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मिल्क स्टोरी-2ः इन पशुपालकों के हालात जानकर बहुत दुख होता है

पशुपालन को प्रोत्साहन देने की बात करने वाला सिस्टम पशुपालकों की दिक्कतों से अंजान कैसे हो सकता है। दुग्ध उत्पादन महज रोजगार ही नहीं बल्कि मानव विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा है। डोईवाला ब्लाक के नागल ज्वालापुर में किराये की भूमि पर बसे दो परिवारों से डुगडुगी ने बात की।
पशुपालक गुर्जर परिवारों की दिक्कतों को जानने किए देखिएगा यह वीडियो-

पशुओं के लिए सुरक्षित आश्रय, चारा, पानी आवश्यकताएं तक पूरी नहीं हो पा रही हैं। पशुओं के बाड़ों की तिरपाल, फूस से बनाई छत आंधी में उड़ गई। बाड़ों में पानी भरा है। पशुओं को सुरक्षित रूप से रखने के इंतजाम नहीं हो पा रहे हैं।
वहीं बाजार से खरीदे जाने वाले आहार, दाना, चौकर, खली पापड़ी के रेट पर कोई नियंत्रण नहीं है। लॉकडाउन में तो मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं। कालाबाजारी ने पशुपालकों को महंगे दाम पर पशुआहार खरीदने को मजबूर कर दिया।
वन गुर्जर पशुपालन से आय अर्जित करते हैं। दुग्ध उत्पादन ही उनकी आजीविका का जरिया है। श्रम एवं लागत के अनुसार दूध का मूल्य नहीं मिल पा रहा है।
तड़के से शुरू होकर देर रात तक पशुओं की सेवा में लगाने वाले परिवार को प्रतिदिन दस लीटर दूध पर महीने में नौ हजार रुपये मिल रहे हैं, इसी राशि में खर्चे भी शामिल हैं। कुल मिलाकर माह में लगभग पांच हजार की आय।
मिल्क स्टोरी पर हमारे अन्य वीडियो का लिंक यह है-

वनों या वनों के पास रहने वाले इन परिवारों की पहुंच में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी सहित कई बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखा जा रहा है। बच्चों के शिक्षा चाहते हैं। बच्चे जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं।
कक्षा 3 के छात्र इब्राहिम कहते हैं, मैं मास्टर बनना चाहता हूं। बच्चों के सपनों को हकीकत में बदलने के लिए सहयोग की जरूरत है।
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किसी भी सुझाव के लिए संपर्क कर सकते हैं- 9760097344

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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