राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
बड़ासी को कभी ड्रामे का गांव कहा जाता था, अब यहां ड्रामा नहीं होता। यहां लगभग 20 वर्ष से बंद श्री रामलीला का मंचन भी तीन वर्ष पहले शुरू हुआ, जिसको आगे बढ़ाने के लिए सगे भाइयों उपदेश भारती और गणेश भारती के अथक प्रयास जारी हैं। यहां अभिनय की पाठशाला चलती है, जिसमें उपदेश भारती सीता की सखियों से लेकर विभिन्न भूमिकाओं का प्रशिक्षण देते हैं। गणेश और उनके बड़े भाई उपदेश करीब 26 साल से श्रीराम और श्री लक्ष्मण के किरदार निभा रहे हैं, इसलिए इन सगे भाइयों को राम-लक्ष्मण की जोड़ी के नाम से जाना जाता है।
“मैंने पिता से श्रीराम लीला में अभिनय की बारीकियों को समझा। दस साल की आयु में सखियों के किरदार से रंगमंच की दुनिया में आया था। 20 साल से श्री लक्ष्मण की भूमिका निभा रहा हूं, पर मुझे हमेशा इस बात का दुख रहेगा कि पिता अमीचंद भारती से ड्रामे के बहुत सारे तौर तरीकों और बोलने की शैली को नहीं जान पाया। अब पिता इस दुनिया में नहीं रहे, पर समाज में सकारात्मकता को आगे बढ़ाने के लिए रामलीला मंचन की उनकी पहल को जीवनभर जारी रखने की पहल करता रहूंगा,” करीब 38 साल के गणेश यह कहते हुए भावुक हो जाते हैं। उनकी नम आंखें बता रही हैं कि पिता के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उनके प्रयास किस स्तर तक जारी हैं।
उपदेश और गणेश के पिता स्वर्गीय अमीचंद भारती ने जीवनभर रंगमंच पर विभिन्न किरदारों को जीवंत किया। वैसे तो, उन्होंने बहुत सारे थियेटर किए, पर उनको श्रीराम लीला मंचन में रावण के किरदार के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। 12 वर्ष की उम्र से लेकर शुरू हुआ उनका थियेटर का स्वर्णिम सफर 95 वर्ष की आयु तक पूरे उत्साह के साथ जारी रहा। करीब एक वर्ष पूर्व उन्होंने दुनिया से विदा ली है।
उपदेश और गणेश भारती अभिनय के साथ गीतों की रचना और गायन में भी महारत हासिल हैं। वो हमें, श्री रामलीला के संवाद को गाकर सुनाते हैं। उनको अपने संवाद कंठस्थ हैं। हाल ही में उपदेश भारती ने बेटी बचाओ पर एक गीत लिखा है, जो एक स्टूडियो में रिकार्ड किया गया है, इस गीत ” बेटी की कदर करा, बेटी घर की शान…” सुनाया। हारमोनियम पर उनका साथ छोटे भाई गणेश ने दिया। उपदेश को सुनने के लिए यूट्यूब चैनल संगीत भारती को विजिट किया जा सकता है।
गणेश भारती ने हमें हारमोनियम पर ” ना काटा, ना काटा, ना काटा, हे भइयों यूं डालियों ना काटा…”। इस गीत के माध्यम से पर्यावरण के प्रति संवदेनशील होने का संदेश देते हैं। गणेश भारती के गीतों को यूट्यूब चैनल्स पर सुना जा सकता है।
बड़ासी में 20 साल से बंद श्रीराम लीला को फिर से शुरू किया
