राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
उत्तराखंड 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। वर्ष 2022 में उत्तराखंड का पांचवां विधानसभा चुनाव है। पर, देश में कई राज्य ऐसे भी हैं, जिनमें 1951 में मात्र एक बार ही विधानसभा चुनाव हुए और फिर ये अन्य बड़े राज्यों में विलय हो गए। आइए, इनके बारे में चर्चा करते हैं।
वर्ष 1951-52 में देशभर में राज्यों की विधानसभाओं के लिए आम चुनाव हुए। इनमें कई राज्य ऐसे भी शामिल थे, जो वर्तमान में अन्य बड़े राज्यों का हिस्सा हैं।
देखें सूची-
इन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, पर बाद में इनका अन्य राज्यों में विलय हो गया
राज्य | विधानसभा चुनाव वर्ष | राज्य | विधान सभा चुनाव वर्ष |
अजमेर | 1951 | मद्रास | 1967, 1962, 1957, 1951 |
भोपाल | 1951 | मैसूर | 1967, 1951 |
बम्बई | 1957 1951 | पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ | 1954, 1951 |
कूर्ग | 1951 | सौराष्ट्र | 1951 |
हैदराबाद | 1951 | त्रावणकोर कोचीन | 1954, 1951 |
मध्य भारत | 1951 | विंध्य प्रदेश | 1951 |
स्रोतः भारत चुनाव आयोग
अजमेर विधानसभा (Ajmer Vidhansabha) के लिए 1951-52 में विधानसभा चुनाव हुए थे। इसमें 24 विधानसभा क्षेत्र थे, जिनमें से छह क्षेत्र दो सदस्यीय थे। कुल मिलाकर इस राज्य की पहली एवं अंतिम विधानसभा में 30 सदस्य थे। इस चुनाव में सबसे ज्यादा 20 विधायकों के बहुमत के साथ कांग्रेस की सरकार बनीं। हरिभाऊ उपाध्याय राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे और भगीरथ चौधरी पहले विधानसभा अध्यक्ष थे। 1956 में, अजमेर को राजस्थान में विलय करके अजमेर को जिला बना दिया गया।
भोपाल विधानसभा (Bhopal Vidhansabha) के पहले आम चुनाव के पूर्व तक भोपाल राज्य केन्द्र शासन के अंतर्गत मुख्य आयुक्त द्वारा शासित होता रहा। इसे तीस सदस्यीय विधान सभा के साथ ”स” श्रेणी के राज्य का दर्जा प्रदान किया गया था। 1951-52 में विधानसभा चुनाव में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 23 थी, जिनमें सात दो सदस्यों वाली थी। कुल मिलाकर भोपाल राज्य की पहली एवं अंतिम विधानसभा में 30 सदस्य थे। इस चुनाव में कांग्रेस को 25 सीटों पर जीत हासिल हुई और बहुमत के साथ कांग्रेस की सरकार बनी। यहां चार निर्दलीय दावेदारों ने विजय दर्ज की। डॉ. शंकर दयाल शर्मा भोपाल राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे, बाद में डॉ. शर्मा देश के राष्ट्रपति भी बने। विधानसभा के अध्यक्ष सुल्तान मोहम्मद खां एवं उपाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण अग्रवाल थे।
भोपाल विधान सभा का कार्यकाल मार्च, 1952 से अक्टूबर, 1956 तक लगभग साढ़े चार साल रहा। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के बाद, भोपाल राज्य को मध्य प्रदेश नवगठित राज्य के सीहोर जिले में एकीकृत किया गया था। भोपाल शहर को मध्य प्रदेश की राजधानी घोषित किया गया था। 1972 में भोपाल को सीहोर से अलग करके नया जिला बनाया गया। यह मध्य प्रदेश की राजधानी भी है।
मध्यभारत विधानसभा (Madhya Bharat Vidhansabha)के लिए 1951-52 के आमचुनावों में 99 सदस्यों का निर्वाचन हुआ। यहां 79 निर्वाचन क्षेत्र थे, जिनमें से 20 पर दो-दो सदस्यों के लिए चुनाव हुआ। मध्यभारत विधानसभा के पहले एवं अंतिम आम चुनाव में कांग्रेस के सबसे अधिक 75 विधायक बने। कांग्रेस के मिश्रीलाल गंगवाल मध्यभारत के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। वो मालवा के गाँधी के नाम से विख्यात थे।
मध्यप्रदेश विधानसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, मध्यभारत इकाई की स्थापना ग्वालियर, इन्दौर और मालवा रियासतों को मिलाकर मई, 1948 में की गई थी। ग्वालियर राज्य के सबसे बड़े होने के कारण वहां के तत्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया को मध्यभारत का आजीवन राज प्रमुख एवं ग्वालियर के मुख्यमंत्री लीलाधर जोशी को प्रथम मुख्यमंत्री बनाया गया। इस मंत्रीमंडल ने 4 जून, 1948 को शपथ ली। तत्पश्चात् 75 सदस्यीय विधानसभा का गठन किया गया, जिनमें 40 प्रतिनिधि ग्वालियर राज्य के, 20 इन्दौर के और शेष 15 अन्य छोटी रियासतों से चुने गए। यह विधानसभा 31 अक्टूबर, 1956 तक कायम रही।
वर्ष 1952 में संपन्न आम चुनावों में मध्यभारत विधानसभा के लिए 99 स्थान रखे गए, मध्यभारत को 59 एक सदस्यीय क्षेत्र और 20 द्विसदस्यीय क्षेत्र में बांटा गया। मध्यभारत की नई विधानसभा का पहला अधिवेशन 17 मार्च, 1952 को ग्वालियर में हुआ। इस विधान सभा का कार्यकाल लगभग साढ़े-चार साल रहा। इस विधानसभा के अध्यक्ष अ.स. पटवर्धन और उपाध्यक्ष वि.वि. सर्वटे थे। 1 नवंबर 1956 को, मध्य भारत का विंध्य प्रदेश और भोपाल रियासत के साथ, मध्य प्रदेश में विलय कर दिया गया।
विंध्य विधानसभा ( Vindhya Vidhansabha) के लिए 1951-52 में हुए आम चुनाव में 48 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 60 सदस्य निर्वाचित हुए। इनमें 12 विधानसभा क्षेत्र दो-दो सदस्यों वाले थे। कांग्रेस ने 40 सीटों पर जीत हासिल की। 1 नवंबर 1956 को, विंध्य प्रदेश को राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत मध्य प्रदेश में मिला दिया गया था।
4 अप्रैल, 1948 को विन्ध्यप्रदेश की स्थापना हुई और इसे ”ब” श्रेणी के राज्य का दर्जा दिया गया। इसके राज प्रमुख मार्तंड सिंह हुए। वर्ष 1950 में यह राज्य ”ब” से ”स” श्रेणी में कर दिया गया। वर्ष 1952 के आम चुनाव में यहां की विधानसभा के लिए 60 सदस्य चुने गए, जिसके अध्यक्ष शिवानन्द थे। एक मार्च, 1952 से यह राज्य उप राज्यपाल का प्रदेश बना दिया गया। पं. शंभूनाथ शुक्ल मुख्यमंत्री बने। विन्ध्यप्रदेश विधानसभा की पहली बैठक 21 अप्रैल, 1952 को हुई। इसका कार्यकाल लगभग साढ़े चार वर्ष रहा और लगभग 170 बैठकें हुईं। श्याम सुंदर ‘श्याम’ इस विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे। … जारी