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बुद्धिमान उल्लू

किसी जमाने में आबादी के बीच एक पेड़ पर एक बूढ़ा उल्लू रहता था। उल्लू अपने आसपास होने वाली घटनाओं को सुनता और देखता रहता। वह कम ही बोलता था, लेकिन सुनता अधिक था। उसका मानना था कि सुनना अधिक चाहिए, बोला उतना ही जाए, जितनी जरूरत हो। जरूर पढ़ें- भूखा शेर और तीन बकरियां

आबादी में हो रही घटनाओं का आकलन करते हुए उसका अनुभव बढ़ रहा था। एक दिन उसने देखा कि एक बालक किसी बूढे़ व्यक्ति की भारी टोकरी को लेकर चल रहा था। वह बालक बूढ़े की मदद कर रहा था। दूसरे दिन उसने देखा कि एक बालिका अपनी मां पर गुस्सा करते हुए चिल्ला रही थी। उल्लू ने सोचा कि इंसानों में भी तरह-तरह के लोग हैं। जरूर पढ़ें- कौए से क्यो छिपता है उल्लू

वह अक्सर लोगों को किस्से कहानियां सुनाते हुए और सुनते हुए देखता। उसने एक महिला को यह कहते हुए सुना कि जंगल से आया हाथी तारबाड़ को तोड़कर आबादी में घुस गया। वहीं एक आदमी कह रहा था कि उसने कभी गलती नहीं की। उल्लू ने लोगों के बारे में सुनकर और देखकर यह अंदाजा लगाया कि इनमें से कुछ अच्छे हैं और कुछ अच्छे नहीं हैं।  वह लोगों के अनुभवों को सुनकर बुद्धिमान हो रहा था। जबकि वह कम ही बोलता था। कुल मिलाकर यही कहना है कि घटनाओं को आब्जर्व करें। कम बोले और ज्यादा सुने। यही सब बातें बुद्धिमान और ज्ञानवान बनाती हैं। (अनुवादित)

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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