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ऋषिकेश के नरेंद्र रयाल ने अपने साथ हुए हादसे के बाद हास्य पर बहुत कुछ लिखा

जीवन संगिनी संगीता जी से मिला हौसला तो सारी चुनौतियां हार मान गईं

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग

“1996 के अप्रैल महीने की बात है, दिल्ली से वापस ऋषिकेश लौट रहा था। उन दिनों, दिल्ली में कंपीटिशन की तैयारी कर रहा था। रास्ते में ही था, अचानक दांत में दर्द होने लगा। दूसरे दिन सुबह अस्पताल गया और वहां दांत निकलवा दिया। उसी दिन एक शादी समारोह में भी शामिल हुआ। पर, उस रात, अचानक पैर में दर्द होने लगा। पैर सुन्न हो गया और एक आंख की नजर चली गई। सुबह डॉक्टर को दिखाया, कुछ दिन अस्पताल में भर्ती रहा, डॉक्टर ने रैफर कर दिया। कई बड़े अस्पतालों में दिखाया, जो प्रयास किए जाने थे, किए… पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। एक हफ्ता भी नहीं हुआ था कि रात को ही दूसरी आंख की भी नजर चली गई।”

बेहद सरल स्वभाव के नरेंद्र दत्त रयाल ने रेडियो ऋषिकेश के लिए साक्षात्कार के वक्त वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुनील दत्त थपलियाल को एक बातचीत में बताया, “इस हादसे के बाद कई बड़े अस्पतालों में चेकअप कराया। मैंने डॉक्टर से पूछा, आपको क्या लगता है कि हम सफल हो पाएंगे? डॉक्टर का जवाब था,  हम कोशिश कर रहे हैं, अधिक से अधिक 20 फीसदी तक रिकवर होने के चांसेज हैं।”

रयाल बताते हैं, “मैंने परिवार के लोगों से कहा, अब हमें ज्यादा प्रयास नहीं करने चाहिए। अब इस तरह ही जिंदगी को आगे बढ़ाना चाहता हूं। ”

करीब 50 साल के नरेंद्र दत्त रयाल उत्तराखंड में ऋषिकेश के पास श्यामपुर क्षेत्र में रहते हैं। टिहरी गढ़वाल के पावकी देवी गांव के मूल निवासी नरेंद्र रयाल प्रसिद्ध रचनाकार हैं, जो गद्य और पद्य दोनों में लेखन करते हैं। स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय मंचों का संचालन करने का अनुभव हासिल है। अभी तक लगभग डेढ़ सौ रचनाएं कर चुके हैं। इनमें से अधिकतर हास्य से लेकर गंभीर एवं सामाजिक मुद्दों पर हैं।

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जीवन संगिनी संगीता जी से मिला संघर्ष पर जीत का हौसला

“इस हादसे से पहले, ग्रेजुएशन करने के दौरान ही मेरी संगीता जी से सगाई हो चुकी थी। मैंने विचार किया, मेरा जीवन संघर्ष वाला हो गया है, इनको मना कर देता हूं कि यह शादी नहीं हो सकती। ये हमारे घर आए थे। मैंने इनके सामने अपनी बात रखी। पर, संगीता जो मेरी जीवन संगिनी हैं, ने स्पष्ट शब्दों में कहा, अगर शादी के बाद यह घटना होती, तो क्या आप तब भी यह बात कहते। क्या आप मेरा साथ छोड़ देते। मैं आपसे ही शादी करूंगी। इन्होंने अपने घर वापस लौटते ही हमारी शादी की तारीख तय कर दी। ” नरेंद्र रयाल बताते हैं।

 संघर्ष करके मिलीं नौकरियां छूटती चली गईं

कहते हैं, “संगीता जी ने मुझे जीने का हौसला दिया है। मैंने शादी के बाद, गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएड किया। देहरादून में उस समय एनआईवीएच, जो कि वर्तमान में The National Institute for the Empowerment of Persons with Visual Disabilities (Divyangjan)- NIEPVD से जाना जाता है, में Special Education में टीचिंग का डिप्लोमा किया। यह पहले डिप्लोमा में आता था, अब यह बीएड है।”

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“टिहरी जिले में District Rehabilitation Centre – DRC खुले थे, ये सेंट्रल गवर्न्मेंट के थे। यह सेंटर बाद में बंद हो गए। मेरा ट्रांसफर मेघालय कर दिया गया। मैं वहां नहीं गया, क्योंकि मुझे लगा था कि मैंने बीएड किया है, जो भी कार्य करूंगा, गढ़वाल में ही करूंगा। कई बार संघर्ष करते करते जॉब लगी। मैंने रमसा (Rashtriya Madhyamik Shiksha Abhiyan -RMSA) के तहत नरेंद्र नगर इंटर कॉलेज में भी ज्वाइन किया। उसमें भी कुछ व्यवधान आया। बार-बार व्यवधान पर मैंने यह कार्य भी छोड़ दिया। इसके बाद मैंने सोचा, अब जो भी किया जाएगा, वो स्वयं ही किया जाएगा।”

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“मेरे एक मित्र सोशल म्युचुअल निधि लिमिटेड में कार्य करते हैं, मैंने पहले इंटरमीडिएट करने के बाद इसमें कार्य किया था, तो मेरे पास इसकी जानकारी थी। मैंने इसमें कार्य करना शुरू कर दिया। मैं तो केवल साथ में चलता हूं, पूरा कार्य मेरी पत्नी संगीता जी ही करती हैं, बच्चों का भी सहयोग मिलता है। इस तरह जीवन की गाड़ी आगे बढ़ रही है। संगीता जी और मैं स्कूटी से सुबह दफ्तर पहुंचते हैं और दोपहर में वहां से वापस आकर घर के कामकाज निपटाते हैं। शाम को हम दोनों कलेक्शन के लिए साथ जाते हैं।”