उपदेश कहते हैं, श्रीराम लीला मंचन हर वर्ष एक बड़े टास्क को पूरा करने जैसा रहता है। वर्ष 2019 में जब हमने बड़ासी गांव में लगभग 20 साल पहले बंद रामलीला को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया, तो बहुत सारी चुनौतियां सामने थी। नौ-दस दिन के आयोजन के लिए स्थान का चयन, ड्रेस, पर्दे, साउंड सिस्टम, शामियाना, लाइट की व्यवस्था और उससे भी बड़ी समस्या, अभिनय के लिए पात्र कहां से आएंगे, उनको कैसे तैयार किया जाएगा। पर, गांव के लोगों का बहुत सहयोग मिला। पिता जी और श्री रामलीला मंचन से जुड़े वरिष्ठ लोगों और स्थानीय निवासियों का भरपूर सहयोग मिला। धीरे-धीरे सबकुछ जुट गया और हम सभी ने बंद हो चुकी एक परंपरा को फिर से पटरी पर लाने की शानदारी पहल कर दी।
तीन घंटे की लीला में राम जन्म से लेकर राज्याभिषेक तक
उपदेश भारती बताते हैं, वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण आयोजनों पर प्रतिबंध था। हमें प्रशासन से केवल एक दिन की परमिशन मिली। सभी के सहयोग से नौ दिन चलने वाली श्री रामलीला एक दिन में, वो भी मात्र तीन घंटे में संपूर्ण की गई। भगवान श्रीराम के जन्म से लेकर वनवास, सीता हरण, लंका दहन, रावण वध और फिर अयोध्या में भगवान के राज्याभिषेक तक का मंचन किया। यह एक रिकार्ड रहा। इसके लिए बहुत मेहनत की गई, पर हमने अपनी परंपरा को आगे बढ़ाया।
केवट हैं सबसे पसंदीदा पात्र
भगवान श्री राम लक्ष्मण और माता सीता जब गंगा नदी के तट पर पहुंचते हैं तो वहां पर केवट से उनका बहुत सुंदर संवाद होता है। केवट उनको पहचान नहीं पाते हैं। उन्हें लगता है यह कोई आम नागरिक हैं। वह भगवान श्री रामचंद्र जी से परिचय मांगते हैं। बाद में, केवट को पता चलता है कि यह तो अवध के राम हैं। श्री राम ने केवट से नाव माँगी, पर वह लाते नहीं। वह कहने लगे- मैंने तुम्हारा भेद जान लिया है। तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है, जिसके छूते ही पत्थर की शिला सुंदरी स्त्री हो गई। काठ पत्थर से कठोर नहीं होता। मेरी नाव भी स्त्री हो जाएगी। मेरी कमाने-खाने की राह ही मारी जाएगी। मैं तो इसी नाव से परिवार का पालन-पोषण करता हूँ। हे प्रभु! यदि आप अवश्य ही पार जाना चाहते हो तो मुझे पहले अपने चरणकमल धोने के लिए कह दो।
इस सुंदर संवाद, केवट के मन में भगवान राम के लिए श्रद्धा को व्यक्त करता है। वो भगवान से कहते हैं, मैं चरण कमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा, मैं आपसे कुछ उतराई नहीं चाहता। नदी पार करने के बाद भगवान राम केवट को उतराई देना चाहते हैं, तो केवट उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाते हैं। कहते हैं, प्रभु मैंने आपको अपनी नैया से नदी पार कराई। मैं लोगों को नाव में बैठाकर नदी पार कराता हूं, आप जनमानस के जीवन की नैया को पार लगाते हो। इस तरह आप भी खेवनहार हो और मैं भी खेवनहार हूं। मैंने इस युग में आपको नदी पार कराई है, आपसे प्रार्थना है कि जब मैं इस जीवन को पूरा करके आपके समक्ष पहुंचूं तो आप मुझे भवसागर पार करा देना। उपदेश इस संवाद को संगीतमय सुनाते हैं- भगवान राम कहते हैं- “ले केवट अपनी उतराई…, ले केवट अपनी उतराई…।”
राम वनवास और वन में सीता को ढूंढने का प्रसंग करता है भावुक
हमने उपदेश और गणेश को बताया, कि श्री रामलीला मंचन में एक दर्शक के रूप में मुझे श्री राम वनवास और भगवान राम और लक्ष्मण द्वारा माता सीता को वन में ढूंढने का प्रसंग, सबसे ज्यादा भावुक करता है। क्या वो इन प्रसंगों पर कुछ कहना चाहेंगे।
