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ऑस्ट्रेलिया की छह साल की वैज्ञानिक, प्रकाशित हो चुकी है रिसर्च

छह साल की ग्रेस फुल्टन भी अन्य बच्चों की तरह खेलती हैं। कलरफुल फ्लावर्स के बीच अपने खिलौनों के साथ खेलना उनको खूब पसंद है। क्या आप जानते हैं कि वह आस्ट्रेलिया की सबसे कम आयु की वैज्ञानिक हैं, जो एक पब्लिश हुई रिसर्च टीम में शामिल हैं।

ग्रेस फुल्टन संभवतः ऑस्ट्रेलिया की सबसे युवा वैज्ञानिक हैं, जो उल्लू की दुर्लभ  प्रजातियों की रक्षा के अनुसंधान में शामिल हुईं। ग्रेस चार साल की थी, तब से अपने पिता, क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ग्राहम फुल्टन के साथ इस रिसर्च में सहयोग कर रही हैं।

यह रिसर्च उल्लू की प्रजातियों के बारे में महत्वपूर्ण डेटा इकट्ठा कर रही है। इनमें powerful, southern boobook, sooty and masked owls शामिल हैं। वैज्ञानिक फुल्टन का कहना है कि उन्हें खुशी है कि उनकी बेटी इन पक्षियों की रक्षा करने के लिए बहुत भावुक है, और वह प्रकृति के साथ रहना पसंद करती है। ग्रेस उल्लुओं को स्नेह करती हैं।

बताते हैं कि वह केवल चार साल की थी, जब उसने मेरे साथ वर्षावन में रात बिताना शुरू कर दिया था, और अब वह उनकी सभी आवाजों को पहचानती है। तब से वह देशभर में यात्रा कर रही है कि इन पक्षियों के निवास स्थान में गिरावट के रूप में क्या और कहाँ से पक्षी आ रहे हैं और क्या हो रहा है। वह एक प्रकाशित peer-reviewed scientific journal में एक शोध लेख की प्रमुख लेखक भी हैं।

ग्रेस का सबसे हालिया शोध दो साइट्स पर हुआ, एक उपनगरीय ब्रिस्बेन में अपने घर के करीब, और दूसरा शहर के बाहर माउंट ग्लोरियस के वर्षा वनों में।

उनके पिता बताते हैं कि ग्रेस और मैं जंगली उल्लू और अन्य निशाचर पक्षियों की तुलना करने के लिए उत्सुक थे, जो माउंट ग्लोरियस जैसे पत्तेदार, जंगली स्थानों की तुलना में घने शहरी क्षेत्रों में करते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ब्रिस्बेन उपनगर में उल्लुओं की कमी थी। माउंट ग्लोरियस के वर्षावन की तुलना में यह निवास स्थान उल्लुओं के लिए बहुत खराब है।

उन्होंने कहा कि सांप वास्तव में उनके दिल के करीब हैं,  वह उन्हें बुरा नहीं मानती, और निश्चित रूप से उन्हें छूने से डरती नहीं है। और अभी वह पूरी तरह से ब्रिस्बेन में तितलियों के प्रवास से रोमांचित है। हम भी जौंक के साथ खेलना पसंद करते हैं, क्योंकि वह सोचती है कि वे प्यारे हैं! जब से वह दो साल की थी, उसने कभी ‘क्यों’ पूछना बंद नहीं किया और मैं प्राकृतिक दुनिया के बारे में उसकी जिज्ञासा को बढ़ाने में मदद करने के लिए रोमांचित हूं। यह रिसर्च  Pacific Conservation Biology (DOI: 10.1071/PC19042) में पब्लिश हो चुकी है।

यह लेख यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड की वेबसाइट पर प्रकाशित What a hoot: the adventures of Australia’s youngest scientist का हिन्दी अनुवाद है। 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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