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News Portal Journalism: न्यूज पोर्टल जर्नलिज्म मेरे लिए तो अच्छी है, इसने मेरी पत्रकारिता को जिंदा रखा है

मुझे खुशी है कि मैं किसी दलीय या व्यक्तिगत राजनीति से संबद्ध किसी भी गुट का सदस्य नहीं हूं

News Portal Journalism Financial Support: राजेश पांडेय। देहरादून, 21 अक्तूबर 2025: न्यूज पोर्टल जर्नलिज्म, जिसको अक्सर सरकारी विज्ञापन के नाम पर कोसा और बदनाम किया जाता है। यह मेरे जैसे पत्रकारों के लिए तो अच्छी है। मैं अपनी जानता हूं और मानता हूं कि इसने मुझे बहुत सहयोग किया। मुझे इस पर वही विज्ञापन मिलता है, जो सरकार की टेंडर नीति के तहत सभी को मिलता है। अगर, सरकार की कोई खबर, जो इन्फारमेशन है, जनहित में है, तो उसको प्रकाशित करने में मुझे खुशी ही मिलेगी। ग्राम यात्राएं करना, उनको विस्तार से अपने पोर्टल पर स्थान देना मेरा शौक है। मुझे खुशी है कि मैं किसी दलीय या व्यक्तिगत राजनीति से संबद्ध किसी भी गुट का सदस्य नहीं हूं और न ही मुझे किसी का कंधा बनने की जर्नलिज्म आती है।

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मेरी तरह और भी न्यूज पोर्टल हैं, जो खबरों के लिए मेहनत करने वाले उन पत्रकार साथियों द्वारा संचालित हैं, जो पत्रकारिता को उसके दायरे और नियमों में रखकर ही करते हैं। इससे घर परिवार को चलाने में उनको मदद मिलती है, इसमें बुरा ही क्या है। क्या सरकार बड़े समूहों को विज्ञापन नहीं देती। बहुत सारे पत्रकार साथी हैं, जो अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठे हैं और घर परिवार की तमाम जिम्मेदारियां निभाने के लिए आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

पर, इसके साथ ही… मैं उन लोगों का भी सख्त विरोध करता हूं, जो जबरदस्ती के पत्रकार बने हैं, न्यूज पोर्टल की आड़ में अपने धंधे चला रहे हैं, ब्लैकमेलिंग पर उतारू होते हैं, सरकारी अफसरों पर विज्ञापनों के लिए दबाव बनाते हैं, भांडगीरी करते हैं, रागदरबारी बनते हैं, दूसरे के स्वार्थ पूरे करते हैं, कुल मिलाकर पत्रकारिता का नाश करने पर तुले हैं।

News Portal Journalism Financial Support: अब आपको अपना उदाहरण देकर बताता हूं, दायरे में रहकर पत्रकारिता करने वाले पत्रकार साथियों के सामने कभी कभी क्या संकट आते होंगे और उनका न्यूज पोर्टल उनका सहयोगी कैसे होता है। मैंने 1996 में पत्रकारिता की शुरुआत की, जैसा कि मैं पहले भी जिक्र कर चुका हूं। शुरुआती दौर में अक्सर सोचता था कि 22 साल में एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र से जुड़ने का सौभाग्य मुझे मिल गया और कभी बेरोजगार नहीं रहने का दुख मेरे साथ नहीं रहा। हालांकि, पैसे कितने मिलते थे, वो मेरे लिए इसलिए मायने नहीं रखते थे, क्योंकि मेरा सारा खर्च मेरे पापा ही उठाते थे। वो कई बार कहते थे, पढ़ने में ठीक है, कंपीटिशन की तैयारी कर, इस पत्रकारिता में कुछ नहीं रखा। पापा सरकारी सेवा में थे और पत्रकारों के हाल जानते थे। मैंने उनका कहना नहीं माना और पत्रकार बनने का भूत मुझ पर सवार था।

20 साल अखबारों की सेवा की, शुरुआत की तनख्वाह तो किसी को बताने लायक भी नहीं थी। पर, धीरे धीरे हालात अच्छे होते गए और अब सेलरी भी बताने लायक थी और पद भी। तीन अखबारों में काम किया, कितना काम किया, कितना तकलीफें झेलीं, कितनी सुनी और सुनाई, इसका जिक्र भी बेकार होगा, क्योंकि पत्रकार बनने का निर्णय मेरा अपना था, इसलिए अच्छा हो या बुरा हो, इसका श्रेय भी मुझे लेना था।

अब असल मुद्दे पर आते हैं, न्यूज पोर्टल जर्नलिज्म पर। शुरुआत से लेकर 2016 तक मुझे पोर्टल जर्नलिज्म के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं था, क्योंकि इसका चलन ही बहुत बाद में हुआ। अखबारों में रहने के दौरान, मैं समझता था कि हम सुखी हैं, जब तक तनख्वाह मिलती रहेगी कोई बड़ा आर्थिक संकट नहीं आएगा। हर महीने की आखिरी तारीख को तनख्वाह मिलती, दिन अच्छे चल रहे थे। कई बार यह चिंता जरूर होती कि अगर अखबार का साथ छूटा तो फिर क्या होगा। तनख्वाह नहीं मिली तो महीनेभर की जिम्मेदारियां कैसे पूरी करेंगे। पर, दूसरे पल किसी भी दबाव में नौकरी करने, किसी भी कष्ट को सहने की इच्छाशक्ति के साथ ये चिंता भी दूर हो जाती।

2016 की जुलाई में मेरे मित्र चंद्रकांत, जो आईटी, सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, ने सुझाव दिया, आपका एक पोर्टल बना देता हूं। मुझे उस समय तक भी पोर्टल का पी भी मालूम नहीं था। मैंने कहा, नहीं…, क्या जरूरत है। वो बोले, मेरी बात मान लो, जरूरत पड़ेगी। वो मेरे सबसे अच्छे दोस्त, सच कहूं भाई हैं… ने दो दिन बाद कहा, मैंने आपका पोर्टल बना दिया। पैसे भी नहीं चाहिए। इस पर खबरें पोस्ट करो…। इसी महीने, हालात कुछ ऐसे हुए कि मैंने अखबार की नौकरी को अलविदा कह दिया। नोटिस पीरियड के दो महीने और काम किया।

दीवाली के बाद, नवंबर 2016 से घर घर जाकर बच्चों को मैथ का ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरू किया। मेरे मित्र जसविन्दर सिंह ने बुल्लावाला गांव में अपने स्कूल का एक कमरा निशुल्क मुझे उपलब्ध कराया, जिसमें गांव के बच्चों का एक बैच पढ़ाता था। मेरी भतीजी परख ने मुझे सहयोग किया। परख इन दिनों भारतीय स्टेट बैंक में जूनियर एसोसिएट के पद पर उत्तर प्रदेश में तैनात है। वो हमेशा मुझे सहयोग करती है। मेरे बच्चों को आज भी कुछ न कुछ उपहार देती रहती है।

मुझे लगता था कि बस महीनेभर के राशन और बच्चों की फीस का इंतजाम हो जाए। गर्मियों की छुट्टियां पड़ीं और ट्यूशन भी बंद हो गई।इन हालात में पोर्टल से अभी तक कोई इनकम नहीं हुई थी। पर, एक लाभ यह था कि उसने मुझे प्रतिदिन कुछ न कुछ लिखने को प्रेरित किया। खबरें और ब्लॉग लिखने का क्रम लगातार जारी रहा, यानी पोर्टल ने मेरी पत्रकारिता को जिंदा रखा। मैं आज भी सोचता हूं, कि अगर मेरे पास अपना पोर्टल नहीं होता तो मैं अपनी पत्रकारिता को कैसे जिंदा रख पाता। मैं अपने विचारों को कहां लिखता।

फिर, मानवभारती सोसाइटी में मुझे डॉक्यूमेंटेशन का काम मिला। मैंने उनके प्रोजेक्ट के लिए एक किताब लिखी। बहुत सारे ब्रॉशर का कंटेंट लिखा। जीवन चलने लगा। आज भी मैं यह काम करता हूं।

जिंदगी में उतार चढ़ाव के दौर में न्यूज पोर्टल का बहुत सहयोग मिला। मेरा पोर्टल सरकार की टेंडर नीति के तहत विज्ञापन के लिए चयनित हुआ। साल भर में ज्यादा तो नहीं, पर कुछ खर्चे विज्ञापन की राशि से निकलने लगे। बाकि, मैंने बहुत तरह के काम जैसे, कंटेंट राइटिंग, डिजाइनिंग, वीडियो एडिटिंग, वॉयस ओवर, कम्युनिटी इंगेजमेंट, कहानी लेखन, स्टोरी टेलिंग, रेडियो जर्नलिज्म की बारीकियां, इंटरव्यू सेशन करने जैसे तमाम स्किल से नाता जोड़ा है।

कई बार नौकरी छूटी, कई बार खुद को घोर बेरोजगार महसूस किया, पर मेरे न्यूज़ पोर्टल के सरकारी विज्ञापनों से मिलने वाली राशि ने मेरा घर चलाया। वहीं, इसके लिए खबरें और लेख लिखने के लिए मैं गांवों की यात्राएं करता हूं, ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलता हूं।

Rajesh Pandey

newslive24x7.com टीम के सदस्य राजेश पांडेय, उत्तराखंड के डोईवाला, देहरादून के निवासी और 1996 से पत्रकारिता का हिस्सा। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान जैसे प्रमुख हिन्दी समाचार पत्रों में 20 वर्षों तक रिपोर्टिंग और एडिटिंग का अनुभव। बच्चों और हर आयु वर्ग के लिए 100 से अधिक कहानियां और कविताएं लिखीं। स्कूलों और संस्थाओं में बच्चों को कहानियां सुनाना और उनसे संवाद करना जुनून। रुद्रप्रयाग के ‘रेडियो केदार’ के साथ पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाईं और सामुदायिक जागरूकता के लिए काम किया। रेडियो ऋषिकेश के शुरुआती दौर में लगभग छह माह सेवाएं दीं। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश दिया। जीवन का मंत्र- बाकी जिंदगी को जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक, एलएलबी संपर्क: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड-248140 ईमेल: rajeshpandeydw@gmail.com फोन: +91 9760097344

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