agriculturecurrent AffairsFeaturedfoodWomen

जीवन का वृक्ष अर्गन आर्थिक तरक्की के लिए अहम

अर्गन के तेल को विश्व के अनेक देशों में सौन्दर्य प्रसाधनों व खाना पकाने में उपयोग किया जाता

मोरक्को में अर्गन के पेड़ को ‘जीवन का वृक्ष’ भी कहा जाता है, जो लाखों लोगों के आर्थिक व सांस्कृतिक कल्याण के लिए बेहद अहम है। अर्गन के तेल को विश्व के अनेक देशों में सौन्दर्य प्रसाधनों व खाना पकाने के उपयोग में लाया जाता है, और इसका निर्यात अरबों डॉलर के आँकड़े को पार कर चुका है।

संयुक्त राष्ट्र समाचार में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, मोरोक्को में यूएन जनसंख्या कोष (UNFPA), अर्गन तेल के कामकाज से जुड़ी महिलाओं को सहकारी समितियों में एकजुट करके, न केवल उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद कर रहा है, बल्कि वनों के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभा रहा है।

मोरक्को के अगाडिर में अर्गन के तेल की उपयोगकर्ता महिला सहकारी समितियों के संघ की निदेशक, जमीला इदबोरस ने कहा, “महिलाएँ अर्गन के पेड़ों के जंगलों को संरक्षित करने में बेहद अहम भूमिका निभाती हैं।”

अर्गन वृक्ष, लाखों लोगों के आर्थिक व सांस्कृतिक कल्याण के लिए बहुत मायने रखता है। भोजन पकाने और सौंदर्य प्रसाधनों के लिए दुनिया भर में इस्तेमाल किए जाने वाले अर्गन तेल का निर्यात, आज बहु-अरब डॉलर का उद्योग बन चुका है।

मोरक्को में स्थानीय समुदाय इस तेल का उपयोग बीमारियों के उपचार में और वृक्ष से मिलने वाले फलों, पत्तियों और गूदे का इस्तेमाल मवेशियों को खिलाने में करते हैं।

फ़ादमा हादी का भाग्य भी अगाडिर में उनके घर के पास स्थित अर्गन जंगलों से जुड़ा हुआ है। वह अर्गन के पेड़ों की खेती करके और उससे प्राप्त होने वाले फलों से तेल निकालकर अपना जीवन-यापन करती हैं।

उनके साथ अनेक अन्य महिलाएँ, पीढ़ियों से टिकाऊ कृषि करती आई हैं, और वैश्विक जलवायु संकट के प्रभाव से यह परम्पराएँ अधिक महत्वपूर्ण हो गई हैं।

अर्गन के वृक्ष कठोर होते हैं और उनमें सूखे व भीषण गर्मी से निपटने की अपार क्षमता होती है, लेकिन तापमान वृद्धि के साथ अब मोरक्को के जंगल भी सिकुड़ने लगे हैं।

बदतर होते हालात से वनों की देखभाल करने वाली महिलाओं व लड़कियों का जीवन और भविष्य ख़तरे में पड़ने की आशंका है। यूएन जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर नतालिया कानेम ने कहा, “जब जलवायु आपदा आती है, तो महिलाओं व लड़कियों पर अधिक प्रभाव पड़ता है।”

यूएन एजेंसी के शोध के अनुसार, जलवायु संकट लिंग-आधारित हिंसा का जोखिम बढ़ाता है। साथ ही, आवश्यक यौन व प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच चुनौतीपूर्ण होने, उनमें अवरोध खड़े होने और मातृ स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका बढ़ जाती है।

इस बीच, मोरक्को के अर्गन वनों के सामने उत्पन्न जलवायु-सम्बन्धी जोखिमों से, महिलाओं और लड़कियों को वनों से मिलने वाली आय भी ख़तरे में पड़ गई है, जिससे कई लोगों के ग़रीबी के गर्त में फँसने, बच्चों के स्कूल छोड़ने या हिंसा एवं बाल विवाह जैसी हानिकारक प्रथाओं की चपेट में आने की आशंका बढ़ गई है।

सहकारी संघ की शुरुआत

यूएन एजेंसी ने इससे निपटने के लिए, ग़ैर-सरकारी संगठनों के एक गठबंधन की शुरुआत का समर्थन किया, जिससे महिलाओं व लड़कियों को जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सके।

फ़ादमा की सहकारी समिति भी इसी संघ का हिस्सा है, और अगादिर में अर्गन तेल की पैदावार के लिए गठबंधन में शामिल है. ऐसी ही कईं अन्य स्थानीय सहकारी समितियाँ, पेड़ों को उगाने व उनसे तेल निकालने के लिए, हज़ारों महिलाओं को रोज़गार देती हैं।

मोरक्को के लिए यूएन एजेंसी के सहायक प्रतिनिधि, अब्देल-इलाह याकूबद ने कहा, “यह पहल पूरी तरह से उन महिलाओं और लड़कियों के लिए है जिनके पीछे छूट जाने का ख़तरा है, ख़ासतौर पर ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाली वो लड़कियाँ, जो पढ़ाई या कामकाज नहीं कर रही हैं।”

“इसमें, सामाजिक सुरक्षा से लेकर रोज़गार व जलवायु परिवर्तन जैसे उन बड़े मुद्दों पर विशेष बल दिया गया है जो उन्हें प्रभावित करते हैं. इसका उद्देश्य उनके जीवन में कौशल एवं अवसरों में सुधार लाना है।”

महिला सहकारी समिति में शामिल होने से पहले, फ़ादमा हादी के पास नियमित आमदनी का कोई साधन नहीं था, लेकिन संघ में शामिल होने के बाद, उन्हें अर्गन के जंगलों में काम के लिए मासिक भुगतान मिलना शुरू हो गया है।

उन्होंने बताया, “इस धन से हमें घरेलू ख़र्चें बाँटने व अपने बच्चों को स्कूल भेजने में मदद मिली है। “यह सहकारी समिति इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण है कि किस तरह प्राकृतिक दुनिया का संरक्षण, भावी पीढ़ियों को सफल होने में मदद करता है।

अब्देल-इलाह याकूबद कहते हैं, “कुल मिलाकर ये कार्रवाई, महिलाओं और लड़कियों के समुदायों और जंगलों के उनके समृद्ध विरासत का संरक्षण व सहन सक्षमता बढ़ाने में सहायक रही है।”

यह लेख पहले यहां प्रकाशित हुआ है।

ई बुक के लिए इस विज्ञापन पर क्लिक करें

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker