Featuredimprovement yourself

जंगल का राजा बंदर

  • श्रेयन ठाकुर

जंगल में जीवों की सभा बुलाई जा रही है। बंदरों को पूरे जंगल को सूचना देने का जिम्मा दिया गया है। बंदरों को इसलिए, क्योंकि वो फुर्ती से काम करते हैं। सभा बुलाने का उद्देश्य जंगल में चुनाव की घोषणा करना है, क्योंकि जंगली नहीं चाहते कि शेर उनका राजा बना रहे। वो शेर के शासन से उब गए हैं। वो चाहते हैं कि जंगल में लोकतंत्र को पूरी तरह लागू किया जाए। शेर परिवार का राज हमेशा के लिए खत्म किया जाए। जानवर जिसको चाहें, अपना राजा बनाएं।

इस पूरे बदलाव के लिए भालू और बंदरों की टोलियों ने दिनरात एक कर दिया। तय समय पर जंगल में सभा हुई। बहुत सारे जानवर पहुंचे और एकमत से फैसला हो गया कि जंगल में चुनाव होगा। भालू और बंदर ने राजा पद के लिए नामांकन कर दिया। बंदरों की टीम ने चुनाव प्रचार में ताकत झोंक दी। वो सभी जानवरों के ठिकानों पर तेजी से पहुंचे, जबकि भालू के साथी ऐसा नहीं कर पाए। भालू ने सोचा कि सभी जीवों तक उसका प्रचार नहीं हो सकता, इसलिए हार तय है। उसने नामांकन वापस ले लिया और बंदर को जंगल का राजा घोषित किया गया। वहीं शेर पूरे घटनाक्रम को जान रहा है। उसे पता है कि जंगल को काबू में रखने की ताकत तो उसी के पास है, भले ही राजा कोई बन जाए।

शेर ने सुना कि बंदर को राजा बना दिया गया है तो वह स्वयं की हंसी रोक नहीं पाया। वह जानता है कि बंदर क्या सभी जीवों को अपनी दुख तकलीफ लेकर मेरे पास ही आना पड़ेगा, क्योंकि बंदर के बस में शासन चलाना नहीं है। उधर, राजा घोषित होने के बाद बंदर खुशी में पगला सा गया है। वह अपने साथ कुछ चापलूस बंदरों और जानवरों को लेकर पूरे जंगल का दौरा कर रहा है। वह जिसको चाहे डांट दे, फटकार दे, कोई उसके सामने कुछ नहीं बोलता। क्योंकि सभी ने उसे ही तो अपना राजा बनाया है। इसलिए उसको सहन भी करना पड़ेगा।

राजा बंदर के पास जानवर अपनी समस्याएं लेकर आने लगे। एक दिन एक लोमड़ी ने राजा बंदर से फरियाद की कि शेर के उत्पीड़न से मुक्ति दिलाई जाए। शेर रोजाना सुबह होते ही उसके घर के सामने आकर बैठ जाता है और जोरों से डकार मारता है। इससे उसके बच्चे बुरी तरह घबरा गए हैं और कुछ खा पी नहीं रहे हैं। उसके बच्चों का जीवन खतरे में है। शेर को वहां से हटाया जाए, नहीं तो उसके बच्चे बेमौत मारे जाएंगे।

बंदर ने कहा, ऐसी बात है। शेर को वहां से तुरंत हटाया जाएगा। तुम घर जाओ और यह काम मुझ पर सौंप दो। बंदर ने तुरंत बाघ को बुलाया और आदेश दिया कि शेर को वहां से हटने के लिए कहा जाए। उसको जाकर कहना कि यह राजा बंदर का आदेश है। अगर तुम लोमड़ी के घर के सामने से नहीं हटे तो बल प्रयोग किया जा सकता है। बंदर के आदेश का अनुपालन कराने के लिए बाघ मौके पर गया और शेर से कहा, हट जाओ यहां से। शेर ने कहा, तुम कौन होते हो, मुझे यहां से हटाने वाले। जंगल में यह कैसा लोकतंत्र है कि किसी जानवर को उसकी इच्छा से कहीं बैठकर आराम भी नहीं करने दिया जा रहा।

बाघ ने कहा, तुम्हारी इस हरकत से लोमड़ी के बच्चे परेशान हो रहे हैं। शेर ने जवाब दिया, मैं तो उनसे कुछ नहीं कह रहा। खाना खाकर धूप सेंकने आता हूं यहां। यह किसने कह दिया कि डकार मारना अपराध है। तुम चले जाओ यार, मेरा मूड़ खराब मत करो, शेर ने दहाड़ मारकर कहा। बाघ ने सोचा कि शेर से भिड़ना ठीक नहीं है। यह हमारी फैमिली का ही तो मेंबर है। क्या जाने कब जंगल की सत्ता इसके हाथ में आ जाए। बाघ यह कहता हुआ कि जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं क्या करूं, राजा स्वयं देखेगा तुम को, वहां से चला गया।

