Blog LiveFeaturedfoodUttarakhandVillage Tour

Uttarakhand: खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए सरसों का नमक बनाना सीखिए

खड़पतिया में घर की रसोई में बैठकर बुजुर्ग सावित्री देवी ने सरसों का नमक बनाया

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

नमक तो नमक होता है, उसका स्वाद नमकीन होता है, पर उत्तराखंड में खानपान की संस्कृति ने नमक के स्वाद में विविधता पेश की है। मैंने पहाड़ में सरसों और नमक की चटनी, जिसे सरसों का नमक कहते हैं, के बारे में सुना। यह जानने की इच्छा हो गई, यह कैसे बनाया जाता है।

रुद्रप्रयाग के खड़पतिया गांव में करीब 80 वर्षीय सावित्री देवी से सरसों का नमक बनाने का आग्रह किया। उन्होंने मेरे आग्रह को स्वीकार कर लिया। घर की रसोई में बैठकर उन्होंने सरसों का नमक बनाया और मुझे घर ले जाने के लिए दिया।

उन्होंने  एक कटोरी में लहसुन के कुछ टुकड़े, चार-पांच लाल मिर्च, दो चम्मच सामान्य नमक (आप सेंधा नमक भी इस्तेमाल कर सकते हैं) और सरसों के भूने हुए दानों को एक बर्तन में इकट्ठा कर लिया। इसके बाद इस मिश्रण को सिलबट्टा पर पीसा। करीब पांच मिनट तक सिलबट्टा पर पीसने से हल्के भूरे, काले रंग का पेस्ट तैयार हो गया, जिसे सरसों नमक या राई नमक भी कह सकते हैं।

मैंने थोड़ा सा सरसों नमक चखा। लाजवाब स्वाद के साथ लहसुन, सरसो की सुगंध को साफ महसूस किया। सावित्री देवी बताती हैं, दाल, सब्जी, सलाद में सरसों नमक मिलाकर खाएं, स्वाद अच्छा हो जाएगा। जिस प्रकार सरसों के तेल और सेंधा नमक का मिश्रण पाचन के लिए अच्छा होता है, इसी तरह इसका भी लाभ मिलता है। पर, ध्यान रहे इसको खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए कम मात्रा में इस्तेमाल करें, क्योंकि इसमें लाल मिर्च मिली होती है, जिसका अधिक सेवन सही नहीं होता।

उन्होंने बताया, भोजन में नमक की जगह इस मिश्रण को मिला सकते हैं। खाने में नमक कम है तो आप इस सरसों नमक को मिला सकते हैं।

बीज बचाओ आंदोलन के प्रेरणास्रोत विजय जड़धारी उत्तराखंड में खानपान की संस्कृति पुस्तक में नमक की विविधता पर विस्तार से जानकारी देते हैं। बताते हैं, नमक को उत्तराखंड में ‘लोण’ कहते हैं। नमक तो नमकीन ही होता है, भला उसमें विविधता की क्या बात है? ज्यादा से ज्यादा सादा समुद्री नमक, हिमालयी सेंधा नमक और काला नमक। भारत में पांच तरह के प्राकृतिक नमक पाए जाते हैं। लेकिन खानपान के शौकीन उत्तराखंड के लोगों ने एक ही सादे नमक को विविध स्वाद एवं जायके में बदल दिया है।

उन्होंने लिखा, अलग-अलग वनस्पति एवं जड़ी-बूटियों को मिश्रित कर कई तरह के नमक बनाए जाते हैं। यह नमक पाचन शक्ति ठीक रखता है, भूख बढ़ाता है और खाने में आनंद देता है।

मोरा नमक का जिक्र करते हुए जड़धारी जी बताते हैं, मोरा (मरवा-मोरवा) तुलसी के पौधे की तरह होता है। इसकी पत्तियां एवं तना जोरदार खुशबू देता है। सादे नमक के साथ इसकी खुशबूदार पत्तियों को सिल-बट्टे में पीसें तो हरा नमक तैयार हो जाता है।

यह सलाद व काखड़ी-खीरे को और अधिक जायकेदार बनाता है और यदि दो-चार हरी मिर्च मिला दें तो और भी चटखारेदार। मोरा नमक के साथ मजे से कोदा व गेहूं की रोटी खा सकते हैं। दही, मट्ठा रैला और मणझोळी को यह जोरदार स्वाद और खुशबू में बदल देता है।

उन्होंने पुस्तक में हरे धनिया के नमक, लहसुन की फलियों और लहसुन के हरे पत्तों वाले नमक, अदरख नमक, हरी मिर्च वाले नमक, भुड़की मिर्च के नमक, पुदीना नमक, जम्बू-चोरा नमक, राई नमक, जीरा नमक, अलसी नमक ( जिसमें अलसी को भूनकर नमक के साथ पीसा जाता है) का जिक्र किया है। बताते हैं, राई व जीरा के बीज को भूनकर नमक के साथ सिल-बट्टे से पीसें, यह नमक भी जोरदार होता है। उनका कहना है, ये सभी नमक इतने स्वादिष्ट होते हैं कि दाल-सब्जी के अभाव में नमक के साथ रोटी खाई जा सकती है। ऊपर से थोड़ा पानी और चाय का सेवन कर सकते हैं।

– साभारः रेडियो केदार

ई बुक के लिए इस विज्ञापन पर क्लिक करें

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker