
शनि एक ऐसा ग्रह है जो जापक को सफलता के शीर्ष पर पहुंचाने के साथ ही अगर खराब हो तो जमीन पर ला देता है।
यदि यह ग्रह अधिक खराब हो तो भौतिक सुखों का भी अनुभव नहीं होने देता है। यहां जातक कर्मवादी होता है। संघर्ष और सफलता साथ-साथ चलती है। ऐसे जातक को अंदरुनी चोट लगती है, जैसे यह ऊंचाई से गिरेगा या सड़क पर दुर्घटना होगी तो हड्डी टूटने और खून बहने जैसी स्थिति नहीं बनाएगा। लेकिन अंदरुनी चोट लगेगी, जो कई दिनों तक जातक को दर्द देगी, जैसे मोच आ जाना, पैर में पट्टा लगना, मसल्स क्रेक हो जाना आदि। शनि प्रधान व्यक्ति शून्य से शुरुआत करता है और अत्यधिक संघर्ष के बाद उस तक पहुंचता है। इस व्यक्ति के पास सबकुछ हो सकता है, जैसे संपूर्ण परिवार, माता-पिता, पत्नी, बेटे-बेटी जो लोगों को दिखाई देते हैं, पर वास्तव में वह अंदर से बहुत ही अकेला होता है, क्योंकि शनि छल-कपटी रिश्तों को सामने ला-लाकर उसे आत्मज्ञानी एवं एकांतवासी बनाते हुए संसार का ज्ञान कराते हुए सन्मार्ग पर ईश्वर की ओर ले जाता है।
शनि प्रधान व्यक्ति को देखा गया है कि वह संन्यासियों की तरह जीवन जीना प्रारंभ कर देता है या तो वह विवाह पश्चात परिवार छोड़ देता है या विवाहपूर्व ही संन्यासी हो जाता है और कुछ जातक घर में ही सबके बीच अकेले हो जाते हैं। शनि न्यायकारक ग्रह है अत न्याय के लिए लड़ने वाले लोगों में शनि जागा हुआ होता है।
ऐसे जातक का भाग्य उदय 35 वर्ष की उम्र में होता है। ऐसे जातक को बचपन में पैर में चोट लगना, लचककर चलना या कोई कमी की संभावना रहती है। शनि यदि कुंडली में शुभ है तो जातक 35 वर्ष से दौलत-शोहरत प्राप्त करता है और यह सब कुछ उसकी मेहनत से ही प्राप्त होता है। ऐसे जातक का कोई गॉडफादर नहीं होता है। ये या तो बोलते नहीं और बोलते हैं तो कटु सत्य बोलते हैं। फिर चाहे किसी को मधुर लगे या कड़वा।
शनि पर्दा डालता नहीं पर्दा उठाता है अर्थात जातक की बुराइयों को प्रकट करता है। शनि को दोमुंहे लोग बिलकुल पसंद नहीं है। जो लोग स्त्री, दिव्यांगों, लाचार और मजबूर लोगों के साथ अन्याय करते हैं, वे शनि के कोपभाजन होते हैं। इतिहास में जो लोग अमर हो जाते हैं, उनमें शनि का योगदान बहुत होता है। शनि सत्य को शक्ति देता है और अपराधी की शक्ति क्षीण करता है। अत सदैव सन्मार्ग पर चलने वाले, धर्म का पालन करने वाले जातकों पर शनि की कृपा बनी रहती है।
हनुमानजी का स्मरण करें
परंपरागत रूप से हनुमान जी को बल, बुद्धि, विद्या, शौर्य और निर्भयता का प्रतीक माना जाता है। संकटकाल में हनुमानजी का ही स्मरण किया जाता है। वह संकटमोचन कहलाते हैं।
बजरंगबली ने शनि महाराज को कष्टों से मुक्त कराया था, उनकी रक्षा की थी इसलिए शनि देवता ने यह वचन दिया था हनुमानजी की उपासना करने वालों को वे कभी कष्ट नहीं देंगे। बल्कि कष्टों को दूर कर उनकी रक्षा करेंगे।
शनि या साढ़ेसाती की वजह से होने वाले कष्टों के निवारण हेतु हनुमानजी की आराधना करनी चाहिए। बजरंगबली की पूजा से शनि का प्रकोप शांत होता है। सूर्य व मंगल के साथ शनि की शत्रुता व योगों के कारण उत्पन्न कष्ट भी दूर हो जाते हैं। इसलिए कहते हैं कि शनि की साढ़ेसाती सताए तो बजरंगबली को बुलाएं।