टिहरी गढ़वाल का ओखलियों वाला पत्थर
गांव की बहू-बेटियां सुबह-शाम इस पत्थर पर बनी ओखलियों में अनाज कूटती-पीसती थीं
रतनमणी डोभाल। न्यूज लाइव
पहले के समय में जब अनाज को कूटने-पीसने के लिए आज जैसी मशीनें नहीं होती थीं, तब नाण्डी गांव में एक विशाल पत्थर बहुत काम आता था। इस पत्थर पर बहुत सारी ओखली, उरखाली बनी हैं। गांव की बहू-बेटियां (बेटी-ब्यारी) एक साथ सुबह-शाम इस पत्थर पर बनी ओखलियों में अनाज कूटती-पीसती थीं। यह पत्थर सामाजिक सहभागिता का केंद्र था।
टिहरी गढ़वाल जिला का ग्राम नाण्डी, ग्राम पंचायत पाब के अंतर्गत है और कीर्तिनगर ब्लाक का हिस्सा है। जिस पत्थर की हम बात कर रहे हैं, वो गांव में शिवानंद डंगवाल जी के घर के पीछे है। पहले कूटने – पीसने की आज जैसी मशीनें नहीं थीं। हर घर में जादरी (पत्थर की चक्की) के साथ पत्थर पर बनाई ओखली (उरखाली) होती थी, जिसमें झंगोरा और साटी (धान ) गिजाली से कूटकर उनका छिलका उतारा जाता था, लेकिन गांव नाण्डी में एक ही विशाल पत्थर पर बहुत सारी ओखली, उरखाली बनी हुई हैं, जो आज भी हैं, लेकिन लावारिश स्थिति में हैं।
मशीन ने इन उरखालियों की रौनक के साथ सरोकार को भी खत्म कर दिया है। गांव की बहू बेटियां (बेटी – ब्यारी ) एक साथ सुबह-शाम यहां पर जुटती थीं। झंगोरा, साटी की कुटाई के साथ एक दूसरे से दुःख सुख की बातें करती थीं। मन की बात साझा करके बोझ हल्का हो जाता था।
मैं जब छोटा था तो सरोजनी दीदी के साथ उरखाली में जाता था और देखता रहता था कि कैसे गिजाली से कुटाई हो रही है और पैर का पंजा भी काम पर लगा हुआ है। इस पत्थर और इस पर बनी ओखलियों को संरक्षित किया जाना चाहिए। पत्थर पर तरासी ओखलियों की फोटो भुला राजेंद्र सिंह पंवार ने भेजी हैं।
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक एवं राजनीतिक विषयों के गहरे जानकार हैं।