पृथ्वी पर इंसानों का इस समय जितना दबदबा कभी नहीं रहा, यूएनडीपी ने चेताया
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की एक ताज़ा और प्रमुख रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर प्राकृतिक दुनिया और पर्यावरण को नुक़सान में कमी लानी है तो, तमाम देशों को अपने विकास रास्तों पर फिर से ग़ौर करना होगा, नहीं तो पूरी मानवता के लिये प्रगति व्यवधान पैदा हो जाने का जोखिम है।
यूएनडीपी ने मंगलवार को इस वर्ष की मानव विकास रिपोर्ट – The Next Frontier: Human Development and the Anthropocene जारी की।
The Anthropocene is ushering in new sets of complex, interconnected and universal development challenges like COVID-19 and #ClimateChange. How do these impact #humandevelopment today and in the future? Read @HDRUNDP's new report #HDR2020: https://t.co/3zjy4nzfYw pic.twitter.com/NTGnk7r8Nr
— Achim Steiner (@ASteiner) December 15, 2020
संयुक्त राष्ट्र समाचार के अनुसार, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोनावायरस फिलहाल एक ताज़ा संकट है जिसका सामना पूरी दुनिया कर रही है, और हर जगह के समाजों को “प्रकृति पर अपनी पकड़ ढीली करनी होगी”, नहीं तो इसी तरह के और भी ख़तरों का जोखिम है।
यूएनडीपी की मानव विकास रिपोर्ट के इस 30वें वर्षगाँठ-संस्करण में मानव प्रगति पर एक ऐसा नया प्रायोगिक सूचकाँक शामिल किया गया है, जो देशों के कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन और भौतिक पदार्थों के पदचिह्नों पर भी नज़र रखता है।
एंथोरोपोसीन भूवैज्ञानिक काल की एक अधिकारिक इकाई है, जो उस दौर को परिभाषित करती है जिसमें इंसान पृथ्वी ग्रह के भविष्य को आकार देने वाली प्रबल शक्ति हैं।
मानव विकास सूचकाँक के ज़रिये किसी देश के स्वास्थ्य, शिक्षा और रहन-सहन के मानकों को मापा जाता है। इस वार्षिक सूचकाँक में दो और तत्व शामिल किए गए हैं – देश की कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन और उसके भौतिक पदचिह्न।
नए सूचकाँक में दिखाया गया है कि मानवों और पृथ्वी ग्रह का बेहतर वजूद व रहन-सहन, अगर मानवता की प्रगति को परिभाषित करने के लिए अहम है, तो वैश्विक विकास का परिदृश्य किस तरह बदल जाएगा।
यूएनडीपी का कहना है कि मानव विकास में प्रगति के लिए प्रकृति के साथ मिलकर काम करना होगा, नाकि उसके ख़िलाफ़, जबकि इस प्रक्रिया में सामाजिक नियम व मान्यताएँ, और सरकारी एवं वित्तीय उत्प्रेरकों में भी बदलाव लाने होंगे।
रिपोर्ट में, देशों के भीतर, और देशों के बीच, मौजूद असमानताओं के प्रभाव, आदिवासी लोगों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल नहीं किए जाने का अभाव और भेदभाव की तरफ़ भी ध्यान खींचा गया है, जिन कारणों ने प्रभावित समुदायों को और भी ज़्यादा पर्यावरण जोखिमों के लिये उजागर कर दिया है।
रिपोर्ट कहती है कि अगर पृथ्वी पर पड़ रहे दबावों को, इस तरह से हल्का करना है कि इस नए दौर में तमाम आबादी ख़ुश रह सके तो उसके लिये सत्ता और अवसरों के क्षेत्र में गहराई से बैठे उन असन्तुलनों को ख़त्म करना होगा, जो बदलाव के रास्ते में बाधा बनकर खड़े हैं।
यूएनडीपी के मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय के अग्रणी रिपोर्ट विशेषज्ञ पैड्रो कोन्सीकाओ ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि, “इंसानों या पेड़ों के बीच” में से किसी को पसन्द करने या नहीं करने का मामला नहीं है।
“ये आज इस वास्तविकता को स्वीकार करने का मामला है कि असमान, कार्बन-आधारित विकास से सृजित मानव प्रगति अपनी सीमा पर पहुँच चुकी है। असमानता को दूर करके, नवाचार से फ़ायदा उठाकर और प्रकृति के साथ सुलह करके, मानव विकास, समाजों और प्रकृति को एक साथ सहारा व समर्थन देने के रास्ते पर परिवर्तनकारी क़दम उठाया जा सकता है।”