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आंध्र प्रदेश में मिला शुतुरमुर्ग का 41,000 साल पुराना घोंसला

शोधकर्ताओं ने पाया कि एक ऐसा घोंसला था, जिसमें 30 से 40 अंडे रखे जा सकते थे

न्यूज लाइव डेस्क

आंध्र प्रदेश के प्रकाशम में पुरातत्वविदों को शुतुरमुर्ग का एक घोंसला (ostrich nest ) मिला है, जो 41,000 साल पुराना है। यह दुनिया में अपनी तरह का सबसे पुराना घोंसला है। इस साइट ने प्रागैतिहासिक भारत के मेगाफ़ौना (Megafauna of prehistoric India) के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी, जिसमें उनके विलुप्त होने के संभावित संकेत भी शामिल हैं। वडोदरा स्थित एमएस यूनिवर्सिटी के पुरातत्वविदों ने पाया कि एक ऐसा घोंसला था, जिसमें 30 से 40 अंडे रखे जा सकते थे, लेकिन केवल 9 से 11 अंडे के छिलके ही मिले।

मेगाफ़ौना क्या है?
मेगाफ़ौना आमतौर पर बड़े जानवर होते हैं, जिनका वजन 50 किलोग्राम से अधिक होता है। यह शब्द बड़े जानवरों के समूह को संदर्भित करता है, जैसे कि शुतुरमुर्ग जैसे मेगा सर्वाहारी, जो नौ फीट लंबे हो सकते हैं और उनका वजन 90 से 140 किलोग्राम के बीच हो सकता है। यह समूह हमें उनके खाने की आदतों और पारिस्थितिक भूमिकाओं के साथ-साथ उनके जीवन चक्र और उनके विलुप्त होने के समय के बारे में अधिक जानने में मदद करता है।

शुतुरमुर्ग की खोज का महत्व
यह खोज बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इस बात का सबूत देती है कि शुतुरमुर्ग 41,000 साल पहले दक्षिणी भारत में रहते थे। यह खोज, अन्य खोजों के साथ, भारतीय उपमहाद्वीप में मेगाफ़ौना के विलुप्त होने के बारे में बातचीत को बढ़ाती है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे अन्य स्थानों पर खोजे गए जीवाश्मों और कलाकृतियों से ऐसी जानकारी मिली थी। इससे इस बारे में चर्चा हुई कि महाद्वीपीय बहाव और मानवीय गतिविधियों के कारण प्रजातियाँ दुनिया भर में कैसे घूमती हैं।

 

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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