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जब गधे ने गाना सुनाया…

एक समय की बात है, किसी जंगल के पास एक गधा रहता था। वह अक्सर उदास रहता, क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था। एक दिन उसके पास से एक सियार होकर गुजरा। सियार ने गधे को निराश देखा तो पूछा कि दोस्त, तुम इतना उदास क्यों हो। यहां अकेले बैठकर क्या कर रहे हो। गधे ने जवाब दिया- मेरा कोई दोस्त नहीं है। यहां मैं अकेला ही हूं।

सियार ने कहा, मन छोटा नहीं करते। चलो, आज से मैं तुम्हारा दोस्त हूं। अब तो सियार और गधा दोनों साथ-साथ रहने लगे। एक दूसरे से खूब बातें करते, एक साथ खाते और एक साथ घूमते। एक शाम की बात है, दोनों दोस्त नदी के किनारे बैठे थे। धीरे-धीरे अंधेरा छा रहा था। चांदनी रात थी और मौसम भी अच्छा था। गधे और सियार ने तय किया कि जंगल की सैर पर चला जाए।

नदी के किनारे-किनारे होते हुए दोनों जंगल की ओर चल दिए। जंगल से कुछ पहले ही उनको एक बागीचा दिखाई दिया। बागीचे में देखा तो वहां पेड़ों पर फल लदे हुए थे। दोनों के मुंह में पानी आ गया। दोनों वहीं रुक गए और तरह तरह के फलों का स्वाद चखा। दोनों ने भरपेट फल खाए। हालत यह हो गई कि दोनों चल नहीं पा रहे थे।

उन्होंने बागीचे में ही सुस्ताने का प्लान बनाया और वहीं लेट गए। सियार ने गधे से कहा, दोस्त आज तो वाकई काफी मजा आया, लेकिन एक चीज की कमी रह गई। गधे ने पूछा, किस बात की कमी रह गई। सियार ने कहा, अगर गीत संगीत सुनने को मिल जाए, तो इससे बड़ी क्या बात होगी। गधे ने जवाब दिया- इस समय गीत संगीत कहां से लाएंगे। वैसे भी हम गांव और शहर से बहुत दूर हैं। लेकिन मैं तुम्हारी इस इच्छा को पूरी कर सकता हूं।

सियार ने कहा, तुम रहने दो। हम संगीत सुनना चाहते हैं, शोर मचाकर स्वयं को परेशानी में नहीं डालना चाहते। कल शहर जाकर संगीत सुन लेंगे, वहां इन दिनों शादियों का दौर चल रहा है। गधे ने कहा, तुम मेरे दोस्त हो, तुम्हारी इस फरमाइश को पूरा करना मेरा कर्तव्य है। शायद तुम नहीं जानते, मैं कितना शानदार गाता हूं। हमारी आवाज को इंसान हमेशा याद रखते हैं। मेरे साथी तुम्हे गाने की प्रैक्टिस करते मिल जाएंगे।

सियार ने सोचा कि गधा नहीं मानने वाला और गाना सुनाकर ही रहेगा। सियार चुपके से उठा और पेड़ों की ओट में बैठ गया। उधर, गधे ने गाना सुनाना शुरू कर दिया। वह गा रहा था- हूं, हां, हां, हां….. हूं हां, हूं हां….। गधे का गाना सुनकर बागीचे के चौकीदार की नींद टूट गई। उसने लट्ठ उठाया और आवाज वाली दिशा की ओर चल दिया। उसने गधे को देख लिया, लेकिन गधा अपने गाने में इतना मशगूल था कि पता ही नहीं चला कि चौकीदार ने उस पर कब लाठियां बरसा दीं। गधा दौ़ड़ भी नहीं पा रहा था और वहीं पड़े पड़े लाठियां खाकर बेहोश हो गया। वहीं सियार तो वहां से भाग लिया।

दूसरे दिन शाम को सियार और गधे की मुलाकात हुई। गधा ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। सियार ने उससे पूछा, दोस्त- कल तुम बहुत अच्छा गा रहे थे। क्या तुम्हें चौकीदार ने इनाम दिया है, जो इतना इतरा कर चल रहे हो। गधे ने कहा, तुम वहां से भाग गए थे, इसलिए चुप ही रहो। सियार ने कहा, मैंने तुम्हें पहले ही सलाह दी थी कि बागीचे में गाना मत गाओ। दोस्त की अच्छी सलाह नहीं मानने वाले तुम्हारे जैसे लोगों का यही हाल होता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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