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डोईवाला में खनन की गाड़ी ने सुरक्षा गार्ड को टक्कर मारी, छीन गया रोजगार, बदहाल हुआ एक परिवार

11 नवंबर 2023 को हुई थी दुर्घटना, तभी से बिस्तर पर ही पड़ने को मजबूर सुरक्षा गार्ड

राजेश पांडेय। डोईवाला

करीब 40 वर्षीय इकबाल सिंह, को अधिकतर लोग सुरेश खालसा के नाम से जानते हैं। डोईवाला बाजार में करीब 15 वर्ष खालसा टेलर के नाम से शॉप चला चुके इकबाल ने कुछ साल पहले खैरी में दुकान खोली थी। वो रात में सुरक्षा गार्ड की सेवाएं दे रहे थे और दिन में कुछ घंटे दुकान चला रहे थे। चार महीने पहले खनन वाली ट्रैक्टर ट्राली ने उनकी बाइक को टक्कर मार दी। उनकी एक टांग कट गई। इकबाल तभी से बिस्तर पर पड़े हैं। उनका रोजगार बंद हो गया। आर्थिक रूप से बुरी तरह टूट चुके इकबाल के सामने तीन छोटे बच्चों की परवरिश की चुनौती है। उनका सबसे बड़ा बेटा मात्र 13 साल का है।

खैरी के फाटक से होकर माता नलो वाली देवी मंदिर के रास्ते पर ही इकबाल का घर है। खैरी गांव, देहरादून जिले में डोईवाला ब्लाक का गांव है। हमेशा सामाजिक रूप से सक्रिय रहने वाले इकबाल सिंह इन दिनों अपने घर के छोटे से बरामदे में चारपाई पर बैठकर पूरा दिन गुजारते हैं। कहते हैं, “मुझे दुख होता है, मैं कभी खाली नहीं बैठा, पर चार महीने से कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हूं। सामाजिक रूप से भी सक्रिय रहा, पर अब क्या करें, चलने में कितना समय लगेगा, पता नहीं। खैरी फाटक के पास मेरी दुकान भी तभी से बंद है।”

बताते हैं, “पिछले साल 11 नवंबर की शाम करीब पौने सात बजे ड्यूटी जा रहा था। मैं हिमालयन इंस्टीट्यूट में रात को गार्ड की नौकरी कर रहा था। वहां से लौटता और करीब पांच-छह घंटे सोने के बाद खैरी में ही अपनी दुकान में दो तीन घंटे बैठकर कपड़े सिलाई करता था। घर परिवार का गुजारा चल रहा था। मेरे पास थोड़ी सी ही जमीन है।”

दुर्घटना का जिक्र करते हैं, ” घर से लगभग डेढ़ किमी. दूर भी नहीं गया होगा कि तेजी से दौड़ रही खनन वाली ट्रैक्टर ट्राली ने बाइक को टक्कर मार दी। मेरे एक पैर की हड्डी बुरी तरह टूट गई। पैर का मांस बाहर निकल गया। ट्रैक्टर वाला वहां पांच मिनट रूका होगा, पर उसने मेरी मदद नहीं की। फिर वो वहां से ट्रैक्टर ट्राली लेकर भाग गया। वहां लोग इकट्ठा हो गए, पर सब तमाशा देख रहे थे। मैं दर्द से कराह रहा था। मेरे भांजे को कहीं से पता चला, वो वहां पहुंचा और मुझे लेकर हिमालयन अस्पताल पहुंचा।”

इकबाल बताते हैं, “मैंने वहां खड़े बच्चों से कहा, एक फट्टी ला दो। वो फट्टी लाए, जिस पर अपने टूटे पैर को किसी तरह रखकर बांधा और अस्पताल पहुंच गया। ऑपरेशन हुआ। अब घर पर पड़ा हूं, पता नहीं कब ठीक हो जाऊंगा। मुझे घर परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने की चिंता है।”

वो बिस्तर पर ही दिनचर्या के कार्य निपटाते हैं। लैट्रीन, यूरिन सबकुछ बिस्तर पर। उनके बिस्तर पर ही टूथ पेस्ट और ब्रश रखा था। चारपाई पर बैठे इकबाल उस समय घर में अकेले थे। बच्चे स्कूल गए थे और पत्नी खेत में गई थीं। उनके घर के सामने एक सड़क है और फिर देहरादून- हरिद्वार रेलवे लाइन। घर की कोई बाउंड्रीवाल नहीं है। छोटे से बरामदे की छत भी उखड़ रही है।

बताते हैं, “दिन तो किसी तरह यूं ही बिस्तर पर बैठे बैठे कट जाता है, पर रात बेचैनी वाली होती है। रात को जागकर बैठ जाता हूं, कभी मोबाइल फोन पर समय बीतता है और फिर कुछ सोचता रहता हूं। पूरी रात ऐसे ही कटती है। मेरे दिल की बात मैं ही जान सकता हूं, जिससे पर बीतती है, वही जानता है।

मैं गांव-गांव घूमने वाला, लोगों की मदद करने वाला सामाजिक व्यक्ति आज बिस्तर पर बैठा है। कोई देखने तक नहीं आया। मैं बहुत दिक्कत में हूं।

मेरे भाई भाभी मदद कर रहे हैं। वो खाने की व्यवस्था कर रहे हैं। भाई ने मुझे कुछ पैसे भी दिए हैं। उनके सहयोग को हमेशा याद रखूंगा।

बताते हैं, “उनकी मोटरसाइकिल डोईवाला कोतवाली में ही जमा है।  पुलिस मेरी बाइक को थाने ले गई थी। मैं बाइक को लेने कैसे जाऊं, किसी को भेजना पड़ेगा। पता नहीं बाइक की कंडीशन क्या होगी। मैं इस दुर्घटना से बड़े आर्थिक संकट में आ गया। समझ में नहीं आ रहा, क्या करूं।”

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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