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कोविड-19 के उपचार में मददगार हो सकती है ‘मुलेठी’

क दिलचस्प शोध निष्कर्ष में, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र (एनबीआरसी) के वैज्ञानिकों की टीम ने कोविड-19 की दवा विकसित करने के संभावित स्रोत के रूप में मुलेठी की पहचान की है, जो आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक जड़ी-बूटी है।

इंडिया साइंस वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने पाया कि इस जड़ी-बूटी की जड़ में पाया जाने वाला ग्लाइसीराइज़िन नामक एक सक्रिय तत्व रोग की गंभीरता को कम करता है और वायरल की प्रतिकृति बनने की प्रक्रिया को अवरुद्ध करने में भी सक्षम है।

यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी भी कोविड -19 संक्रमण के इलाज के लिए कोई विशिष्ट दवा नहीं है। हालाँकि, इसके कई टीके आ चुके हैं। उल्लेखनीय है कि कोविड-19 संक्रमण की स्थिति में डॉक्टर वर्तमान में कुछ पुनरुद्देशित दवाओं के उपयोग से इस रोग का प्रबंधन करते हैं।

एनबीआरसी की टीम ने पिछले साल कोविड-19 के खिलाफ दवा की तलाश शुरू की थी। उन्होंने मुलेठी का अध्ययन किया, क्योंकि यह अपने उत्कृष्ट दाहक-रोधी गुणों के लिए जानी जाती है। वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के खिलाफ मुलेठी की क्षमता की जाँच के लिए कई प्रयोग किए हैं।

जब कोरोनावायरस मानव कोशिकाओं को संक्रमित करता है, तो प्रतिक्रिया में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस के विरुद्ध साइटोकिन्स नामक प्रोटीन का एक सेट तत्काल जारी कर देती है। गंभीर संक्रमण के मामले में, प्रतिरक्षा कोशिकाएं “साइटोकिन्स का अत्यधिक तेज प्रवाह” जारी करके तेजी से प्रतिक्रिया करती हैं।

कभी-कभी यह प्रवाह अनियंत्रित हो सकता है, जिससे फेफड़ों के ऊतकों में गंभीर सूजन और द्रव का संचय हो सकता है। यह स्थिति जटिल श्वसन संकट, कोशिकाओं की मौत और अंततः अंगों की विफलता का कारण बन सकती है।

एनबीआरसी के वैज्ञानिकों ने पाया कि मुलेठी में मौजूद ग्लाइसीराइज़िन अणु इस समस्या से बचने में मदद कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने मानव फेफड़े के उपकला कोशिकाओं में विशिष्ट वायरल प्रोटीन का परीक्षण किया है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि यह वायरल प्रोटीन इन कोशिकाओं में सूजन पैदा करता है। उन्होंने पाया कि ग्लाइसीराइज़िन से उपचार करने से यह सूजन दूर हो जाती है। जबकि, अध्ययन के दौरान अनुपचारित कोशिकाओं ने सूजन के कारण दम तोड़ दिया।

वैज्ञानिकों ने आगे अणु का विश्लेषण किया और पाया कि साइटोकिन प्रवाह को रोकने के अलावा, ग्लाइसीराइज़िन वायरल प्रतिकृति को 90% तक कम कर देता है। फेफड़ों की बीमारियों, पुराने बुखार और श्वसन-मार्ग की सूजन के लिए आयुर्वेद में मुलेठी व्यापक रूप से उपयोग होती है। वहीं, ग्लाइसीराइज़िन का उपयोग पुराने हेपेटाइटिस-बी और हेपेटाइटिस-सी के उपचार में किया जाता है।

वैज्ञानिकों ने कहा है कि “सुरक्षा की दृष्टि से इसके प्रोफाइल और सहनशीलता को देखते हुए, मुलेठी सार्स-कोव-2 संक्रमण वाले रोगियों में एक व्यवहार्य चिकित्सीय विकल्प बन सकती है।”

शोधकर्ता अब शोध को पूर्व-चिकित्सीय चरण में आगे बढ़ाने के लिए भागीदारों की तलाश कर रहे हैं। उन्होंने इंटरनेशनल साइटोकाइन एंड इंटरफेरॉन सोसाइटी की आधिकारिक पत्रिका साइटोकाइन में अपने अध्ययन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। वरिष्ठ वैज्ञानिक एलोरा सेन ने अपने सहयोगी शोधकर्ता पृथ्वी गौड़ा, श्रुति पैट्रिक, शंकर दत्त, राजेश जोशी और कुमार कुमावत के साथ यह अध्ययन किया है।- India Science Wire

Keywords:- National Brain Research Center (NBRC), Department of Biotechnology (DBT), Government of India, COVID-19, Mulethi, Body’s immune system, Cytokines, Glycyrrhizin,SARS-CoV-2 infection,

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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