
ICAR-IISWC Fodder Management VKSA 2025: खरीफ ऋतु में चारे एवं घास भूमि प्रबंधन के लिए जागरूक किया
ICAR-IISWC Fodder Management VKSA 2025: देहरादून, 11 जून, 2025ः विकसित कृषि संकल्प अभियान (VKSA)-2025 के अंतर्गत, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद– भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (ICAR-IISWC), देहरादून ने किसानों को वैज्ञानिक चारा उत्पादन, उसके सतत उपयोग तथा वन एवं सामुदायिक भूमि जैसे संसाधनों के संरक्षण के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से एक विशेष अभियान चलाया।
अभियान के मुख्य बिंदु और प्रभाव
अभियान के 14वें दिन, जो कि 11 जून 2025 को आयोजित हुआ, संस्थान की छह विशेषज्ञ टीमों ने देहरादून जनपद के 18 गांवों का भ्रमण किया। इन टीमों का नेतृत्व डॉ. अम्बरीष कुमार, डॉ. लेखचंद, डॉ. विभा सिंघल, डॉ. रमन जीत सिंह, डॉ. इंदु रावत, तथा डॉ. अनुपम ने किया। टीमों ने खरीफ फसल और चारा प्रबंधन से संबंधित चुनौतियों का आकलन किया और 820 से अधिक किसानों को स्थान-विशेष पर आधारित वैज्ञानिक सलाह प्रदान की।
ICAR-IISWC Fodder Management VKSA 2025: चारा और घासभूमि प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक सुझाव
किसानों को सुझाव दिया गया कि मानसून के दौरान खेत की मेड़ों पर हाइब्रिड नेपियर जैसी चारा घासों का रोपण करें। यह तकनीक जल-जमाव और मृदा अपरदन को रोकने में सहायक होती है, साथ ही तलछट के जमाव को बढ़ावा देती है और यदि ठीक से प्रबंधित किया जाए, तो 4–5 महीनों तक हरे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करती है।
साथ ही, वनों की परिधीय भूमि एवं सामुदायिक भूमि पर भी घास एवं चारे के पौधों का रोपण करने की सिफारिश की गई, जिससे प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र पर दबाव कम हो और पशुधन को लाभ मिल सके।
वन्यजीव हमलों और चारा संकट का समाधान
वन्यजीवों के हमलों और चारा संकट से निपटने के लिए किसानों को आम (Mangifera indica), अमरूद (Psidium guajava), और आड़ू (Prunus persica) जैसे फलदार वृक्षों तथा भीमल (Grewia optiva) और सुबबूल (Leucaena leucocephala) जैसे चारा देने वाले वृक्षों को सामूहिक भागीदारी से लगाने हेतु प्रेरित किया गया।
साथ ही, स्थानीय पंचायतों को मनरेगा (MGNREGA) के अंतर्गत मृदा एवं जल संरक्षण और वृक्षारोपण कार्यों को बढ़ावा देने के लिए जागरूक किया गया, ताकि समुदाय स्तर पर पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन की दिशा में ठोस पहल की जा सके।
जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, वहाँ बरसीम (Trifolium alexandrinum) एवं ज्वार (Sorghum bicolor) जैसी चारा फसलों की खेती करने की सलाह दी गई, जिससे चारे की कमी को दूर किया जा सके।
साथ ही, परिवर्तनशील चराई (रोटेशनल ग्रेज़िंग) को अपनाने तथा कटा हुआ चारा देकर पालतू पशुओं को खुराक देने (स्टाल फीडिंग) की सिफारिश की गई ताकि संसाधनों का स्थायी रूप से उपयोग हो सके और बर्बादी रोकी जा सके।
किसानों से यह भी अनुरोध किया गया कि वे मानसून में हरी घास की प्राप्ति की आशा में घासभूमियों को जलाना बंद करें, क्योंकि यह प्रक्रिया मृदा स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिक संतुलन को नुकसान पहुंचाती है।
चारा संरक्षण और सूचना तक पहुंच
अभियान के दौरान चारा संरक्षण की विभिन्न तकनीकों जैसे साइलेज बनाना, फसल अवशेषों का उपयोग, यूएमएमबी (यूरिया मोलासेस मिनरल ब्लॉक) का प्रयोग, तथा चारे का उचित भंडारण जैसी विधियों को भी प्रस्तुत किया गया, ताकि वर्ष भर चारे की palatability (स्वीकार्यतता) एवं उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
सरकारी योजनाओं एवं सलाहों तक त्वरित पहुंच के लिए किसानों को अपने मोबाइल नंबर एक्सटेंशन कर्मियों के साथ पंजीकृत करने हेतु प्रोत्साहित किया गया, ताकि उन्हें समय पर सूचनाएं प्राप्त हो सकें। इसके अतिरिक्त, किसानों को ई-नाम (इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार) जैसे प्लेटफॉर्म के लाभों से अवगत कराया गया, जिससे वे विशिष्ट फसलों की विपणन एवं संचार संबंधी सुविधाओं का लाभ उठा सकें।
अभियान का समन्वय और लक्ष्य
डॉ. एम. मुरुगानंदम, प्रधान वैज्ञानिक, एवं उनकी टीम इस अभियान में समस्या-विशेष परामर्श प्रदान करने तथा दैनिक अद्यतन के माध्यम से प्रचार कार्यों का दस्तावेजीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
यह अभियान 29 मई से 12 जून 2025 तक चलाया जा रहा है, जिसका समन्वय डॉ. एम. मधु (निदेशक) के मार्गदर्शन में डॉ. बांके बिहारी, डॉ. एम. मुरुगानंदम, अनिल चौहान (सीटीओ), इंजीनियर अमित चौहान (एसीटीओ), प्रवीण तोमर (एसटीओ) और मीनाक्षी पंत द्वारा किया जा रहा है।
VKSA-2025 का प्रमुख उद्देश्य है – किसानों को वैज्ञानिक ज्ञान से सशक्त बनाना, सतत एवं विविध कृषि को बढ़ावा देना, और जलवायु सहनशील फसल प्रणाली को विकसित कर एक सुरक्षित कृषि भविष्य सुनिश्चित करना।