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श्रीकेदारनाथ धामः जय बाबा केदार के जयकारों के बीच खुले मंदिर के कपाट

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी भी पूजा-अर्चना कर बाबा केदार का आशीर्वाद लिया

केदारनाथ धाम। जय बाबा केदार के जयकारों के बीच शुक्रवार सुबह शुभमुहूर्त में श्री केदारनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनों के लिए खोल दिए गए। अब छह माह तक श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन और पूजा अर्चना श्री केदारनाथ धाम में करेंगे। बाबा केदार की शीतकालीन गद्दी ऊखीमठ स्थित श्री ओंकारेश्वर मंदिर में है। गुरुवार को भगवान केदारनाथ की पंचमुखी डोली जयकारों के बीच केदारनाथ धाम पहुंची। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से पहली पूजा की गई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी पूजा-अर्चना कर बाबा केदार का आशीर्वाद लिया।

केदारनाथ रावल भीमाशंकर लिंग, वेदपाठियों, पुजारियों, हक हकूकधारियों की उपस्थिति में वैदिक परंपराओं के अनुसार मंत्रोच्चारण किया गया और 6 बजकर 25 मिनट पर कपाट खोले गए। इस दौरान डोली ने मंदिर में प्रवेश किया। सेना की बैंड की धुनों और भगवान शिव के जयकारों से केदारनाथ धाम गुंजायमान हो गया।

श्रीकेदारनाथ धाम के बारे में

उत्तराखंड के सीमान्त जनपद रुद्रप्रयाग के उत्तरी भाग में हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंग में श्री केदार एकादश ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हैं तथा हिमालय में स्थित होने से सभी ज्योतिर्लिंगों में सर्वोपरि हैं। केदारनाथ मन्दिर उत्तरी भारत में पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है, जो समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। इस क्षेत्र का ऐतिहासिक नाम “केदार खंड” है। केदारनाथ मन्दिर उत्तराखंड में चार धाम और पंच केदार का एक हिस्सा है और भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

श्रीकेदारनाथ धाम की कथा

द्वापर-युग में महाभारत युद्ध के बाद गोत्र हत्या के पाप से पांडव अत्यन्त दुखी होकर केदार क्षेत्र में भगवान शिव के दर्शन के लिए आए। भगवान शिव गोत्र-घाती पांडवों को प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए मायामय महिष का रूप धारण कर केदार में विचरण करने लगे। पांडवों को बुद्धियोग से पता चला कि भगवान शंकर ने महिष का रूप धारण कर रखा है। पांडव महिष का पीछा करने लगे। पांडवों से बचने के लिए महिष रूपी भगवान शिव भूमिगत होने लगे तो पांडवों ने दौड़कर महिष रूप का पृष्ठ भाग पकड़ लिया और विनम्र प्रार्थना आराधना करने लगे।

पांडवों की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव प्रकट हुए। पांडवों ने श्री केदारनाथ में भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना की, जिसके बाद पांडव गोत्र हत्या के पाप से मुक्त हुए। पांडवों ने ही भगवान श्री केदारनाथ जी के विशाल एवं भव्य मन्दिर का निर्माण किया, जहां भगवान शिव के पृष्ठ भाग की पूजा की जाती है। तब से भगवान शिव श्री केदारनाथ में निरन्तर वास करते हैं। भगवान शिव का श्रीमुख नेपाल में पशुपतिनाथ के रूप में प्रकट हुआ।

श्री बदरीनाथ जी की यात्रा से पहले भगवान श्री केदारनाथ जी के पुण्य दर्शनों का महात्म्य है।

सतयुग में इसी स्थान पर केदार नाम के एक राजा ने घोर तपस्या की थी। इस कारण से भी इस क्षेत्र को केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। महाभारत में इस भूमि में मन्दाकिनी, अलकनन्दा एवं सरस्वती का उल्लेख भी मिलता है, जो आज तक इस क्षेत्र में बह रही हैं। केदारनाथ में मुक्ति प्रदान करने वाले अनेक तीर्थ स्थान हैं।

केदारनाथ मंदिर के चारों तरफ बहने वाली दुग्ध गंगा, मन्दाकिनी आदि देव नदियों के जल में स्नान करने से आयु बढ़ती है। केदारनाथ के पश्चिम उत्तर दिशा में लगभग 8 किमी. की दूरी पर वासुकीताल है । यहां पर ब्रह्मकमल बहुत मात्रा में होते हैं, इसके साथ ही इस क्षेत्र में गुग्गुल, जटामांशी अतीस, ममीरा, हत्थाजड़ी आदि जड़ी बूटियां प्राकृतिक रूप से उगती हैं।

मंदिर की पूर्व दिशा में जहां पर एक गुफा है, कहा जाता है कि पांडवों ने अन्तिम यज्ञ इसी स्थान पर किया था। श्री केदारनाथ जी के कपाट बैसाख मास में अक्षय तृतीय के पश्चात खुलते हैं तथा भैयादूज के दिन बन्द हो जाते हैं। ़

शेष छह माह के लिए भगवान शिव की पूजा ऊखीमठ में होती है। ऊखीमठ में भगवान ओंकारेश्वर जी का विशाल एवं भव्य मन्दिर है। यहां पर श्री पंचकेदारों में भगवान श्री मद्महेश्वर जी की शीतकालीन छह माह की पूजा होती है।

केदारखंड तथा स्कन्दपुराण में केदारयात्रा का महत्व इस तरह वर्णित किया गया है कि श्री बदरीनाथ जी की यात्रा से पहले श्री केदारनाथ जी की यात्रा करनी चाहिए। जो भगवान श्री केदारनाथ का नाम स्मरण एवं शुभ संकल्प मन में लेता है, वह मनुष्य अति पुण्यात्मा एवं धन्य हो जाता है और अपने पितरों की अनेक पीढ़ियों का उद्धार कर भगवान की कृपा से साक्षात शिवलोक का प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार पंचबदरी तीर्थों का अपना इतिहास एवं महात्म्य है, उसी प्रकार पंच केदार तीर्थों का भी अपना विशेष महत्व है। इन स्थानों की प्राचीन काल से बहुत विशेषताएं रही हैं। जिसका वर्णन स्वयं भगवान शिव पार्वती जी से करते हैं। वर्तमान में भी इन तीर्थ स्थानों की यात्रा एवं भगवान के पुण्य दर्शन करने मात्र से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

कैसे पहुंचे

हवाई यात्रा द्वारा: देहरादून जिला स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डा (देहरादून से 35 किलोमीटर दूर) केदारनाथ के लिए निकटतम हवाई अड्डा है, जो कि केदारनाथ से 235 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

जौलीग्रांट हवाई अड्डा दैनिक उड़ानों के लिए दिल्ली एवं देश के अन्य बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। जौलीग्रांट से श्रीकेदारनाथ धाम जाने के लिए गौरीकुंड पहुंचना होगा। गौरीकुंड, जौलीग्रांट हवाई अड्डे के साथ मोटर मार्ग से जुड़ा हुआ है, जहाँ के लिए ऋषिकेश अथवा हरिद्वार से टैक्सी/बस आसानी से उपलब्ध हो जाती है। वर्तमान में तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए प्रशासन ने गुप्तकाशी, फाटा, सेरसी से श्री केदारनाथ जी के मध्य हेलिकॉप्टर सेवा संचालित की है। उक्त हेली सेवा का संचालन मौसम के अनुसार किया जाता है ।

रेल द्वारा: गौरीकुंड का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर गौरीकुंड से 243 किमी पहले स्थित है। ऋषिकेश/हरिद्वार भारत के प्रमुख गंतव्यों के साथ रेलवे नेटवर्क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। गौरीकुंड, ऋषिकेश/हरिद्वार के साथ मोटर मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, टिहरी और कई अन्य गंतव्यों से गौरीकुंड के लिए टैक्सी और बसें उपलब्ध हैं।

सड़क मार्ग द्वारा: गौरीकुंड उत्तराखंड राज्य के प्रमुख स्थलों के साथ मोटर मार्ग से जुड़ा है। आईएसबीटी कश्मीरी गेट नई दिल्ली से हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून और श्रीनगर (गढ़वाल) के लिए बसें उपलब्ध हैं। उत्तराखंड राज्य के प्रमुख स्थलों जैसे देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, टिहरी आदि से गौरीकुंड के लिए बसें और टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं।

श्रीकेदारनाथ यात्रा के दौरान साथ रखें ये फोन नंबर डायरेक्टरी

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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