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एक आइडिया ने बदला जीवन, पहले स्कूटी पर रखकर खाना बेचा अब दुकान पर लगती है भीड़

दुकान पर महीने में एक दिन फ्री खिला रहीं राखी, यूट्यूबर अनुराग डोभाल ने ई रिक्शा गिफ्ट किया,

राजेश पांडेय। डोईवाला

“मैं राजमा चावल से भरे बरतन स्कूटी पर रखकर हिमालयन अस्पताल के गेट से कुछ दूरी पर सड़क किनारे खड़ी थी। मुझे नहीं पता था कि यह नया व्यवसाय चल पाएगा या नहीं, पर मैंने शुरुआत की थी। मन में एक डर था, अजीब सा लग रहा था। मैं चुपचाप खड़ी थी, ईश्वर के भरोसे। मन में केवल यह बात थी, देखा जाएगा, जो होगा।”

“फल की ठेली लगाने वाले युवक ने पूछा, आप क्या बेच रहे हो। मैंने कहा, राजमा चावल हैं। उसने एक प्लेट देने को कहा। कुछ देर बाद वो फिर आया। उसने एक और प्लेट की डिमांड करते हुए कहा, बहुत अच्छा खाना बनाया है आपने। उस पहले दिन सारा राजमा चावल बिक गया। मैं बहुत खुश थी, नये व्यवसाय का पहला दिन शानदार था। इससे मेरा उत्साह बढ़ा और घर जाकर दूसरे दिन की तैयारी करने लगी।”

48 वर्षीय राखी देवी डेढ़ साल पहले के उस दिन की बात को साझा कर रही थीं, जब उन्होंने पहली बार ऋषिकेश रोड पर हिमालयन अस्पताल के मेन गेट से लगभग 50 मीटर दूर स्कूटी पर रखकर खाना बेचा था।

बताती हैं, “दूसरे दिन का अनुभव अच्छा नहीं था, पांच या छह लोग ही आए थे। पर, हमने सोचा कि शुरुआत में कोई भी काम इसी गति से चलता है। हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। कुछ दिन और देखते हैं, कैसा रिस्पांस मिलता है। हो सकता है, यह काम चल जाए।”

“हम सही सोच रहे थे, हमारे बनाए राजमा चावल, कढ़ी चावल लोगों को पसंद आने लगे, हमारी स्कूटी वाली दुकान फेमस होती गई। जितना भी खाना हम घर से बनाकर ले गए, दो से तीन घंटे में बिकने लगा।”

29 फरवरी यानी महीने के अंतिम दिवस पर राखी और उनकी बिटिया महिमा ई रिक्शा पर रखे राजमा चावल और कढ़ी चावल परोस रहे थे। पर, उन्होंने ऑनलाइन पेमेंट के QR Code पर एक स्लिप लगाई थी, जिस पर लिखा था प्रत्येक 30 तारीख यानी महीने के अंतिम दिन एक छोटा सा भंडारा लगाया जाता है। वो इस दिन खाने के बदले पैसे नहीं लेते। इस दिन खाना फ्री होता है।

हमने देखा, एक व्यक्ति ने खाना खाने के बाद उनको भुगतान करना चाहा, तो राखी ने बताया, आज वो भंडारा लगाते हैं, खाना फ्री में है।

ऐसे हुई फ्री में खाना खिलाने की शुरुआत

राखी ने हर महीने भंडारा लगाने की शुरुआत बिटिया महिमा की सलाह पर 14 अगस्त 2023 से की, क्योंकि 15 अगस्त को उनका जन्मदिन रहता है। 15 अगस्त को छुट्टी रहती है, इसलिए 14 अगस्त को उन्होंने फ्री में राजमा चावल, कढ़ी चावल और रायता परोसा। इसके बाद सितम्बर में उन्होंने यूट्यूबर अनुराग डोभाल के जन्मदिन 18 सितम्बर पर भंडारा लगाया। अनुराग उनकी दुकान पर आए थे।

बताती हैं, “इसके बाद से हर महीने की अंतिम तिथि को छोटा सा भंडारा लगता है। हम सोच रहे हैं कि इस व्यवस्था को महीने में दो दिन किया जाए।”

दो से ढाई घंटे में बिक जाता है सारा खाना

राखी बताती हैं, “रविवार को छोड़कर प्रतिदिन दोपहर 12 बजे से दुकान लगाते हैं। दो से ढाई बजे तक सारा खाना बिक जाता है। मैं सबसे अंत में खाना खाती हूं। प्रतिदिन लगभग 100 प्लेट खाना परोसा जाता है। हमारा उद्देश्य लंच के समय भोजन उपलब्ध कराना होता है, इसलिए 12 बजे तक दुकान लगा देते हैं। करीब आधा घंटा ईरिक्शा से सामान निकालने, टेंट लगाने, कुर्सियां और राउंड टेबल लगाने में लग जाता है।”

“हमारे पास भोजन में राजमा, कढ़ी, छोले चावल, स्पेशल रायता, चटनी होते हैं। लोग कहते हैं, दीदी आप बहुत अच्छा खाना बनाते हो। घर जैसा खाना, जो पर्याप्त मिलता है और स्वाद से भरपूर होता है।”

स्कूटी पर शुरू की थी खाने की दुकान

रानीपोखरी जाते हुए जाखन नदी पुल के पास नागाघेर निवासी राखी बताती हैं, “उनके दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी। इससे पहले लालतप्पड़ में एक कंपनी में जॉब कर रही थीं। स्वास्थ्य खराब होने पर ऑपरेशन हुआ, जॉब छोड़नी पड़ी। मैंने यह काम शुरू करने से लगभग एक साल पहले जॉब छोड़ दी थी। घर पर ही रोजमर्रा के सामान की दुकान खोली, पर दुकान चलीं नहीं। मैं अक्सर सोचती, क्या काम किया जाए, जिससे परिवार की गाड़ी आगे बढ़े।”

“बिटिया यहां जौलीग्रांट में ही एक मेडिकल शॉप में जॉब करती थी। बिटिया ने सुझाव दिया, आप खाना बहुत स्वादिष्ट बनाती हो। क्यों न जौलीग्रांट में राजमा चावल, कढ़ी चावल की शॉप खोली जाए।”

“बिटिया के सुझाव पर हमने बरतन रखने का एक फ्रेम बनाकर स्कूटी पर फिट करा दिया। घर पर ही खाना बनाया और स्कूटी से ले जाकर जौलीग्रांट में बेचना शुरू किया। बहुत दिक्कतें हुईं, सोचने लगी, लोग क्या कहेंगे। पर हमने अब यह बात सोचना बंद कर दिया है। क्या कुछ भी कहने वाले लोग, किसी के घर परिवार की जरूरतों को पूरा करने आते हैं। हम अच्छा काम कर रहे हैं, भोजन परोसते हैं।”

“एक बार ब्रेकर पर स्कूटी उछलने से सारा खाना सड़क पर गिर गया। सर्दियों में खाना बहुत कम बिका। बारिश में टेंट लगाकर खाना बेचा। पर, हमने चुनौतियों से हार नहीं मानी।”

दिल्ली से टिहरी जाने वाले एक शख्स हर माह उनकी दुकान पर भोजन के लिए आते हैं। हरिद्वार में या कहीं ओर खाना नहीं खाते। वो नेपाली फार्म से सीधा ऋषिकेश होते हुए भी टिहरी जा सकते हैं, पर उनकी दुकान पर आने के लिए वाया भानियावाला होकर टिहरी जाते हैं। वो कहते हैं, आप स्वादिष्ट खाना बनाती हो, इसलिए यहां से होकर जाता हूं,” राखी बताती हैं।

यूट्यूबर अनुराग डोभाल ने दिलाया ई रिक्शा

राखी ने बताया, “खाना रखकर लाने में स्कूटी का बैलेंस बिगड़ता था। वहीं, खाने की डिमांड बढ़ रही थी, स्कूटी पर ज्यादा खाना नहीं ला पा रही थी। मैंने ई रिक्शा खरीदने के लिए जानकारी जुटाई तो पता चला कि 40 हजार रुपये डाउन पेमेंट देनी पड़ेगी। इसके बाद, हर महीने लगभग पांच हजार रुपये के आसपास किस्त देनी होगी। मेरे पास 40 हजार रुपये नहीं थे।”

“एक दिन यूट्यूबर अनुराग डोभाल का वीडियो देखा, जिसमें उन्होंने मदद देने की बात कही थी। मैं उनके घर गई। उनको बताया, मुझे 40 हजार रुपये की मदद चाहिए। उन्होंने घर पर आकर देखा कि आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। वास्तव में मुझे (राखी को ) मदद की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, मैं आपको ई रिक्शा खरीदकर देता हूं। आपसे कोई पैसा नहीं लिया जाएगा। यह हमारी तरफ से आपको गिफ्ट है। मुझे बहुत अच्छा लगा, उन्होंने मेरी मदद की। अनुराग बहुत अच्छे हैं, वो हमेशा जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं।”

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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