धाराप्रवाह गढ़वाली बोलने वाले शिक्षक सरदार रविन्दर सिंह सैनी ने क्यों करा लिया दुर्गम में ट्रांसफर
राजकीय इंटर कॉलेज बड़ासी के छात्र-छात्राओं ने शिक्षक सैनी के सम्मान में सिंह इज किंग के नारे लगाए
डोईवाला। न्यूज लाइव
राजकीय इंटर कॉलेज बड़ासी के छात्र-छात्राएं अपने शिक्षक रविंदर सिंह सैनी के सम्मान में सिंह इज किंग के नारे लगा रहे थे। सरदार रविंदर सिंह सैनी को कौन नहीं जानता। सैनी धारा प्रवाह गढ़वाली बोलने के लिए लोकप्रिय हैं।
उन्होंने राजकीय इंटर कालेज बड़ासी के सुगम विद्यालय से अपना स्थानांतरण दुर्गम के राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सरौना में करा लिया। इस स्थानांतरण से उनको वित्तीय नुकसान भी होंगे, पर व्यायाम शिक्षक सैनी का कहना है, इस दुर्गम विद्यालय के बच्चों की प्रतियोगिताओं के लिए तैयारी कराने को उन्होंने यह फैसला किया है।
गुरुवार को विद्यालय परिसर में उनका विदाई समारोह था, जिसमें स्कूली बच्चों के साथ ग्रामीण भी पहुंचे। सभी को इस बात का दुख था कि सरदार रविंद्र सिंह सैनी उनके गांव के स्कूल से जा रहे हैं।
बच्चों को गढ़वाली बोली के लिए प्रोत्साहित करने वाले शिक्षक सैनी को स्थानीय निवासी और साथी शिक्षक काफी पसंद करते हैं।
गढ़वाली बोली और संस्कृति को आत्मसात करने वाले सैनी ने विदाई समारोह में बैंड बाजों की बजाय मसकबीन, ढोल दमौ की धुन को प्राथमिकता दी।
विदाई समारोह में अपने संबोधन में सरदार रविंदर सिंह गढ़वाली में कहते हैं, “बच्चों अपनी मातृभाषा और बोली से दूर मत होना। अपनी संस्कृति, बोली, खानपान को सम्मान देना, यह आपके बुजुर्गों द्वारा सहेजी गई विरासत है, जो हमें जीना सिखाती है।”
उन्होंने छात्र हित में अपने कार्यों को साझा किया। साथ ही, शिक्षा विभाग के अधिकारियों, स्थानीय जनप्रतिनिधियों से मिले सहयोग की जानकारी दी।
सहायक अध्यापक रविंदर सिंह सैनी ने शिक्षण के रूप में करिअर के 18 साल राजकीय इंटर कॉलेज बड़ासी को दिए, जबकि इससे पहले 11 वर्ष दुर्गम विद्यालयों में बिताए हैं। चमोली जिले में तैनाती के दौरान ही उन्होंने गढ़वाली बोलना सीखा। वो कहते हैं “मेरी पोस्टिंग चमोली जिले के लंगसी गांव स्थित विद्यालय में बतौर व्यायाम शिक्षक हुई। मैं हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और गुरुमुखी तो जानता था, पर गढ़वाली बोली नहीं आती थी। लंगसी गांव में बच्चे गढ़वाली में बात करते थे। मुझे उनको पढ़ाने में दिक्कत आने लगी। मुझे लगा कि ठेठ हिन्दी में बच्चे मेरी बात को अच्छी तरह से नहीं समझ पा रहे हैं। मैंने गढ़वाली बोली सीखने का निर्णय लिया। और, मैंने बच्चों से ही गढ़वाली बोलना शुरू किया। अब धाराप्रवाह गढ़वाली में बात कर सकता हूं।”
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और विद्यालय के प्रधानाचार्य परमानंद सकलानी ने बताया, उनको इस विद्यालय में तीन माह ही हुए हैं। सरदार रविंदर सिंह सैनी छात्रों के हितों के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहे हैं। व्यायाम के सहायक अध्यापक के तौर पर खेलकूद गतिविधियों के लिए बच्चों को तैयारी कराना, उनको खेल गतिविधियों के लिए विद्यालय से बाहर ले जाना, विभिन्न स्पर्धाओं में विजेता- उपविजेता का खिताब जीतना विद्यालय के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है। बच्चों एवं अभिभावकों की दिक्कतों को समझने, समाधान निकालने के लिए रविंदर सिंह हमेशा आगे रहे हैं। हमारे विद्यालय को उनकी जरूरत है, पर विभाग के आदेशों का पालन करना हमारी ड्यूटी है।
डुग डुगी के साथ वार्ता में, रविन्दर सिंह सैनी कहते हैं, “उत्तराखंड में जिस भी विद्यालय के बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं से सरकारी सेवाओं में नहीं गए, उनको तैयारियां कराने के लिए मैं तैयार हूं। देहरादून के दुर्गम विद्यालय सरौना के बारे में मुझे जानकारी मिली और मैंने वहां से म्युचुअल ट्रांसफर के लिए आवेदन कर लिया। मुझे वहां तबादले से आर्थिक नुकसान होगा।”
” यह स्कूल, बड़ासी के विद्यालय की तुलना में लगभग दोगुनी दूरी पर है। रास्ता भी हमेशा अच्छा नहीं रहता। रास्ता खराब होगा या कहीं उबड़खाबड़ मिला तो गाड़ी में फावड़ा गेंती रखता हूं। मैं खुद ही रास्ता चलने लायक बना दूंगा।”
“परिवहन पर लगभग तीन गुना खर्चा होगा, पर मैं तैयार हूं। वेतन भी कम हो जाएगा, पर मुझे इसकी चिंता नहीं है। हम बच्चों को खुश होकर तरक्की करना, पढ़ाई करना देखना चाहते हैं।”
वो कहते हैं, “बड़ासी के विद्यालय में आने की वजह भी यही थी कि मैं उस विद्यालय में काम करना चाहता था, जहां बच्चों को गढ़वाली में बातें करने के लिए प्रेरित कर सकूं। इन 18 साल में बड़ासी ही नहीं आसपास के गांवों के लगभग सभी परिवारों को जानता हूं, वो मुझे जानते हैं। मुझे हर बच्चे के माता-पिता, दादा-दादी का नाम याद है। यह पता है कि किस बच्चे का घर कहां है। ”
छात्रा माही मनवाल बताती हैं, “हमें इस बात को दुख है कि सर (रविन्दर सिंह सैनी) हमारे विद्यालय से जा रहे हैं। हम जब भी कभी खेलकूद प्रतियोगिता के लिए किसी दूसरे विद्यालय में गए, सर हमें अपनी गाड़ी से लेकर गए। हमारा बहुत ध्यान रखते हैं। हमारे भोजन का पूरा ध्यान सर ने रखा। सर हर बच्चे का ख्याल रखते हैं। बच्चे सर के सामने अपनी बात बिना डरे हुए कहते थे। हम तो सर के बारे में एक ही बात कहेंगे, हमारे सर वास्तव में सिंह इज किंग जिंदाबाद हैं।
विदाई समारोह में स्थानीय निवासियों के साथ ही ग्राम प्रधान नितिन रावत, कांग्रेस के परवादून जिलाध्यक्ष मोहित उनियाल, राहुल मनवाल सहित बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।