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यमराज और अभिमानी मूर्तिकार

किसी गांव में एक मशहूर मूर्तिकार था। उनकी मूर्तियां असली दिखती थीं। एक दिन उन्होंने एक सपना देखा कि पंद्रह दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो जाएगा। यमदूत आकर उनको ले जाएंगे। मूर्तिकार ने स्वयं को मृत्यु से बचाने के लिए हू ब हू अपने जैसी नौ मूर्तियां तैयार कीं ।

15 वें दिन उन्होंने महसूस कर लिया कि यमदूत उनको लेने आ रहे हैं। वह अपनी बनाई नौ मूर्तियों के बीच खड़े हो गए। यमदूत पहचान ही नहीं पाए कि इनमें से असली कौन है। उन्होंने सभी को अच्छी तरह देख लिया, लेकिन मूर्तिकार को नहीं पहचान पाए। उन्होंने सोचा कि अगर हम मूर्तिकार को नहीं ले गए तो यमराज से बहुत डांट पड़ेगी। वह बार-बार प्रयास करते रहे, लेकिन कोई ऐसा संकेत नहीं मिला कि वो मूर्तिकार को तलाश सके।

थक हारकर यमदूत ने यमराज के सामने जाकर पूरा मामला सुनाया। यमराज को गुस्सा आ गया और उन्होंने तय किया कि वह स्वयं मूर्तिकार को लेने जाएंगे। यमराज तत्काल पृथ्वीलोक पर पहुंचे और मूर्तिकार को तलाशने लगे। मूर्तिकार पहले से भी ज्यादा सतर्क हो गए और बिना हिले डुले ठीक मूर्तियों की तरह खड़े थे। यमराज भी पता नहीं लगा पा रहे थे कि इनमें से असली कौन है।

यमराज ने एक तरकीब निकाली। उन्होंने कहा, हे मूर्तिकार, तुम्हारी बनाई सभी मूर्तियां एक से बढ़कर एक हैं, लेकिन तुमने एक गलती छोड़ दीं, जिसकी वजह से इनका सौंदर्य कम हो गया। मूर्तिकार को स्वयं की बनाई मूर्तियों पर गर्व था, उन्होंने सोचा, मैं और गलती, ऐसा हो ही नहीं सकता। वह यह भूल गए कि मूर्ति बनकर खड़े हैं, उन्होंने तुरंत जवाब दिया, कहां गलती रह गई। बताइए। मेरी किसी भी कला में कोई गलती नहीं निकाल सकता।

जैसे ही मूर्तिकार बोले, यमराज ने उनको पकड़ लिया। यमराज ने कहा- मूर्तिकार, गलती आपकी मूर्तियों में नहीं है, आप में है। अाप को अपनी कला पर अभिमान है, इसलिए किसी की बात सुनने को तैयार नहीं हो। अपने इसी अभिमान की वजह से आप पकड़े गए हो। अब आपको मेरे साथ यमलोक जाना पड़ेगा।

उन्होंने मूर्तियों के बीच अपना स्थान लिया। दानव उसे पहचान नहीं पाया और एक के बजाय दस गोरेलाल देखने के लिए आश्चर्यचकित था। वह वापस मृत्यु के भगवान के पास पहुंचे और इस मामले को बताया। मृत्यु का देवता नाराज हो गया और खुद गोरेलाल लेने के लिए तैयार हो गया। गोरेलाल सतर्क था और गतिहीन खड़ा था। मृत्यु का देवता शुरू में परेशान हो गया। लेकिन उसने एक पल के लिए सोचा। उन्होंने कहा, “गोरेलाल, ये मूर्तियां परिपूर्ण थीं लेकिन एक गलती के लिए।” गोरेलाल अपने काम में कम से कम दोषपूर्ण पीड़ित नहीं था। वह बाहर आया और पूछा, “गलती कहां है?” मृत्यु के देवता ने उसे पकड़ा और कहा , “यहाँ”। मूर्तियां निर्दोष थीं लेकिन गोरलाल को उनके गौरव के कारण पकड़ा गया था।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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