current AffairsFeaturedstudy

‘अफ्रीका में हुई बड़े आकार वाली मकड़ियों की उत्पत्ति’

भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने टेक्टोनिक प्लेटों के सरकने और गोंडवाना लैंड के टूटने के बाद पृथ्वी पर जानवरों के वितरण और उनकी विविधता को आकार देने वाले पहलुओं से जुड़ा एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने बड़े आकार वाली विषैली और रोंयेदार मकड़ियों (टैरेंटुला) के वितरण को आधार बनाया है।

जैवभौगोलिक अध्ययन द्वारा शोधकर्ता पृथ्वी पर विभिन्न जीव-जंतुओं के वितरण और विविधता को निर्धारित करने में अतीत की जलवायु और भूवैज्ञानिक घटनाओं की भूमिका का अध्ययन करते हैं। मकड़ियों की टैरेंटुला प्रजाति गोंडवाना (प्राचीन सुपरकॉन्टिनेंट जिसमें दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, भारत, मेडागास्कर, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका शामिल हैं) मूल के एक अति प्राचीन, विविध और व्यापक समूह का प्रतिनिधित्व करती है। ये सभी विशेषताएं उन्हें इस प्रकार के अध्ययन के लिए एक आदर्श मॉडल बनाती हैं।

“पहली बार जीनोमिक डेटा, जीवाश्म, भूवैज्ञानिक डेटा और गणितीय मॉडल के संयोजन का उपयोग करके, हमने यह समझने की कोशिश की कि इस समूह की उत्पत्ति कहाँ से हुई और कब, और कैसे इन मकड़ियों ने वहां से निकलकर पृथ्वी के अन्य भू-भागों में अपना ठिकाना जमा लिया। हमारा अध्ययन विविधता और जीवों के वितरण पर प्लेट विवर्तनिकी (प्लेट टेक्टोनिक्स) प्रणाली के प्रभाव को देखने-समझने की एक बेहतर दृष्टि प्रदान करता है,” शोधकर्ता डॉ. आरतित्र बिस्वास कहते हैं।

दुनिया भर में बड़ी मकड़ियों की लगभग 1060 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिस टैरेंटुला समूह पर शोधकर्ताओं ने काम किया, वह 100 मिलियन वर्ष से अधिक पुरानी हैं।

इस अध्ययन की सबसे रोचक खोज यह है कि वर्तमान में अपने यहाँ बड़ी मकड़ियों की लगभग 70% प्रजातियों को शरण देने वाला दक्षिण अमेरिका, उनकी उत्पत्ति का केंद्र नहीं है।अध्ययन इस समूह के लिए एक ‘अफ्रीकी मूल’ का समर्थन करता है।

अध्ययन से यह भी पता चला है कि टैरेंटुला की सभी प्रजातिओं का सबसे हाल का पूर्वज लगभग 103 मिलियन वर्ष पहले अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में वितरित हुआ था, जब ये दोनों भू-भाग एक-दूसरे के बहुत निकट थे। हालाँकि, कालांतर में अमेरिकी मूल वाला वंश विलुप्त हो गया और अफ्रीकी मूल वाली वंशावली अपनी विविधता बढ़ाती रही।

डॉ. बिस्वास कहते हैं- “हमारा अध्ययन गोंडवाना के टूटने के बाद विभिन्न भू-खण्डों के बीच इनके अनेक परामहासागरीय (ट्रांसओशनिक) फैलाव और वितरण की ओर इंगित करता है, हालाँकि तब तक ये भू-खण्ड टूटने के बाद भी एक-दूसरे के निकट ही थे।”

बाद में लगभग 90-70 मिलियन वर्षों के बीच, अमेरिका और भारत को स्वतंत्र रूप से अपना घर बनाने के लिए टैरेंटुला के अनेक वंशज अफ्रीका से बाहर निकलते गए। अभी तक यह अवधारणा रही है कि मकड़ियों के इस समूह के महासागरों के आरपार वितरण की घटना एक अपवाद भर है।

“सरकती हुई भारतीय प्लेट में टैरेंटुला की कम से कम दो अनूठी प्रजातियां थीं। दक्षिण पूर्व एशिया के साथ प्लेट के टकराव के बाद बड़ी मकड़ियों के ये वंशज भारत से बाहर निकल कर दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया तक पहुँच गए। इस प्रकार सरकती-टकराती महाद्वीपीय प्लेट पर सवारी करती इन मकड़ियों ने पृथ्वी के हर कोने तक पहुँचकर समूचे विश्व में अपना घर बना लिया,” डॉ. बिस्वास स्पष्ट करते हैं।

शोध-टीम ने पहले से ही उपलब्ध जीनोमिक डेटा (125 परमाणु जीन) का उपयोग टैरेंटुला की वंशावली (फाइलोजिनी) बनाने के लिए किया। उन्होंने जीवाश्म अंशांकन द्वारा टैरेंटुला वंशावली और प्लेट टेक्टोनिक पुनर्निर्माण डेटा को समयांकित कर उनकी अलग-अलग उत्पत्ति और वितरण परिदृश्यों (जैसे अफ्रीकी मूल या अमेरिकी मूल) को दर्शाते हुए चार स्पष्ट जैव-भौगोलिक मॉडल विकसित किए। शोधकर्ता यह जांचना चाहते थे कि डेटा की सटीक व्याख्या के लिए कौन सा मॉडल अधिक सक्षम है।

शोधकर्ता कहते हैं – “हमें विविधता के वितरण के आधार पर एक समूह के लिए मूल रूप से उत्पत्ति के केंद्र का अनुमान नहीं लगाना चाहिए।”

शोध-टीम में सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर और स्कूल ऑफ जूलॉजी, तेल अवीव विश्वविद्यालय, इज़राइल के सदस्य शामिल हैं। अरित्रा विश्वास के अतिरिक्त, राममूर्ति चैतन्य और के. प्रवीण कारंत टीम के अन्य सदस्य हैं। यह अध्ययन जर्नल ऑफ बायोग्राफी में प्रकाशित हुआ है।- इंडिया साइंस वायर से साभार

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button