कोई मुझे बेचारा न कहे, इसलिए हास्य पर बहुत लिखा

“इस हादसे के बाद एक बार सोचने लगा, कोई मुझे बेचारा न कहे। कई तरह के विचार मन में आते। सोचता, लोग यह भी कह सकते हैं, यह यहां क्यों आ गया। इसकी यहां क्या जरूरत थी। पर, मैंने ठान लिया कि “लोग क्या कहेंगे”, इस बात को पूरी तरह से नजरअंदाज करना है। मैंने हर कार्यक्रम में जाना शुरू कर दिया। मैं रचनाएं तो पहले से करता ही था। अब मैंने हास्य रचनाएं भी शुरू कर दीं। मैंने लोगों को हंसाने का काम शुरू कर दिया।”

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रयाल हास्य पर अपनी एक रचना सुनाने से पहले कहते हैं, “हमारी मातृशक्ति को अपनी तारीफ बहुत अच्छी लगती है। दामाद की प्रकृति होती है कि वो हर समय ससुराल से कुछ न कुछ अपेक्षाएं रखता है।”

नव वर्ष के प्रातः काल
श्रीमती खुशियों से थीं बेहाल

तब तक दरवाजे की घंटी बजी
बीवी झट से खड़ी उठीं

दरवाजा खोला,
बाहर से भभूत रमाए साधु बोला

वाह देवी, वाह देवी
कितनी सुंदर सूरत पाई हो
इस पर नववर्ष की बधाई हो

इस तारीफ से
हमारी श्रीमती जी मुस्कुराईं

झट से हमें आवाज लगाई
ए जी, सुनतो हो
बाबा जी आए हैं

हम सोचे, शायद
नववर्ष पर ससुर जी
दहेज में देने के लिए कुछ लाए हैं

झट से उठे
तन पर तहमद लपटा
चरण स्पर्श के लिए
चरणों में लेटा
ऊपर से आवाज आई
खुश रहो बेटा

चरणों से ऊपर उठो बच्चा
कह रही है तुम्हारी मस्तक रेखा
धर्म, कर्म औऱ शर्म को
तुम मानते हो अच्छा

ये लो दर्शन करो
नागदेव का
नोट चढ़ाओ
पूरे एक सौ का

बाबा ने पिटारे का
ढक्कन हटाया
अंदर से
क्रोधित नाग ने फन फैलाया
मैं घबराया
डर के कारण सर चकराया

मैं बोला,
बाबा पीछे करो, काटेगा
बाबा जी मुस्कराए
बोले बेटा,
अब कहां तक बच पाएगा

अरे,
ये बेचारे नागराज तो, मेरे पिटारे में लेटे हैं
इससे बड़े-बड़े फनदार तो, गद्दी में बैठे हैं
उनसे कैसे बच पाएगा
इस बात का क्या ख्याल
अर्द्ध निद्रा में कहां सो रहे हो
मिस्टर नरेंद्र रयाल

देर मत करो, जल्दी जाओ
भिक्षा बढ़ाकर हमें चढ़ाओ
अगले द्वारे पर भी जाना है
आज रात को
भिखारी एसोसिएशन में
हमने भी कॉकटेल पार्टी से
नव वर्ष मनाना है…

इस तरह रचनाएं करते हैं रयाल जी

नरेंद्र दत्त रयाल गीत-कविताएं और कहानियों के रचनाकार हैं। आप मंचों का संचालन भी करते हैं। आपकी भाषा और संवाद की शैली शानदार हैं। आप बहुत सहज और संवाद भाषा में संवाद करते हैं, जिससे आपकी खूब प्रशंसा होती है। वीर रस, देशभक्ति की रचनाएं जोश भरती हैं और हास्य व्यंग्य की रचनाएं चेहरे पर हंसी और मुस्कुराहट लाने का अवसर देती हैं। आपके पास रचनाओं का खजाना है, तभी तो आप पूछते हैं किस विधा में सुनाऊं, श्रृंगार पर, वीरता- देशभक्ति पर, अपने उत्तराखंड पर या फिर हास्य पर, जो भी आपको पसंद है बताओ। गढ़वाली में सुनाऊं या फिर हिन्दी बोली में, जैसा आप कहें।

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रयाल जी की लगभग डेढ़ सौ रचनाएं हैं, जिनमें से अधिकतर आपको याद हैं। बताते हैं, मैं किसी भी रचना को कागज पर लिखवाने से पहले मन ही मन में ही पूर्ण करता हूं। रचना में जो भी कमियां होती हैं, दूर करता हूं। जब मुझे लगता है कि यह रचना अब संपन्न हो गई है तो बिटिया अदिति से डायरी पर लिखवाता हूं। पहले मेरी जीवन संगिनी संगीता जी डायरी लेखन करती थीं। बेटा आदर्श भी मेरे कार्यों में सहयोग करते हैं।

रचनाकार नरेंद्र दत्त रयाल की पत्नी श्रीमती संगीता रयाल का कहना है, मैं हर पल इनके साथ हूं। मैं तो यही कहना चाहूंगी, परिवार के साथ रहना ही जिंदगी है। संघर्षों का क्या है, ये तो आने जाने हैं। हम खुश हैं और इसी तरह खुश होकर जीवन को गति देते रहेंगे।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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