श्री राम के वनवास पर उपदेश बताते हैं, यह सबसे भावुक पल होता है और साथ ही, यह भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम और राजा दशरथ के आदर्श पुत्र का सर्वोच्च स्थान प्रदान करता है। जब भगवान को यह बताया जाता है कि कैकयी ने उनके लिए 14 वर्ष का वनवास और भरत के लिए राज्याभिषेक का वचन पूरा कराया है, तो श्रीराम कहते हैं, बस इतनी सी बात। पिता के वचनों को पूरा करने के लिए भगवान राम वन जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। उनके साथ माता सीता और छोटे भाई लक्ष्मण भी वन की ओर चले जाते हैं। यह दृश्य भावुक करता है।
उपदेश इस प्रसंग को सुनाते हुए कहते हैं, राजा दशरथ ने कैकेयी को भगवान राम को वनवास और भरत को राज देने का वचन पूरा किया और मूर्छित हो गए। राजा दशरथ के मूर्छित होने पर भगवान राम को बुलाया जाता है। भगवान राम कैकेयी से पूछते हैं, माता… पिताजी कैसे हैं, उनके बारे में बताइए। श्रीराम लीला मंचन में संगीतमय संवाद को उपदेश इस तरह प्रस्तुत करते हैं- “पिताजी कैसे व्याकुल हैं, हमें माता बता दीजे…”। उपदेश इस प्रसंग में खो जाते हैं… उनकी आंखें नम हो जाती हैं। यह इसलिए भी, क्योंकि उन्होंने मंच पर भगवान श्रीराम का अभिनय किया है। वो बहुत भावुक हो जाते हैं।
वास्तव में, उपदेश दिल से जीते हैं रंगमंच पर अपनी भूमिका को। कहते हैं, मंच पर आप जिनका भी किरदार निभाते हैं, उनके बारे में बहुत पढ़ना होता है। मैं 20 साल से भगवान श्रीराम की भूमिका को मंच पर निमित्त मात्र जीने की कोशिश करता हूं। निमित्त मात्र इसलिए, क्योंकि प्रभु के श्रीचरणों में हम सभी निमित्त मात्र ही हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन को आदर्श मानता हूं, उनके किसी एक आदर्श पर जीवन को ढाल लूं, तो यह अपने जीवन की सबसे बड़ी सौगात समझूंगा।
एक और प्रसंग का उल्लेख करते हुए गणेश भारती कहते हैं, जब भगवान श्री राम और लक्ष्मण वनों में माता सीता को ढूंढते हैं। यह मार्मिक पल, सभी को भावुक करते हैं। हमने देखा है, दर्शकों की आंखें नम हो जाती हैं। इस प्रसंग को गीत ” विधना तेरे भेद किसी की समझ न आते हैं…” को हारमोनियम पर प्रस्तुत करते हुए गणेश भावुक हो जाते हैं।
अभिनय की पाठशाला लगाते हैं गणेश भारती
गणेश भारती गांव में बच्चों की अभिनय की पाठशाला लगाते हैं। उनका कहना है, हमारे प्रयास है कि यह कला भावी पीढ़ियों के माध्यम से आगे बढ़ती रहे। बच्चों को श्रीराम लीला मंचन के लिए प्रशिक्षण देते हैं। सबसे पहले उनको माता सीता की सखियों की भूमिका के लिए प्रशिक्षित करते हैं। हमने भी दस वर्ष की आयु से पिता जी सखियों का अभिनय करना सीखा। जैसे-जैसे अभिनय का अनुभव होता जाता है, आप अन्य किरदारों की भूमिका में आते जाते हैं।
उपदेश बताते हैं, पिताजी का हम पर सबसे बड़ा उपकार यह है कि, उन्होंने हमें श्रीराम लीला मंचन से जोड़ा। इस उपकार के लिए हमें कई जन्म मिल जाएं, तब भी, हम उनका आभार नहीं चुका सकते। बस, यही प्रयास है कि उनका उद्देश्य, जो श्रीराम लीला रंगमंच की कला को आगे बढ़ाने का है, उसको पूरा करें। यही उनको हमारी तरफ से श्रद्धांजलि होगी।
किरदारों को निभाते-निभाते जीवन में बड़ा बदलाव महसूस किया
“हम दोनों भाइयों को श्रीराम लीला में श्रीराम- लक्ष्मण की भूमिका निभाते हुए वर्षों हो गए। हम अपने जीवन में बहुत बड़ा बदलाव पाते हैं। हमारा प्रयास रहता है कि अपने जीवन में कोई ऐसा कर्म नहीं हो, जिससे लोगों में हमारे प्रति स्थापित मनोभावों में कोई कमी आ जाए। भगवान श्रीराम के जीवन आदर्शों पर चलना किसी भी इंसान के लिए नामुमिकन है। हमारी कोशिश रहती है कि समाज में हमारे आचरण पर कोई अंगुली न उठाए। यही प्रयास, हमें अपने व्यवहार और चारित्रिक मूल्यों को बेहतर से बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करते हैं,” उपदेश कहते हैं।
आप श्री लक्ष्मण का किरदार निभाते हैं तो क्या परिवर्तन पाते हैं, के सवाल पर गणेश भारती कहते हैं, अक्सर देखता हूं कि जैसे लक्ष्मण का किरदार है, जिनको छोटी छोटी बातों पर क्रोध जल्दी आता था। वो श्रीराम को वनवास के वचन पर अपने पिता पर रोष व्यक्त करते हैं, पर उनका अपने बड़े भाई श्रीराम के लिए आदरभाव, स्नेह, सम्मान और उनके लिए प्राणों की बाजी लगाने की आतुरता भी प्रदर्शित होती है। वर्षों से लक्ष्मण जी का किरदार निभा रहा हूं, मैंने उनको काफी पढ़ा है। जब हम किसी किरदार के बारे पढ़ेंगे नहीं, उनके बारे जानेंगे नहीं, उनके व्यवहार, गुण दोषों का अध्ययन नहीं करेंगे, तब तक उनको मंच पर जीवंत नहीं कर पाएंगे। हम लक्ष्मण जी को जीने की जरा सी भी पहल कर लें, तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा, क्योंकि वो बहुत महान चरित्र हैं। “जल्दी भावुक हो जाना, जीवन में यह बात हो जाती है,” गणेश मुस्कुराते हुए कहते हैं।
मंच पर भूल जाता था कि मैं अमीचंद भारती हूं
जब आप अपने पिताजी के साथ बातें करते थे, क्या चर्चा होती थी, पर गणेश बताते हैं, उनके पिता रंगमंच पर अभिनय के बारे में बताते थे। वो कहते थे, जब वो रावण का किरदार निभाते होते थे, तब भूल जाते थे कि मैं अमीचंद भारती हूं। वो सोचता था कि मैं वही रावण हूं। रंगमंच पर उनको भी उस समय भीतर से बहुत क्रोध आता था, जब सूपर्णखा बताती थी कि उसकी किसी ने नाक काट दी। रावण भले ही दुनिया की नजरों में विलेन है, पर किरदार को रंगमंच पर जीवंत करना बड़ी बात होती है।
प्रशिक्षण चाहिए तो हमसे मिलिए
लोक कलाकार उपदेश भारती और गणेश भारती गीत लिखते भी हैं और गाते भी हैं। हारमोनियम गणेश भारती के साथी की तरह है। उनका यूट्यूब चैनल संगीत भारती है। कई एलबम में उनको देखा जा सकता है। रंगमंच का प्रशिक्षण भी देते हैं। उपदेश भारती कहते हैं, श्रीराम लीला मंचन में अभिनय के लिए कोई युवा अभिनय, गायन शैली का प्रशिक्षण पाना चाहते हैं तो उनसे संपर्क कर सकते हैं। वो युवा पीढ़ी से कहते हैं, अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का सम्मान करें। हमें भगवान श्री राम की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए।