CreativityFeatured

समय के रोते-खोते पल-पलक

उमेश राय

आजकल अश्रु से तरबतर है धरती,
आसमान भी बेबस है, रूदन का ताप-परिताप लिए …
हर संवेदित हृदय, अथाह वेदना से है भरा,
बेचैनियां,आक्रोश बढ़ रहे हर कोश से.

स्तब्ध हूँ बेतरह मैं,
जैसे किसी भयावह तूफां से पहले स्तब्धता छा जाती है वातावरण में.
बलात्कार व हिंसा…. मासूम बालिकाओं का…
यह कैसा सड़ा-गला समाज है!

जो अपनी कृति का पोषक व संरक्षक नहीं बन सकता,
वह विकृत-चित्त है नित्य है मृत.
मृत लोग, भयावह रोग हैं…
मनुष्यता के तन-वितन पर.
बंद करो, बाँटने का कर्म-उपक्रम,
बेटियों को जाति-मज़हब से न जोड़ो…

बच्चों को सच्चे सहज रहने दो,
मत करो उन्हें संकीर्ण,अपाहिज मन-मनस (अ) मानुष!
उपभोक्ता हो केवल तुम,
शिकारी – विकारी आँखों से हिंस्र,
कर्म में दरिंदगी,सोच में बेहद गंदगी..

बल है पीड़ा-निवारण के लिए,
उत्पीड़न के लिए नहीं कायर-कापुरूष!
उन बलत्कृत बच्चियों की आँख-आह, चीत्कार भी नहीं देखी-सुनी गई,
मानवता तार-तार लाचार हो गयी कितनी!
अौर खंडित पहचान लिए घूम रहे विखंडित लोग.

मेरे ईश्वर ! तुम जरूर सो गए हो,
गहरी नींद… उम्मीद के परे..
क्यों नहीं साँस बंद हो जाती,
बलात्कार के विचार आने पर ही..
क्यों नहीं जन्मते ही मर जाते,
ऐसे बहशी दानव…

नारी! तुम विद्रोही बनो,
ऐसे ईश्वर के,राजाओं के राजा के प्रति, प्रतिक्षण..
कि ऐसी संतान नहीं जन्मनी मुझे,
जिसका नारी ही अरि बने.

स्त्रियों! अब एक इकाई बन लड़ो तुम,
सूखे समय से, रूखे ईश्वर से, खूँखे समाज से…
नम हृदय और क्रांति – जय का बीज बोते हुए,
अटल रहना सदा,
जब तक धरती, तुम्हारे रहने लायक न बन जाए.

पशु भी बलात्कार नहीं करता,
योजनाबद्ध हिंसक नहीं बनता वह,
तुम कितना गिर गए हो पीड़क!
पराभव की महत्तम सीमा पर पहुँचकर.

बेटियाँ! क्या गोश्त हैं, माँस का टुकड़ा,
नारी क्या देह हैं, भोग का मुखड़ा…
सोचो, टटोलो खुद को कि..
कहीं कई चेहरे लिए खुदकुशी तो नहीं कर रहे तुम.

अपने आस-पास,अपना प्रवास निहारो,
कि तुम सृजन के पुष्प को मसलने
के सूक्ष्म जिम्मेदार बन रहे क्या?

बच्चों के लिए सुरक्षित वातवरण न दे सके,
तो लानत है मनुज पर, मानवी सभ्यता पर.
तुम्हारी हर गति-प्रगति शून्य है,ऋणात्मक है मनुष्य!
यदि नारी को न दे सके, उसकी धरती, उसका आकाश.
चलो, सृजन का जन-युद्ध लड़ें,
कर्म से लेकर संस्कार तक,
आखिरी साँस तक अनथक..

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button