के श्रीभरत मंदिर इंटर कॉलेज में संस्कृत की प्रवक्ता नीलम जोशी, गांव यात्रा का एक किस्सा साझा करते हुए बताती हैं, “मैं और मां नदी पार करके सैंजी गांव पहुंच गए। एक घर में हमने बताया, बस खराब हो गई है। इसलिए सुबह तक यहां रुकना चाहते हैं। इस परिवार ने तुरंत सहर्ष हमें अपने घर में रुकने की अनुमति दे दी। शाम को हम सबने खूब बातें की। हमने उनके साथ खाना बनाने में हाथ बंटाया। आपको तो पता ही है, पहाड़ के गांवों में अतिथियों का बहुत सत्कार होता है। बातचीत में पता चला कि वो हमारे रिश्तेदारों को जानते हैं। ऐसा है हमारा गढ़वाल और यहां के गांव।”
“सुबह जब हमने गांव से विदा ली तो उस परिवार के साथ ही गांव के और भी परिवार हमें बौठा तक छोड़ने आए। हमें सामान तक उठाने नहीं दिया। यही नहीं, उन्होंने गांव में उगने वाले अनाज की छोटी छोटी पोटलियां भी बांध दीं। इतना स्नेह मिला कि हम भावुक हो गए। वास्तव में सैंजी गांव की वो यादें आज भी जेहन में हैं।”
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नीलम जोशी वर्तमान में ऋषिकेश के गंगानगर क्षेत्र में रहती हैं। बताती हैं, “मज्यूर गांव (Majyur Village) , जहां मैंने हाईस्कूल तक पढ़ाई की, आज भी बहुत याद आता है। हम गांव जाते रहते हैं। गांव पहुंचकर सबसे पहले अपने स्कूल को देखना चाहती हूं, जहां तीन किमी. की चढ़ाई पार करके पहुंचते थे।”
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गीत संगीत से लगाव पर नीलम का कहना है, “बचपन में मां और दादी को गुनगुनाते सुनती थी। एक वाकये का जिक्र करती हैं, मेरी दादी अनाज पीसने के लिए चक्की (जंद्रा) चलाती थीं। मैं दादी की गोद में सिर रखकर जंद्रा की घर्र, घर्र… की आवाज सुनती थी। आज भी जब मैं यह आवाज सुनती हूं, मुझे इसमें संगीत समझ में आता है। गांव के पास जंगल में झींगुर की आवाज, चिड़ियों की चहचहाट, नदी की आवाज…, यह सब प्रकृति का संगीत है।”
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“स्कूल के कार्यक्रमों में गाना शुरू किया और प्रशंसा मिलती तो उत्साह बढ़ता गया। मैं गायिका बनना चाहती थी, जो आज मैं हूं। मैं गायकी और गीतों की रचनाओं के कौशल को एक शिक्षिका के रूप में आगे बढ़ाने चाहती हूं। संस्कृत के पाठों, श्लोकों का लयबद्ध अध्ययन कराती हूं, जो बच्चों की समझ में आसानी से आ जाती है। विद्यालय की प्रार्थना सभा में उनके गीत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।”
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संस्कृत की प्रवक्ता नीलम जोशी हंसते हुए कहती हैं, “बच्चों को पढ़ाती हूं तो वो मेरी तरफ देखते रहते हैं। मैंने उनसे कहा, तुम किताब पर ध्यान लगाओ। छात्र-छात्राएं कहते हैं, मैडम जी आप तो बात भी करते हो, तो ऐसा लगता है गा रहे हो। सच में, गीत संगीत ने मुझे शिक्षण कार्य में बहुत सहयोग किया है।”
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नीलम जोशी, आज जिस विद्यालय में पढ़ा रही हैं, इसी विद्यालय में आपने इंटरमीडिएट की पढ़ाई की। इसके बाद पंडित ललित मोहन शर्मा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ऋषिकेश से बीए और एमए (संस्कृत) की डिग्री हासिल की। देहरादून के दयानंद वूमेंस ट्रेनिंग कॉलेज (Dayanand Womens Training College Dehradun) से बीएड किया।
संस्कृत की प्रवक्ता नीलम जोशी, वाद्य यंत्र हारमोनियम, तबला, गिटार… पर भजन और गीत प्रस्तुत करती हैं। आपरी रचनाएं प्रकृति, नारी, शिक्षा, देशभक्ति सहित विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर होती है। कहती हैं, संगीत से परिवार का वातावारण सकारात्मक होता है, संगीत को प्रेरणा का पुंज है और ऊर्जा का स्रोत भी।