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सरकार से गुहार पर नहीं मिली राहत तो किसानों ने कर दिया यह काम

किसानों ने फसलों को हाथियों के झुंड से बचाने के लिए पैसा इकट्ठा किया और सोलर फेंसिंग लाइन बिछा दी

डोईवाला। न्यूज लाइव

जब सरकार और उसके सिस्टम में सुनवाई न हो तो खुद पहल करनी पड़ती है। सिमलास ग्रांट के किसानों ने भी कुछ ऐसा ही किया है। किसानों ने अपनी फसलों को हाथियों के झुंड से बचाने के लिए पैसा इकट्ठा किया और सोलर फेंसिंग लाइन बिछा दी, जबकि यह मांग वो लगातार राजाजी टाइगर रिजर्व के अफसरों और शासन, प्रशासन, जनप्रतिनिधियों से करते रहे हैं। किसानों का कहना है, हम कई साल से अपनी फसलों पर हाथियों के हमले का सामना कर रहे हैं।

सिमलास के किसान सुरेंद्र सिंह बोरा बताते हैं, “वो खेत के किनारे ऊंचा मचान लगाकर सर्दियों की रात में फसल की निगरानी करने को मजबूर हैं। सामने राजाजी टाइगर रिजर्व से आने वाले हाथियों और अन्य जानवरों के झुंड सुसवा नदी पार करके खेतों में घुस जाते हैं। नदी के किनारे बनी सुरक्षा दीवार को हाथियों ने जगह-जगह तोड़ दिया। विभाग ने बड़े गड्ढे खोदे थे, पर हाथियों पर इन उपायों का कोई फर्क नहीं पड़ता।”

देहरादून जिला के डोईवाला ब्लाक स्थित सिमलास ग्रांट में किसानों ने चंदा इकट्ठा करके लगाई सोलर फेंसिंग। फोटो- राजेश पांडेय

वो बताते हैं, “हमने अधिकारियों से कई बार गुहार लगाई कि खेतों की सुरक्षा के इंतजाम किए जाएं, पर कुछ नहीं हुआ। इस पर कुछ किसानों ने फैसला किया कि खुद के दम पर सोलर फेंसिंग लगाई जाए। प्रति बीघा एक हजार रुपये इकट्ठा किया गया। यह लगभग सौ बीघा खेती को बचाने की कोशिश है। लगभग सात सौ मीटर सोलर फेंसिंग से थोड़ा राहत मिलने की उम्मीद है।”

सुरेंद्र बताते हैं, “सोलर फेंसिंग को तीन दिन ही हुए हैं। मैं सुबह मचान पर ही था। हाथियों के झुंड ने टूटी हुई दीवार वाले रास्ते से खेतों की ओर आने की कोशिश की, पर वो तुरंत वापस हो गए। इससे लगता है कि यह उपाय काम आएगा।”

सुरेंद्र के अनुसार, “पहली बात तो कोई गेहूं काटने के लिए तैयार नहीं होगा। हाथियों ने गेहूं की बालियां खा डाली हैं, खेत को तहस नहस किया है। लगभग एक चौथाई उत्पादन ही मिलने की उम्मीद है। एक बीघा में चार कुंतल की जगह एक कुंतल गेहूं ही मिल पाएगा। वो भी कटाई, मड़ाई में निकल जाएगा। हमें क्या मिलेगा।”

नारायण सिंह बोरा, “जो करीब 70 वर्ष के हैं, बताते हैं इस बार गेहूं लगभग खत्म कर दिया। खेत में पड़े गोबर की ओर इशारा करते हुए बताते हैं, यह हाथियों से ही खेतों के तबाह होने की पुष्टि करता है। बताते हैं, पहले हाथी कुछ दिन ही आते थे, लेकिन अब हाथियों के झुंड रोजाना खेतों में पहुंच रहे हैं। हम टीन, ड्रम बजाकर, पटाखे चलाकर हाथियों के भगा देते थे, पर अब ये तो रोज ही खेतों में आ रहे हैं, हमारे पास सोलर फेंसिंग लगाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। अब देखते हैं, इसका कितना फायदा होता है। लगभग सौ बीघा खेती को कवर किया है।”

नारायण सिंह कहते हैं, “जंगल में हाथियों के भोजन के पर्याप्त इंतजाम नहीं है, इसलिए वो गांवों में डेरा डाल रहे हैं। हाथी ही नहीं, बल्कि सूअर, हिरन, नील गाय तक यहां आ रहे हैं।”

लगभग 63 वर्षीय किसान बहादुर सिंह बोरा का कहना है, “हमने जनप्रतिनिधियों के सामने अपनी बात रखी, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। किसान अपनी जमीन बेचने को मजबूर इसलिए हो रहा है, क्योंकि उसकी खेती की सुरक्षा का कोई इंतजाम सरकारी सिस्टम नहीं कर पा रहा है। किसान से जितना बन पड़ता है, वो करते हैं, पर सरकारी सिस्टम की भी तो कोई जिम्मेदारी है। हाथियों, सूअरों को रोकना तो विभाग का ही काम है। हमें अपने खेतों को सुरक्षा देनी थी, इसलिए सोलर फेंसिंग का इंतजाम अपने पैसों से करना पड़ा।”

प्रगतिशील किसान उमेद बोरा बताते हैं, “जब बात मुआवजे की होगी तो वन विभाग व राजस्व विभाग की टीम संयुक्त रूप से करेगी। मुआवजे के लिए तमाम फोटोग्राफ करने होते हैं। इतना मुआवजा नहीं मिलेगा, जितना पैसा फोटोग्राफ कराने में खर्च हो जाता है। फिलहाल किसान नुकसान में है। अपने पास से सोलर फेंसिंग करना किसानों की मजबूरी है, जबकि यह काम संबंधित विभाग का है।”

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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