बाघ ने राजा बंदर से कहा, महाराज शेर नहीं मान रहा। बंदर ने कहा, क्यों नहीं मान रहा। राजा का आदेश नहीं मानने की सजा पता है उसको। ठीक है, तुम जाओ। राजा बंदर ने तुरंत हाथी को बुलाया। उसने हाथी से कहा, सारा दिन खाते ही रहते हो या कुछ काम भी करते हो। तुम्हारे इतने बड़े शरीर का जंगल को क्या लाभ मिल रहा। हाथी ने कहा, महाराज क्या कोई गलती हो गई। राजा बंदर ने कहा, तुमसे कोई गलती नहीं हुई। तुम एक काम करो, तत्काल जाकर लोमड़ी के घर के सामने से शेर को हटाओ। तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है, तुम राजा के आदेश का पालन कर रहे हो। धमका कर , प्यार से समझाकर, किसी भी तरह, जो तुम्हारा मन करो, शेर को वहां से भगा दो। चिंता मत करना, मैं तुम्हारे साथ हूं।

आदेश का पालन कराने के लिए हाथी मौके पर पहुंचा। उसने शेर से कहा, देख भाई, राजा तुम से बहुत नाराज हैं। यार, क्यों अपना और हमारा समय खराब कर रहे हो। चुपचाप यहां से चले जाओ, नहीं तो…। शेर को गुस्सा आ गया। शेर ने जवाब दिया, नहीं तो… क्या कर लेगा। तू मुझे जानता नहीं है। तेरे जैसों से अपने बच्चों का खाना बनवाता था मैं। एक जमाना था मेरा…। समय क्या बदला तेरे जैसे जानवर मुझको आंखें दिखाकर धमकाने की कोशिश करने लगे। नहीं हटता मैं यहां से, तू क्या कर लेगा।

जंगल के कानून में यह कहां कहा गया है कि कोई किसी के घर के सामने नहीं बैठ सकता। मैं किसी के घर में नहीं घुस रहा हूं। एक बात ध्यान से सुन ले, मैं जंगल का पूर्व राजा हूं। मैं फिर से तेरा राजा बन सकता हूं। इसलिए चुप होकर यहां से खिसक ले। यह कहते ही शेर ने जोरों से दहाड़ मारी। हाथी ने स्वयं से कहा, लगता है यहां कोई नहीं डरने वाला और वह चुपचाप वहां से चला गया।

लोमड़ी एक बार फिर रोते हुए राजा बंदर के पास पहुंची और बोली, शेर के सामने हाथी, बाघ सब फेल हो गए। ऐसे तो मेरे बच्चे मर ही जाएंगे। उनके मरने का पाप आप पर लगेगा, राजा जी। बंदर गुस्से में आ गया और कहने लगा, लगता है मुझे ही जाना पड़ेगा। बंदर तुरंत लोमड़ी के घर के सामने बैठे शेर के पास पहुंचा और कहने लगा, शेर तुम यहां से तुरंत चले जाओ। तुम शायद मेरा गुस्सा नहीं जानते। आदेश का पालन नहीं करने वालों पर मैं सख्त कार्रवाई करता हूं। चलो हटो यहां से।

शेर ने कहा, तुम पगला गए हो क्या। चुपचाप निकल जाओ यहां से। मैं यहीं बैठूंगा, तुम कुछ भी नहीं कर सकते। बंदर ने तेजी से खीं-खीं करके शेर को डराने की कोशिश की। शेर दहाड़ मारता तो वह पेड़ पर चढ़ जाता। थोड़ी देर में पेड़ से उतरकर उसको खीं खीं करते घुड़की देता और शेर के दहाड़ने पर फिर पेड़ पर चढ़ जाता। ऐसा कई बार होने के बाद भी शेर वहां से नहीं हिला।

लोमड़ी ने रोते हुए बंदर से कहा, महाराज लगता है, शेर यहां से नहीं हट पाएगा। आप भी कुछ नहीं कर पा रहे हो। मेरी रही बची उम्मीद भी खत्म हो गई। अब बंदर को लोमड़ी पर गुस्सा आ गया। वह उस पर चिल्लाते हुए तेजी से बोला- तुमने अभी देखा कि मैंने अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं रहने दी। मेरे प्रयासों में कोई कमी नहीं है, वो अलग बात है कि शेर जिद्दी हो गया है और यहां से हटने वाला नहीं है।

तुम्हें तो अपने राजा पर गर्व होना चाहिए कि वह प्रयास कर रहा है और स्वयं मौके पर जाकर। इसलिए चुप होकर यहां से चली जाओ और मेरे पास दोबारा नहीं आना, तुम्हारी शिकायत का निस्तारण हो चुका है। यह कहते ही वहां मौजूद चापलूस जानवर और बंदरों की टोली  राजा बंदर की जय हो, राजा बंदर की जय हो… के नारे लगाने लगीं।

बेचारी लोमड़ी वहीं रोते रोते जमीन पर गिर गई। शेर को उस पर दया आ गई और वह स्वयं ही उठकर वहां से चला गया।जाते-जाते उसने लोमड़ी से कहा, तुम परेशान मत हो। मैं तो तुम्हें और तुम्हारे जैसे जीवों को यह बताना चाहता था कि मैं अभी जिंदा हूं और मेरी ताकत बरकरार है। मैं अभी भी तुम्हारा राजा हूं, भले ही घोषित तौर पर नहीं। तुम्हें कोई दिक्कत हो तो बेखौफ मेरे पास आ सकती हो। यह सुनते ही लोमड़ी खुशी खुशी अपने बच्चों के पास दौड़ गई।

ई बुक के लिए इस विज्ञापन पर क्लिक करें

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker