ऋषिकेश के इस खिलाड़ी के हाथ पर ध्यानचंद जी ने रखे थे अपने मेडल
ऋषिकेश के प्रगति विहार में रहने वाले 73 वर्ष के डीपी रतूड़ी ने साझा किए जीवन के किस्से
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग
“1978 में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद जी (Major Dhyan Chand) से उनके झांसी स्थित आवास पर मिलने गया था। मैं तो उनको हॉकी का भगवान मानता हूं। सोच रहा था, दुनिया में मशहूर यह शख्स इतना साधारण जीवन जीता है। उस वक्त वो अपने आवास पर बनियान और पजामा पहने थे। बड़ी आत्मीयता से वो मिले।”
” मैं और मेरा भाई, जो कि चिकित्सक है, पूरा दिन उनके आवास पर रहे। उनके साथ नाश्ता किया, दिन का भोजन लिया। इस दौरान बहुत सारी बातें हुईं। मैं हॉकी में नेशनल खेलना चाहता था, पर जिस दिन, मैं ध्यानचंद जी से मिला, मैंने समझ लिया कि मेरा यह सपना भी पूरा हो गया है। मैं कितना खुशकिस्मत हूं कि दुनिया में हॉकी के मशहूर खिलाड़ी ने अपने गोल्ड मेडल स्वयं मेरे हाथ पर रखे थे। वो हमें अपने मेडल दिखा रहे थे। उनके पुत्र अशोक कुमार से अच्छी दोस्ती है। अशोक कुमार भी हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं। उनको गीत गाने का बहुत शौक है। ऋषिकेश आएंगे तो आपको उनसे मिलवाएंगे। ”
ऋषिकेश के प्रगति विहार में रहने वाले 73 वर्ष के डीपी रतूड़ी, जिनका पूरा नाम देवेश्वर प्रसाद रतूड़ी है, अपने जीवन के उन लम्हों को रेडियो ऋषिकेश साझा कर रहे थे, जो उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।
शानदार व्यक्तित्व के धनी, घनी सफेद मूंछें रखने वाले रतूड़ी जी वर्ष 1998 में एयरफोर्स से वारंट अफसर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। वायुसेना की हॉकी टीम के प्लेयर रहे हैं और हॉकी से उनको बेहद प्यार है, जो सेवानिवृत्ति के 25 साल बाद भी बना है। आज भी आपको आईडीपीएल ग्राउंड में ह़ॉकी खेलती टीम का उत्साह बढ़ाते हुए देखा जा सकता है।
बताते हैं, “हॉकी मेरे खून में है, जब भी मैं युवाओं को खेलते हुए देखता हूं तो सबकुछ भूल जाता हूं। मुझे खाना-पीना भी याद नहीं रहता। जैसे ही कोई फोन आता है, तो पत्नी समझ जाती हैं कि कहीं टूर्नामेंट हो रहा है या फिर बच्चे कहीं खेलने जा रहे हैं।”
परिवार का कहना होता है कि “घर पर रहो, अपना ख्याल रखो, अभी आपकी उम्र खेल के मैदान में दौड़ने की नहीं है। वैसे परिवार वालों को मेरी फिक्र है,पर वो शायद यह नहीं जानते कि हॉकी मेरी भूख है, जिसकी जगह कोई खाना-पीना या सुख सुविधाएं नहीं ले सकते,” हंसते हुए रतूड़ी जी कहते हैं।
कहते हैं, “ध्यान चंद जी के जन्मदिवस 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है, यह सरकार ने बहुत अच्छा निर्णय लिया है।”
रतूड़ी जी के अनुसार, “उन्होंने ध्यान चंद जी से पूछा, 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतने के बाद, क्या जर्मन तानाशाह हिटलर ने आपको अपनी सेना का जनरल बनाने का प्रस्ताव दिया था।”
इस पर महान खिलाड़ी ध्यान चंद जी ने स्पष्ट किया, “हिटलर उनके खेल से बहुत प्रभावित हुआ था, पर हिटलर ने उनके समक्ष ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रखा था। हां, इतना जरूर है, हिटलर खुद चलकर उनके पास पहुंचा था और उनसे हाथ मिलाया था।”
रतूड़ी जी कहते हैं, “महान शख्सियत ध्यान चंद जी, मेरे लिए भगवान हैं। मैंने उनके चरणों को छूआ। उन्होंने स्वयं अपने मेडल मेरे हाथ पर रखे। इसलिए हॉकी में नेशनल खेलने की मेरी इच्छा वहीं पूरी हो गई। उनके आशीर्वाद का ही फल है कि सेवानिवृत्ति के बाद मुझे ऋषिकेश के राजकीय महाविद्यालय में बतौर हॉकी गुरु, बच्चों का मार्गदर्शन करने का अवसर मिल गया। डिग्री कॉलेज में उस समय जगदीश सिंह बिष्ट जी खेल विभागाध्यक्ष थे। बाद में, मुझे ऋषिकेश, डीएवी पीजी कॉलेज की गर्ल्स, ब्वायज हॉकी टीम सेलेक्ट करने की जिम्मेदारी भी मिल गई।”
रतूड़ी जी का, हॉकी ही नहीं, क्रिकेट, फुटबॉल, हाईजंप, लॉंग जंप से भी गहरा नाता है। अपने समय के बेहतरीन एथलीट रहे हैं।
बताते हैं, “शुरुआत में मेरी पहचान फुटबॉल खिलाड़ी की रही है। हॉकी से तब जुड़ा, जब मैं एयरफोर्स में भर्ती हुआ। उनकी पढ़ाई मेरठ हॉस्टल, श्रीभरत मंदिर इंटर कॉलेज में हुई। मेरठ हॉस्टल में, वहां के स्थानीय बच्चों के साथ खेलता था। मुझे हॉकी खेलने के लिए, उस समय प्रिंसिपल आईसी मित्तल सर ने प्रेरित किया। यह बात 1958 की है, उन्होंने मेरा खेल देखा तो कहने लगे, तुम तो ध्यानचंद हो। मैं बहुत छोटा था, इसलिए मुझे नहीं पता था, ध्यानचंद कौन हैं। पर, जब मैं ध्यानचंद जी से मिला तो प्रिंसिपल सर की बात याद आई और आंखें नम हो गईं।”
ऋषिकेश में एक स्टेडियम की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहते हैं, “बच्चों को खेलने के लिए सुविधाओं से पूर्ण मैदान चाहिए। एस्ट्रो टर्फ मैदान की जरूरत है, जिन पर खेलना आसान नहीं होता। बच्चों को इन मैदानों पर खेलने का प्रशिक्षण मिलना चाहिए, ताकि वो किसी भी टूर्नामेंट में दमखम दिखा सकें। उत्तराखंड के युवाओं में बहुत स्टेमिना है। सुविधाओं और संसाधनों से भरपूर मैदान मिलेंगे, तो उनका खेल कमाल का होगा।”
“हॉकी या कोई भी खेल, बच्चों को अनुशासन और समयबद्धता से जोड़ता है। युवा खेलेंगे तो बहुत सी खराब आदतों से दूर रहेंगे। उनका स्वास्थ्य बेहतर होगा, वो पढ़ाई में बेहतर परिणाम लाएंगे। हम बच्चों को उज्ज्वल भविष्य की राह दिखाना चाहते हैं। उनको जीवन में बेहतर करने के लिए मॉटिवेट करना चाहते हैं,” डीपी रतूड़ी कहते हैं।