उत्तराखंड के एक खेत में रखा हल, जिसको ट्रैक्टर से जोड़कर चलाया जाता है।
अनिकेत कानडे, पुणे जिले के शिरूर ब्लॉक में कम वर्षा वाले क्षेत्र, केंदुरे गांव से ताल्लुक रखते हैं, जहां वर्षा आधारित कम कमाई वाली खेती के कार्य होते हैं। वो अब अपने गांव में ग्रामीण किसानों के लिए हाथ के औजार और बैलों से चलने वाले कृषि उपकरण बनाते हैं।
वह अपने समुदाय में सामाजिक समस्या का समाधान निकालने के लिए रचनात्मक कार्य करने वाले व्यक्ति बन गए हैं- बुनियादी ग्रामीण प्रौद्योगिकी में उनके प्रशिक्षण और उनके अपने दृढ़ संकल्प के लिए धन्यवाद।
अनिकेत ने विज्ञान आश्रम (वीए) से ग्रामीण युवाओं के लिए डिजाइन किए गए डिप्लोमा इन बेसिक रूरल टेक्नोलॉजी (डीबीआरटी) में अपना प्रशिक्षण प्राप्त किया।
अनिकेत कानडे। फोटो- पीआईबी
डीबीआरटी प्रशिक्षण वीए द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), बीज प्रभाग के सहयोग से कार्यान्वित किया जा रहा है। प्रशिक्षण के बाद, अनिकेत ने अपने पैतृक गाँव में ‘कानडे बॉडी बिल्डर एंड फैब्रिकेशन वर्क’ नामक एक ग्रामीण उद्यम शुरू किया, जहाँ वह हल, पाटा का निर्माण कर रहे हैं और बुवाई का अभ्यास आदि कर रहे हैं।
शुरू में, किसानों को उसके उत्पादों पर भरोसा नहीं था। समय के साथ, किसानों ने उनके उद्यम से विकसित उपकरणों पर भरोसा करना शुरू कर दिया।
अनिकेत पिक-अप वैन हुड के साथ बैल और ट्रैक्टर से संचालित कृषि उपकरण तैयार करते हैं। उनके उपकरण कम कीमत में बेहतर गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। चूंकि उन्होंने ‘बहु-कौशल’ दृष्टिकोण के माध्यम से प्रशिक्षित किया है, वे किसानों (ग्राहकों) की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और उत्कृष्ट सेवा प्रदान कर सकते हैं।
अनिकेत, जिनको अपने क्षेत्र में ‘किसानों की रुचि के अनुसार निर्माण’ के लिए जाना जाता है, महाराष्ट्र राज्य के पुणे और अहमदनगर जिले में 250 किलोमीटर के आसपास ग्रामीण समुदाय को सेवा प्रदान कर रहे हैं।
अनिकेत अपने गांव में 35 से 40 लाख रुपये वार्षिक टर्न-ओवर के साथ 3-4 कुशल मजदूरों को पूर्णकालिक आजीविका का स्रोत भी प्रदान कर रहे हैं। वह अपने साथी ग्रामीणों तक पहुंचने और उन्हें घर पर बेहतर सेवाएं प्रदान करने के लिए सीएनसी उपकरण, सीएडी डिजाइनिंग, पाउडर कोटिंग और अन्य उन्नत तकनीकों को अपनाना चाहते हैं।- पीआईबी
राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में 26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।
बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है।
बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।
अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।
बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं।
शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग