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मां, तू तो मृत शैया पर अच्छी लगती है…

कहते हैं कि मां का दिल बहुत बड़ा होता है और वो अपने बच्चों के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर देती है। अगर यह बात सही है तो मां, तू क्यों जिंदा होना चाहती है। मां हम तुझे मृत देखना चाहते हैं। क्या तू खुद को जीवित करके अपने बेटों के सुख, सियासत, ऐश्वर्य, धन संपदा को छीनना चाहती है। तू तो धरती पर साक्षात देवी कही जाती है और हमने जब भी जरूरत पड़ी, तुझको मां कहकर पुकारा और तुझे सम्मान दिया है।

जब तुझे मृत होने के बाद भी हम सम्मान दे रहे हैं और तेरा गुणगान कर रहे हैं तो तू फिर जी कर क्या करेगी। मां तू तो हमें मृतशैया पर ही अच्छी लगती है, क्योंकि तेरी इस स्थिति को देश दुनिया में दिखाकर हमें करुण क्रंदन का मौका जो मिलता है। हमने तो तेरे दम पर अपनी सियासत की है। इतनी सी बात भी तू नहीं जानती मां, जब वर्षों से चल रहे इलाज के बाद भी तू मृत्यु के मुंह से बाहर नहीं आ सकी, तो हम क्या कर लेंगे और मात्र जीवित रहने का तमगा लेकर तो तेरा उद्धार होने से रहा, भले ही तू दुनिया के पापों को हरण करके सबका उद्धार करती रहे। मां अपने उन बच्चों की तरफ तो देख, जो तेरे नाम पर खा कमा रहे हैं।

वर्षों से चल रहे तेरे इलाज पर अरबों का बिल बन गया है और तू है कि जीने की चाह पाले बैठी है। अगर तू फिर से जिंदा हो गई तो उनका क्या होगा, जो तेरे नाम पर अपनी गुजर बसर कर रहे हैं। तुझे तेरे अपने लोगों ने मार डाला, हम तो बस केवल इतना ही तो कर रहे हैं कि तू जिंदा न हो सके। अगर मां तू जीवित हो गई तो हम तो बिना बात के मारे जाएंगे न।

यह तेरी भूल है, हम तुझे जिंदा करने की नहीं बल्कि तुझे संवारने की स्क्रिप्ट लिख रहे हैं, कभी-कभी रिहर्सल भी कर लेते हैं। हमारे इस ड्रामे में तेरा जो किरदार है, वो मृत होकर भी अविरल उद्धार करने वाली जीवनदायिनी का है। अगर तू जिंदा होगी, तो हमारे इस तमाशे का क्या होगा, जिसकी हम वर्षों से तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि यह तो तुझको मरा हुआ दिखाकर ही ख्याति पाएगा। हम तो तेरे नाम पर रचे इस ड्रामे की रिहर्सल से ही इतने प्रसिद्ध हो गए कि पूछो मत।

हम देश दुनिया में तेरे नाम पर आंसू बहाते हैं और तेरे तट आंगन को अपना बसेरा बनाना चाहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि पौराणिक काल से चल रहा दुनिया के उद्धार का सिलसिला आज भी अनवरत रूप से जारी है। तेरा नाम लेने से ही उमड़ने वाला आस्था का ज्वार हमारी सियासी ताकत बन जाता है, लेकिन मां हमारी तुझसे विनती है कि तू मृत शैया पर ही रहना। अगर तू ठीक हो गई तो उन संवेदनाओं का क्या होगा, जिनसे हम वर्षों से खेल रहे हैं। मां तू जिंदा मत होना, क्योंकि इसमें ही हमारा भला है….। हम जानते हैं कि तू हमारा बुरा नहीं करेगी, इसलिए तू मृत शैया पर ही रहेगी मां…।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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