
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
जब हम छोटे थे, तब हमारी क्यारियों में , घर के लिए और थोड़ी बहुत पड़ोस में बांटने लायक भिंडी- बैंगन हो जाते थे। हम बच्चे तो भिंडी कच्ची ही खा लेते थे। टमाटर भी खूब होता था। मूली, मिर्च, लौकी, कद्दू, तौरी, अरबी… क्या कुछ नहीं उगता था, क्यारियोंं में। मेरे पापा, दफ्तर की छुट्टी वाला दिन क्यारियों के नाम करते थे। सुबह जल्दी उठकर पौधों की देखरेख उनका नियमित कार्य था। मां भी उनका हाथ बंटाती थीं।
बचपन में मां, जब भिंडी काट रही होती थीं, तब हम भिंडी की कैप यानी ऊपर का हिस्सा, जिसको काट कर अलग कर दिया जाता है, को कभी अपने माथे पर तो कभी गाल पर चिपकाया करते थे। भिंडी ही शायद ऐसी सब्जी है, जिसके काटे गए टुकड़ों को धोया नहीं जाता। वरना, आलू, बैंगन, बीन्स, पत्ता साग, करेला… सभी को काटकर एक बार फिर धोया जरूर जाता है।
मसाला भरकर बनाई भरवा भिंडी का आनंद ही कुछ और है। पर, उसको बनाने में थोड़ा समय लगता है। अब तो सभी भागदौड़ में हैं, इसलिए उनकी और हमारी पसंद छोटे छोटे टुकड़े वाली भिंडी हो गई है।
पहले घरों के सामने या पीछे खाली पड़ी जमीन पर लोग सब्जियां उगा लेते थे। एक दूसरे के घरों में भी सब्जियां भेज देते थे। पर, अब अधिकतर मकानों के आगे या पीछे कमरे बन गए हैं या फिर फर्श बिछ गया है। फूलों और सजावटी वनस्पतियों को गमलों में बोया जा रहा है। इन्हीं में थोड़ा बहुत सब्जी उग रही है। नहीं तो बाजार से या फिर गली में आती जातीं ठेलियों से ही सब्जियां खरीदी जा रही हैं।
सब्जी बेचने वाले भैया, रेट भी पाव के हिसाब से बताते हैं। उनको पता है, अगर किलो का भाव बता दिया तो ग्राहक सब्जी नहीं खरीदेगा या फिर मोल भाव ज्यादा करेगा। शिमला मिर्च क्या भाव है भाई, वो बोलते हैं, 40 रुपये। चालीस रुपये में क्या, फिर जवाब मिलता है पाव। बहुत सारे ग्राहक समझ जाते हैं, इसको खरीदना फिलहाल बस में नहीं है।
सब्जी इतनी महंगी क्यों? जवाब मिलता है ऊपर से ही यही रेट आ रहा है। मैं तो ऊपर का मतलब सिर्फ और सिर्फ ईश्वर को मानता हूं। क्योंकि उसके और अपने बीच में कोई और है ही नहीं। जो मांगना है, सीधा उससे मांगो, बाकी सब मिथ्या है। सब्जी वाले भैया किस ऊपर वाले से सब्जियां ला रहे हैं, मुझे नहीं मालूम।
मैं, जब भी गांवों में जाता हूं, तो पुराना समय याद आ जाता है, और अपने पापा को खूब याद करता हूं, जिन्होंने हमारे लिए क्यारियां बनाई थीं। वो हमें भी इन क्यारियों से घास पत्तियां हटाने, छोटे-छोटे गड्ढे खोदने, इनमें पानी देने को कहते थे। वो बिना बताए, हमें मिट्टी से जुड़कर रहने का अभ्यास करा रहे थे। वो हमें बता रहे थे कि मिट्टी में बहुत ताकत होती है। अपनी ताकत को बढ़ाना है तो मिट्टी से जुड़ जाओ। अपनी जड़ों को मिट्टी में बहुत ज्यादा गहराई तक रखोगे तो जीवन आसान होगा। नहीं तो, किसी भी संघर्ष में उखड़ जाओगे, बह जाओगे। पापा हमें, कितना कुछ सीखा रहे थे, बिना बताए हुए, बिना जताए हुए। यह बातें, मुझे आज समझ में आती हैं, उनके जाने के बाद…, उस समय जब मैं दो बेटों का पिता हूं।
गांवों में, खेतों में सब्जियां उगाने के लिए मेहनत करते लोगों को देखता हूं। पर्वतीय गांवों में तो सब्जियां आर्गेनिक हैं। साफ पानी, साफ हवा और साफ मिट्टी में उगती सब्जियां शरीर को पोषक तत्व देने का शानदार माध्यम हैं।
सब्जियां खाओ, सब्जियां उगाओ और मिट्टी से जुड़कर भरपूर ताकत पाओ।